संजय सिंह राणा की रिपोर्ट
चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश अवकाश प्राप्त माध्यमिक शिक्षक कल्याण एसोसिएशन के प्रांतीय अधिवेशन के अवसर पर एक भव्य राष्ट्रीय कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस कवि सम्मेलन की अध्यक्षता फर्रूखाबाद की प्रतिष्ठित कवयित्री श्रीमती ज्योति स्वरूप अग्निहोत्री ने की।
इस आयोजन के संयोजक, राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित कवि रामेश्वर प्रसाद द्विवेदी ‘प्रलयंकर’ ने अपने ओजस्वी काव्य पाठ से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने धर्म की सनातनता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “धर्म तो सनातन है और कोई धर्म नहीं यही धर्म सास्वत महान देख लीजिए, उंगली के पोर पोर पै निगाह डालकर शंख और चक्र के निशान देख लीजिए…”। उनके इस भावपूर्ण काव्य ने सभी का मन मोह लिया।
साहित्य की दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाली गोरखपुर की साहित्यविद् नंदा पांडेय ने अपनी ग़ज़ल से एक खास समां बांधते हुए कहा, “बुलंदी देर तक किस सख्श के हिस्से में रहती है, बड़ी ऊंची इमारत हर घड़ी खतरे में रहती है। यह ऐसा फर्ज है जिसको अता है कर नहीं सकता, मैं जब तक घर न पहुंच मेरी मां सजदे में रहती है…”। उनके इस भावुक प्रस्तुति ने श्रोताओं के दिल को छू लिया।
इसके बाद वीरेंद्र शुक्ल ने प्रकृति की सुंदरता को अपने शब्दों में पिरोते हुए कहा, “धरती के आंचल ईश ने सजाया खूब, प्रकृति ने मानव को दिए उपहार हैं।” वहीं, आशाराम अवस्थी ‘भीर’ ने अपने गीत में देशभक्ति का रस भरते हुए कहा, “देश हमार महान जहान में चन्दन है, यह देश की माटी…”।
दुष्यंत शुक्ल सिंह ‘नांदी’ ने देश प्रेम की भावना को उजागर करते हुए कहा, “बुजदिल है वह मानव जिसमें देश प्रेम का ज्वार नहीं, वह कायर है जिसको अपनी मातृ भूमि से प्यार नहीं।” इस दौरान भवानी प्रसाद तिवारी ‘कमल’ बाराबंकी ने पाकिस्तान की सीमाओं को चुनौती देते हुए अपने जोशीले अंदाज में कहा, “पाक तू है नदी छोटी, मेरा भारत समुंदर है, तेरी औकात सारी मेरे इक सूबे के अंदर है।”
कवि सम्मेलन में अन्य कई कवियों ने भी अपनी बेहतरीन प्रस्तुतियों से समां बांध दिया। इस अवसर पर ज्योति स्वरूप अग्निहोत्री, विजय त्रिपाठी (लखनऊ), महराज दीन मिश्र, देव कुमार सिंह (बलिया), धनंजय पाण्डेय, नवीन वैश्वारी, वीरेन्द्र शुक्ल, कौशल किशोर चतुर्वेदी, विजय बहादुर, अरुण कुमार पांडेय और डॉ. ओपी त्रिपाठी ने भी अपनी रचनाओं से सभी को मंत्रमुग्ध किया।
कवि सम्मेलन का समापन सभी कवियों के संयुक्त राष्ट्रगान से हुआ, जिसने देशभक्ति की भावना को और भी प्रबल कर दिया। इस आयोजन ने कविता प्रेमियों को एक अनोखा अनुभव दिया और साहित्य की समृद्ध परंपरा को एक नया आयाम प्रदान किया।