अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
मुगल शासक औरंगजेब के शासनकाल को लेकर इतिहासकार इरफान हबीब ने अहम बातें साझा की हैं। उनके अनुसार, औरंगजेब का शासनकाल काफी लंबा रहा, जो 1658 से 1707 तक फैला था। हालाँकि, उनके पूर्ववर्ती मुगल बादशाहों ने मंदिरों को नुकसान नहीं पहुँचाया था, लेकिन औरंगजेब ने 1668 के आसपास मंदिर गिराने की नीति अपनाई।
औरंगजेब द्वारा मंदिरों का विध्वंस
इरफान हबीब बताते हैं कि औरंगजेब ने कई मंदिरों को ध्वस्त किया, जिनमें प्रमुख रूप से मथुरा, वृंदावन और काशी (वाराणसी) के मंदिर शामिल थे। इन घटनाओं के ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं, जिनमें तत्कालीन अधिकारियों के लिखित दस्तावेज और आदेश भी शामिल हैं। हालाँकि, यह भी सच है कि औरंगजेब के शासनकाल में कई मंदिर सुरक्षित भी रहे।
धार्मिक कट्टरता और सत्ता नीति
इतिहासकारों के अनुसार, औरंगजेब ने धार्मिक कारणों से मंदिरों को गिराने का आदेश दिया। उनका मानना था कि ऐसा करने से उन्हें धार्मिक पुण्य मिलेगा। इसके अलावा, उनकी सख्त इस्लामी नीतियों के चलते उन्होंने हिंदुओं पर जजिया कर भी दोबारा लागू किया, जिससे जनता में असंतोष बढ़ा। हालाँकि, विरोधाभास यह था कि उनके शासनकाल में कई हिंदू राजपूत अधिकारी भी उच्च पदों पर नियुक्त थे।
मुगल साम्राज्य का विस्तार और पतन
औरंगजेब अपने शासनकाल में मुगल साम्राज्य को सबसे अधिक विस्तार देने में सफल रहे। हालाँकि, उनकी धार्मिक नीतियों और अत्यधिक सैन्य अभियानों के कारण कई विद्रोह हुए, जिससे साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा। 1707 में उनकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य का धीरे-धीरे पतन शुरू हो गया।
औरंगजेब भारतीय इतिहास के सबसे विवादास्पद शासकों में से एक रहे हैं। उनकी धार्मिक कट्टरता और नीतियों ने जहाँ एक ओर साम्राज्य को ताकतवर बनाया, वहीं दूसरी ओर हिंदू-मुस्लिम संबंधों में तनाव भी पैदा किया। उनके कार्यों के प्रमाण ऐतिहासिक रूप से उपलब्ध हैं, और इतिहासकारों द्वारा इस पर लगातार शोध किया जाता रहा है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की