ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट
बरसाना, मथुरा: होली के रंगों में सराबोर ब्रज की धरा पर कल 8 मार्च को विश्व प्रसिद्ध लट्ठमार होली का आयोजन हुआ। नंदगांव से आए हुरियारे जब दोपहर करीब 2 बजे प्रिया कुंड पहुंचे, तो बरसाना के लोगों ने भांग की ठंडाई से उनका स्वागत किया। भांग के रंग में डूबे हुरियारे अपनी पाग (पारंपरिक पगड़ी) बांधकर लठमार होली के लिए तैयार हो गए।
राधारानी मंदिर में समाज गायन
इसके बाद हुरियारे लाडली जी मंदिर (राधारानी मंदिर) पहुंचे, जहां बरसाना और नंदगांव के गोस्वामियों ने संयुक्त रूप से समाज गायन किया। इस दौरान दोनों पक्षों ने प्यार भरे कटाक्षों से एक-दूसरे को चिढ़ाया, जिससे माहौल और भी रंगीन हो गया।
रंगीली गली में प्रेम भरी लाठियों की बारिश
समाज गायन के बाद हुरियारे रंगीली गली पहुंचे, जहां बरसाना की हुरियारिनें (गोपियां) हाथों में लाठियां लिए उनके स्वागत को तैयार थीं। जैसे ही होली खेलना शुरू हुआ, हुरियारिनों ने प्रेम से सराबोर लाठियां बरसाईं, जबकि हुरियारे बड़ी कुशलता से ढालों से खुद को बचाने लगे। इस अद्भुत नजारे को देखने के लिए हजारों-लाखों की भीड़ राधारानी के धाम बरसाना में उमड़ पड़ी।
लट्ठमार होली का ऐतिहासिक रिश्ता
बरसाने की लट्ठमार होली का इतिहास राधा-कृष्ण के प्रेम से जुड़ा हुआ है। मान्यता के अनुसार, जब श्रीकृष्ण अपनी सखाओं के साथ बरसाना आए और राधा व उनकी सखियों से होली खेलने लगे, तो उन्होंने लाठियों से उनका स्वागत किया। तभी से यह परंपरा चली आ रही है, जिसे हर साल भव्य तरीके से मनाया जाता है।
देश-विदेश से उमड़ती है भीड़
राधा-कृष्ण के अमर प्रेम का यह अनूठा त्योहार देश ही नहीं, बल्कि विदेशों तक प्रसिद्ध हो चुका है। हर साल हजारों की संख्या में देश-विदेश से श्रद्धालु और पर्यटक इस अनोखी होली का हिस्सा बनने बरसाना पहुंचते हैं। ब्रज में होली का उत्सव डेढ़ महीने तक चलता है, जिसमें हर तीर्थस्थल की अपनी अलग परंपरा और खासियत होती है।
महीनों पहले शुरू होती हैं तैयारियां
बरसाना और नंदगांव में लठमार होली की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं।
गोपियां (हुरियारिनें) ताकत बढ़ाने के लिए दूध-मेवा खाती हैं, ताकि लाठी मारने में कोई कमी न रहे।
ग्वाले (हुरियारे) अपनी ढालों को मजबूत बनाने में जुट जाते हैं, जिससे वे लाठियों के प्रहार सहन कर सकें।
इस दौरान सबसे कुशल हुरियारे को पुरस्कार भी दिया जाता है।
लट्ठमार होली की धूम और परंपरा
लट्ठमार होली में नंदगांव के हुरियारे जब बरसाना की गोपियों की लाठियों के वार को सहन करते हैं, तो यह दृश्य देखने लायक होता है। वे चमड़े या धातु की बनी ढालों का उपयोग करते हैं, ताकि खुद को बचा सकें। इस अनूठी परंपरा में प्रेम, रंग और संस्कृति का ऐसा संगम देखने को मिलता है, जो बरसाना को होली का सबसे अनोखा केंद्र बना देता है।
बरसाने की लट्ठमार होली केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि प्रेम, परंपरा और भक्ति का उत्सव है। यहां हर साल राधा-कृष्ण के प्रेम में रंगे श्रद्धालु इस अनोखी होली का हिस्सा बनते हैं। जैसे-जैसे होली नजदीक आती है, वैसे-वैसे ब्रज की होली का रंग और गहराता जाता है, जो इसे दुनिया भर में सबसे खास बना देता है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की