अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
वाराणसी: भारत की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी ने इस बार होली पर ऐसा संदेश दिया, जो समाज में नफरत फैलाने वालों के लिए एक बड़ी सीख है। जब कुछ लोग रंगों के नाम पर बंटवारे की राजनीति कर रहे हैं, तब काशी में मुस्लिम महिलाओं ने सनातन परंपरा को अपनाते हुए प्रेम और सौहार्द्र का अद्भुत उदाहरण पेश किया।
गंगा-जमुनी तहजीब का अनूठा उदाहरण
वाराणसी के लमही स्थित सुभाष भवन में मुस्लिम महिला फाउंडेशन और विशाल भारत संस्थान के तत्वावधान में फूलों और गुलाल से होली का आयोजन किया गया। यहां मुस्लिम और हिंदू महिलाओं ने मिलकर होली खेली, फाग गीत गाए और प्रेम तथा भाईचारे का संदेश दिया।
“होली नहीं खेलेंगे तो जन्नत में क्या जवाब देंगे?”
कार्यक्रम में शामिल मुस्लिम महिलाओं ने खुलेआम ऐलान किया कि वे होली भी खेलेंगी और जन्नत भी जाएंगी। उनका कहना था कि होली हमारे पूर्वजों की परंपरा रही है, और हम इसे गर्व से मनाएंगे। उन्होंने कहा—
“हम न अरबी हैं, न ईरानी और न तुर्की। जब हमने अपना वतन नहीं बदला, पूर्वज नहीं बदले, तो अपनी संस्कृति क्यों बदलें?”
कट्टरपंथी सोच को दिया करारा जवाब
कुछ कट्टरपंथी ताकतों द्वारा यह अफवाह फैलाई जा रही थी कि जो मुस्लिम होली खेलेगा, उसका मांस जन्नत में काट लिया जाएगा। इस पर मुस्लिम महिला फाउंडेशन की नेशनल सदर नाजनीन अंसारी ने दो टूक कहा—
“कोई हमें बताएगा कि हम जन्नत जाएंगे या नहीं? हम अपने पूर्वजों की संस्कृति को अपनाएंगे और प्रेम तथा भाईचारे को बढ़ावा देंगे।”
रंगों से मिटेगी नफरत की लकीर
इस आयोजन के दौरान महिलाओं ने गुलाब की पंखुड़ियों और हरे-लाल गुलाल से होली खेली। ढोल की थाप पर फाल्गुन गीत—
“गूंजे होली खेले रघुराई अवध में, कृष्ण कन्हाई गोकुल में हो”,
गाकर उन्होंने कट्टरपंथी ताकतों को करारा जवाब दिया।
वाराणसी ने फिर दिया प्रेम और सौहार्द का संदेश
यह आयोजन सिर्फ रंगों का उत्सव नहीं था, बल्कि एकता और भाईचारे का संदेश भी था। जब कुछ लोग धर्म के नाम पर नफरत फैलाने की कोशिश कर रहे हैं, तब काशी की मुस्लिम और हिंदू महिलाओं ने मिलकर यह दिखा दिया कि प्रेम ही सबसे बड़ा धर्म है।
होली के रंग में एकता की चमक
वाराणसी की इस पहल ने पूरे देश को गंगा-जमुनी तहजीब की याद दिलाई और संदेश दिया कि—
“नफरत की आग होली के रंग से ही बुझेगी।”
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की