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14 March 2025 3:40 pm

क्या सच में हरदोई है होली का जन्मस्थान? जानिए पौराणिक रहस्य!

71 पाठकों ने अब तक पढा

ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट

होली, रंगों और खुशियों का त्योहार, अब बस दस्तक दे चुका है। देशभर में इसकी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि होली की शुरुआत कहां से और कब हुई थी? अगर नहीं, तो आपको बता दें कि उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले का इस पर्व से गहरा संबंध है।

हरदोई: होली का ऐतिहासिक केंद्र

पुराणों के अनुसार, हरदोई जिले का प्राचीन नाम “हरिद्रोही” था। यही वह स्थान है, जहां भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए उनकी बुआ होलिका आग में बैठी थी, लेकिन स्वयं जलकर राख हो गई। यही वह जगह भी है, जहां से होली खेलने की परंपरा की शुरुआत हुई थी। आज भी हरदोई में हिरण्यकश्यप के महल के अवशेष, भगवान नृसिंह अवतार का मंदिर और प्रह्लाद घाट इसके ऐतिहासिक प्रमाण हैं।

होली और होलिका दहन की पौराणिक कथा

कथाओं के अनुसार, हिरण्यकश्यप, जो भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था, अपने पुत्र प्रह्लाद की विष्णु-भक्ति से क्रोधित था। उसने प्रह्लाद को मारने के लिए कई प्रयास किए, लेकिन भगवान की कृपा से हर बार वह बच गया। जब उसके सारे प्रयास विफल हो गए, तो उसने अपनी बहन होलिका से सहायता मांगी। होलिका को यह वरदान था कि अग्नि उसे जला नहीं सकती। वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई, लेकिन भगवान विष्णु की लीला से होलिका जलकर भस्म हो गई, जबकि प्रह्लाद सुरक्षित बच गए।

इसके बाद, हरदोई के लोगों ने उस राख को एक-दूसरे पर उड़ाकर अपनी खुशी का इजहार किया, और यहीं से होली खेलने की परंपरा की शुरुआत हुई।

हरदोई के ऐतिहासिक प्रमाण

आज भी हरदोई में 5000 साल पुराना भगवान नृसिंह मंदिर, प्रह्लाद घाट और हिरण्यकश्यप के महल का खंडहर मौजूद हैं। ये स्थान होली के ऐतिहासिक महत्व को दर्शाते हैं। हरदोई गजेटियर और धार्मिक ग्रंथों में भी होली की शुरुआत हरदोई से होने का उल्लेख मिलता है।

हरदोई और “र” अक्षर का रहस्य

एक रोचक तथ्य यह भी है कि हिरण्यकश्यप ने “र” अक्षर के उच्चारण पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसका असर आज भी हरदोई के बुजुर्गों की बोली में देखा जा सकता है। वे हरदोई को “हद्दोई”, मिर्च को “मिच्चा” जैसे शब्दों से उच्चारित करते हैं।

हरदोई न केवल होली का ऐतिहासिक केंद्र है, बल्कि पौराणिक कथाओं में भी इसका विशेष महत्व है। हालांकि, प्रशासनिक उपेक्षा के कारण प्रह्लाद घाट और अन्य ऐतिहासिक स्थल दुर्दशा का शिकार हो रहे हैं। अगर इन स्थलों का संरक्षण किया जाए, तो हरदोई को होली के जन्मस्थान के रूप में वैश्विक पहचान मिल सकती है।

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