अनिल अनूप
सृष्टि की जब से रचना हुई है, इस पूरे संसार को सजाने व संवारने का काम मात्र दो ही प्राणियों ने किया है और वे दो प्राणी हैं- पुरुष एवं स्त्री। परंतु समस्त संसार की रचना में दो प्राणियों में भी अगर सबसे अधिक महत्वपूर्ण योगदान है तो वह एक स्त्री का, एक औरत का, एक नारी का, क्योंकि वह समस्त संसार की जननी है, समस्त संसार की उत्पत्ति उसकी कोख से होती है, या यूं कह लें कि स्त्री के बिना सांसारिक रचना की कल्पना मात्र भी नहीं की जा सकती है। यह भी कहा जाता है कि हर एक कामयाब पुरुष के पीछे एक सफल औरत का हाथ होता है।
आज के दौर में, जब दुनिया लैंगिक समानता (Gender Equality) के नए प्रतिमान गढ़ने की बात कर रही है, तब भी महिलाएं अपने अधिकारों और पहचान की तलाश में संघर्षरत हैं। निर्मला पुतुल की कविता “अपने घर की तलाश में” की ये पंक्तियां—
“धरती के इस छोर से उस छोर तक
मुट्ठी भर सवाल लिए मैं, छोड़ती-हांफती-भागती
तलाश रही हूं सदियों से निरंतर, अपनी जमीन
अपना घर, अपने होने का अर्थ!”
—स्त्री जीवन की इसी वास्तविकता को मार्मिक रूप से अभिव्यक्त करती हैं। लैंगिक समानता के तमाम दावों के बावजूद, महिलाओं को आज भी समाज में दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है।
लैंगिक असमानता: ऐतिहासिक और वैश्विक परिप्रेक्ष्य
लैंगिक असमानता कोई नया मुद्दा नहीं है; यह एक ऐतिहासिक और वैश्विक वास्तविकता है। हालाँकि, हाल के वर्षों में इस दिशा में कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं, लेकिन वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट (Global Gender Gap Report) के आंकड़े बताते हैं कि अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।
लैंगिक अंतराल (Gender Gap) क्या है?
लैंगिक अंतराल पुरुषों और महिलाओं के बीच विभिन्न क्षेत्रों—जैसे आर्थिक भागीदारी, नेतृत्व, शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता—में मौजूद असमानताओं को दर्शाता है। यह सत्ता, अवसरों और सामाजिक-आर्थिक परिणामों में असमानता को उजागर करता है।
विश्व आर्थिक मंच (World Economic Forum) हर साल वैश्विक लैंगिक अंतराल रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जो इस असमानता की स्थिति को समझने का एक महत्वपूर्ण स्रोत है। इस रिपोर्ट के अनुसार, लैंगिक समानता पूरी तरह प्राप्त करने में अभी भी 130 वर्षों से अधिक का समय लग सकता है—और अगर कोई वैश्विक संकट, जैसे कोविड-19 महामारी, दोबारा उत्पन्न होता है, तो यह लक्ष्य और भी दूर चला जाएगा।
वैश्विक लैंगिक अंतराल सूचकांक 2024: आंकड़े क्या कहते हैं?
2024 की रिपोर्ट के अनुसार:
वैश्विक लैंगिक समानता स्कोर 0.579 है, जो दर्शाता है कि अभी आधी दूरी तय की गई है।
भारत का स्कोर 0.651 है, जिससे वह 140वें स्थान पर है।
भारत में महिलाओं की आर्थिक भागीदारी मात्र 23% है, जो वैश्विक औसत से काफी कम है।
शिक्षा के क्षेत्र में सुधार हुआ है, लेकिन गुणवत्ता और पहुंच में कई चुनौतियां बनी हुई हैं।
राजनीतिक भागीदारी में महिलाओं का संसद में प्रतिनिधित्व सिर्फ 14% है।
यदि वर्तमान गति से सुधार जारी रहा, तो भारत में पूर्ण लैंगिक समानता हासिल करने में 149 वर्ष लग सकते हैं।
लैंगिक समानता की दिशा में जरूरी सुधार
1. आर्थिक भागीदारी बढ़ाना
समान वेतन (Equal Pay) को सुनिश्चित करने के लिए सख्त कानून लागू करने की आवश्यकता है।
कार्यस्थल पर महिलाओं के खिलाफ भेदभाव रोकने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे।
पितृत्व अवकाश (Paternity Leave) नीतियों को मजबूत किया जाना चाहिए ताकि पुरुष भी घरेलू जिम्मेदारियों में भागीदार बनें।
2. शिक्षा और कौशल विकास
लड़कियों को एसटीईएम (STEM) क्षेत्रों में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने वाली योजनाओं में निवेश करना होगा।
लैंगिक रूढ़ियों को तोड़ने के लिए जागरूकता अभियान चलाने की जरूरत है।
3. स्वास्थ्य सुविधाओं तक समान पहुंच
मातृ एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाओं को सुलभ और सस्ता बनाना होगा।
महिलाओं को स्वास्थ्य अधिकारों के प्रति जागरूक करने के लिए शिक्षा कार्यक्रम शुरू करने चाहिए।
4. राजनीतिक सशक्तिकरण
महिला नेताओं की संख्या बढ़ाने के लिए कोटा प्रणाली लागू करनी होगी।
महिलाओं के लिए राजनीतिक प्रशिक्षण और नेतृत्व विकास कार्यक्रम शुरू किए जाने चाहिए।
5. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन
महिला मेंटरशिप कार्यक्रम शुरू करने से युवा महिलाओं को सफल महिला नेताओं से मार्गदर्शन मिलेगा।
लिंग-संवेदनशील भाषा के उपयोग को बढ़ावा देना चाहिए ताकि समाज में गहरे बैठे पूर्वाग्रह खत्म किए जा सकें।
लैंगिक समानता की राह लंबी और चुनौतीपूर्ण है, लेकिन इसे असंभव नहीं कहा जा सकता। नीतिगत सुधार, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, आर्थिक सशक्तिकरण, और सामाजिक मानसिकता में बदलाव—इन सभी स्तरों पर प्रयासों की जरूरत है।
यदि हम सही दिशा में ठोस कदम उठाएं और सामूहिक रूप से प्रयास करें, तो वह दिन दूर नहीं जब लैंगिक समानता केवल एक लक्ष्य नहीं, बल्कि वास्तविकता होगी।
