Explore

Search
Close this search box.

Search

November 22, 2024 2:56 pm

लेटेस्ट न्यूज़

पगड़ी पहने हुए लाठियों का इंतजार कर रहे सर तो दूसरी ओर हुरियारिनों की तेल पीकर चमचमाती लाठियां…..

12 पाठकों ने अब तक पढा

चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट

शुक्रवार को ब्रजभूमि के बरसाना धाम में विश्व प्रसिद्ध लठ्ठमार होली खेली गई। यहां बरसाने की हुरियारिनों ने नंदगांव के हुरियारों पर जमकर लाठियां बरसाईं। अपने हाथों में ढाल लेकर हुरियारे शब्दबाण छोड़ते हुए लाठियों के प्रहार से खुद को बचाते रहे। ब्रज में बसंत पंचमी से ही होली के अद्भुत और अलौकिक उत्सव की शुरुआत हो जाती है। इसमें सभी को विशेष रूप से बरसाने की होली का बहुत इंतजार रहता है। शुक्रवार को वृषभान नंदनी राधा रानी की जन्मस्थली श्रीधाम बरसाना में अपार उत्साह के साथ लठामार होली खेली गई।

इससे पहले शुक्रवार को पीली पोखर पर नंदगांव के हुरियारे सज धजकर पहुंचे। वहां भांग, ढंडाई और फल आदि से उनका स्वागत किया गया। पीली पोखर पर हुरियारों ने अपने को लाठियों से बचाने का इंतजाम किया, उन्होंने सिर पर पगड़ी बांधी और अपनी अपनी ढाल की रस्सी और हत्थे कसकर बांधे। किसी ने अपनी पगड़ी मोर पंख से सजाई तो किसी ने पत्तों से और किसी ने दूल्हा वाली पगड़ी पहनी। इसके बाद उन्होंने बुजुर्गाें के पैर छुए और फिर पताका का पूजन किया गया।

हंसी ठिठोली करते हुए हुरियारे श्रीजी मंदिर पहुंचे और श्रीजी से कान्हा संग होली खेलने का आग्रह किया। इस दौरान नंदगांव बरसाना के समाजियों द्वारा जमकर समाज गायन किया गया। मंदिर की छतों से ड्रमों में पहले से तैयार किया गया टेसू के फूलों का रंग नंदगांव के हुरियारों के स्वागत के लिए पिचकारियों से, बाल्टीयों से बरसाया गया। ब्रज के होली के गीतों के बीच हुरियारों ने ठिठोली करना शुरू कर दिया। हंसी ठिठोली के बाद रसियाओं, साखीओं पर नृत्य हुआ। पताका के आते और समाज का इशारा मिलते ही हुरियारिनों ने लाठियों का प्रहार करना शुरू कर दिया।

एक ओर नंदगांव के ग्वाल हाथों में ढाल और सिर पर सुरक्षा कवच यानी पगड़ी पहने हुए लाठियों का इंतजार कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर हुरियारिनों की तेल पीकर चमचमाती लाठियां अपने लक्ष्य तक पहुंचने के लिए आतुर थीं। ब्रज की होली के गीतों के बीच बरसाने की रंगीली गली में लठामार होली की शुरुआत हुई। हुरियारों की ओर से शब्दबाण छोडे जा रहे थे और हुरियारिन लाठियों से जवाब दे रहीं थीं।

टेसू के फूलों के रंग से सराबोर, भांग की तरंग में लाठियों की मार झेलते हुए हुरियारे पूरे आनंद में नजर आए। देश और विदेश से आए श्रद्धालु इस दृश्य को देख आनंदित और लालायित हो गए। सभी श्रद्धालुओं के सामने मानो द्वापर की लीला साकार हो रही थी। उन्हें हुरियारों में कृष्ण और हुरियारिनों में राधा की छवि नजर आ रही थी।

एक एक हुरियारे पर पांच छह हुरियारिनें घूंघट की ओट से लाठियां की चोट मारती रहीं। भंग की तरंग में झूमते हुरियारे उन प्रहारों को कभी मयूरी नृत्य करके तो कभी लेटकर खुशी खुशी सहते रहे। लाठियों के प्रहारों को और तेज करने के लिए फिर शब्द बाण छोड़ देते थे। शब्दबाण से प्रेरित होकर हुरियारिनें लाठियों के प्रहारों को और तेज करना शुरू कर देती थीं। लठ्ठमार होली के बाद हुरियारों ने हुरियारिनों से पैर छूकर हंसी ठिठोली की मांफी मांगी और आशीर्वाद भी लिया।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

लेटेस्ट न्यूज़