अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
भारत, जिसकी सांस्कृतिक विविधता और उत्सवों की भरमार उसे विश्व में विशेष स्थान दिलाती है, त्योहारों का देश कहलाता है। यहाँ हर हफ्ते कोई न कोई उत्सव मनाया जाता है, किंतु तीन पर्व विशेष रूप से महत्वपूर्ण माने जाते हैं—दीपावली, होली और रक्षाबंधन। इनमें होली ऐसा पर्व है जो पूरे देश में भिन्न-भिन्न रूपों में मनाया जाता है। उत्तर प्रदेश के मथुरा जिले के पास स्थित बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली इसका एक अनूठा और रोचक स्वरूप है।
बरसाना: राधा-कृष्ण की प्रेमगाथा से जुड़ा पावन धाम
बरसाना केवल एक स्थान भर नहीं है, बल्कि यह प्रेम और भक्ति की गूंज से स्पंदित एक पवित्र भूमि है। यह वही स्थान है जहाँ श्रीकृष्ण की प्रेयसी राधा जी का जन्म हुआ था। पौराणिक कथाओं के अनुसार, नंदगाँव के श्रीकृष्ण फाल्गुन मास में अपने सखाओं के साथ बरसाना आते थे और वहाँ राधा तथा उनकी सखियों को रंग लगाने की चेष्टा करते थे। किंतु चतुर राधा और उनकी सखियाँ कृष्ण को लाठियों से मारकर भगाने का प्रयास करती थीं। यह छेड़छाड़ और हास्य-विनोद से भरा आदान-प्रदान आज भी जीवंत है और लट्ठमार होली के रूप में हर वर्ष दोहराया जाता है।
लट्ठमार होली: एक अनूठी परंपरा
होली, जो प्रायः रंगों का पर्व मानी जाती है, बरसाना में लाठी और प्रेम का संगम बन जाती है। फाल्गुन शुक्ल पक्ष की नवमी को जब नंदगाँव के लोग होली खेलने के लिए बरसाना पहुँचते हैं, तो वहाँ की महिलाएँ उन्हें लाठियों से भगाने का प्रयास करती हैं। यह परंपरा हास्य और उल्लास से भरी होती है, जिसमें पुरुष ढाल लेकर इन लाठियों से स्वयं को बचाने का प्रयास करते हैं। हालाँकि, यह मात्र एक सांस्कृतिक खेल है, जिसमें चोट पहुँचाने की कोई मंशा नहीं होती।
होली के इस उत्सव की एक और विशेषता यह है कि इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु और पर्यटक बरसाना पहुँचते हैं। समस्त नगर इस रंगोत्सव में डूब जाता है। गलियों में गुलाल उड़ता है, ढोल-नगाड़ों की ध्वनि गूँजती है, और रसिया गीतों पर लोग झूम उठते हैं।
होली का सप्ताहभर चलने वाला उत्सव
भारत के अधिकांश हिस्सों में होली केवल एक दिन मनाई जाती है, किंतु मथुरा, वृंदावन, बरसाना, गोकुल और नंदगाँव में यह उत्सव एक सप्ताह तक चलता है। प्रत्येक दिन की होली का अपना अलग महत्व और स्वरूप होता है।
बरसाना की लट्ठमार होली का क्रम इस प्रकार होता है:
1. प्रथम दिवस (बरसाना में होली) – नंदगाँव के पुरुष बरसाना की गलियों में आते हैं, और वहाँ की महिलाएँ उन्हें लाठियों से परंपरागत रूप से परिहासपूर्वक मारती हैं।
2. द्वितीय दिवस (नंदगाँव में होली) – अगले दिन बरसाना की महिलाएँ नंदगाँव जाती हैं, और वहाँ के पुरुष रंगों के साथ उनका स्वागत करते हैं।
3. अन्य दिन – इसके बाद मथुरा और वृंदावन में फूलों की होली, गुलाल की होली, और रंगों की होली खेली जाती है।
भांग, रसिया और उल्लास का संगम
लट्ठमार होली केवल लाठियों और रंगों का उत्सव नहीं है, बल्कि इसमें मस्ती और आनंद का भी विशेष स्थान है। सुबह होते ही नंदगाँव के होरियारे (होली खेलने वाले लोग) भांग तैयार करने लगते हैं। भांग का प्रभाव चढ़ते ही उत्साह और उमंग चरम पर पहुँच जाती है। फिर रसिया गीत गाते हुए और गुलाल उड़ाते हुए नंदगाँव के लोग बरसाना की ओर प्रस्थान करते हैं।
बरसाना पहुँचने पर चारों ओर प्रेम और भक्ति की अविरल धारा प्रवाहित होती है। महिलाएँ श्रृंगारपूर्ण परिधान धारण कर अपनी सखियों के साथ लाठियाँ सँभालती हैं, जबकि पुरुष खुद को बचाने की चेष्टा करते हैं। इस दृश्य को देखने के लिए हज़ारों की संख्या में श्रद्धालु और पर्यटक उमड़ पड़ते हैं।
सांस्कृतिक और आध्यात्मिक महत्व
लट्ठमार होली केवल एक मनोरंजक आयोजन नहीं, बल्कि राधा-कृष्ण के प्रेम और नटखटपन का जीवंत चित्रण भी है। यह त्योहार नारी शक्ति के सम्मान का प्रतीक भी माना जाता है, क्योंकि यहाँ महिलाएँ पुरुषों पर प्रहसनात्मक रूप से प्रहार करती हैं और पुरुष इसे हँसी-खुशी सहते हैं।
समापन: भारत के विविध रंगों में एक अनमोल रंग
यदि भारत को रंगों और उत्सवों का देश कहा जाए, तो बरसाना की लट्ठमार होली इस पहचान को और अधिक गाढ़ा कर देती है। यह उत्सव केवल रंग और लाठियों का खेल नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति, हास्य और उल्लास का संगम है। जब पूरा नगर राधा-कृष्ण के दिव्य प्रेम में सराबोर हो जाता है, तब यह त्यौहार मात्र एक आयोजन न रहकर, एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाता है।
इसलिए यदि आप कभी होली के असली रंग और मस्ती का अनुभव करना चाहते हैं, तो बरसाना की लट्ठमार होली देखने अवश्य जाएँ। यहाँ हर रंग, हर ध्वनि, और हर उत्सव आपको भक्ति, प्रेम और आनंद की अनोखी यात्रा पर ले जाएगा!
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की