जिंदगी एक सफरविचार

दुनिया की चमक दमक और रंगीनियों के पीछे की उदासी कभी महसूस किया है आपने…? पढिए इस आलेख को

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– दुर्गेश्वर राय

चंपानगरी का कोना कोना फूल मालाओं से सज चुका है। जगह-जगह होल्डिंग और बैनर लगाए गए हैं। श्वेत वर्ण के पदार्थ से सीमांकित गलियों के दोनों किनारों के ऊपर टंगे सैकड़ों रंगों से सजे दर्जनों प्रकार के ध्वज इस कदर लहरा रहे हैं जैसे मानो कोई नई नवेली दुल्हन अपने प्रिय को अंकस्थ करने को आतुर हो अपनी बाहें फैलाई खड़ी हो। मिष्ठान के दुकान तरह-तरह के रंग-बिरंगे मिठाइयों से भरे पड़े हैं। आश्चर्य की बात ये है कि हर दुकानदार का दिल आज इतना बड़ा हो गया है कि प्रत्येक ग्राहक को दो दो रसगुल्ले निःशुल्क खिला रहे हैं।

जगह-जगह तंबू लगाए गए हैं। इनमें सुबह से लेकर शाम तक लोगों का आना-जाना लगा हुआ है। पूड़ी सब्जी और अन्य व्यंजनों में जैसे गूलर का फूल पड़ गया है, जिसको जितना चाहे खाए कोई कमी नहीं है। शीतल पेय की भरमार है। प्लास्टिक के गिलासों के भी अपने-अपने नसीब हैं। कोई गिलास गोरे रंग के तो कोई सांवले रंग के, कोई पीले रंग के तो कोई नारंगी रंग के पेय को धारण कर पीने वाले के होठों से लगकर दिल तक उतरने के लिए व्याकुल हो रहे हैं। कुछ स्टॉल की भीड़ बेकाबू हो रही है, लेकिन कुछ जगहों पर अजीब सी उदासी छाई है।

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मधुशालाओं के शटर तो गिरे हैं लेकिन सुधी लोगों के पास इसकी पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता है। सभी बेरोजगार नौजवानों के हाथ में काम है। कोई पंपलेट बांट रहा है, कोई बैनर लेकर घूम रहा है, कोई झंडा लेकर बाइक राइडिंग कर रहा है, कोई गाड़ियों पर माइक बांधकर चिल्ला रहा है तो कोई स्टेज सजाकर भांति भांति के अभिनय कर रहा तो तमाम ऐसे हैं जो तल्लीनता से धूप में बैठ कर ये सब देख सुन रहे हैं। मजे की बात ये है कि कोई सड़क पर निठल्ला घूमता हुआ नजर नहीं आ रहा है।

सबके पास कोई ना कोई काम है और उस काम के बदले पर्याप्त मात्रा में पारिश्रमिक किसी न किसी रूप में प्राप्त हो रहा है, चाहें वह पैसा हो या पेट्रोल, खाने के टुकड़ों की थैलियां हों या पीने के पदार्थ की शीशियां। राजा से लेकर प्रजा तक, अमीर से लेकर गरीब तक, अधिकारी से लेकर मजदूर तक, मंत्री से लेकर संतरी तक, रिक्सा चालक से पायलट तक, सभी अपने-अपने काम में जुटे हुए हैं, व्यस्त हैं, मस्त हैं, जबरदस्त हैं। चारों तरफ खुशियों की ऐसी लहरें उठ रही है मानो सच में राम राज्य आ गया हो।

बस एक व्यक्ति (जिसे सब बेवकूफ कह रहे है) ऐसा है जो उदास बैठा सोच रहा है कि ये सारी चकाचौंध क्षणिक है। (लेखक शिक्षक हैं और एक बेहतरीन साहित्यिक चिंतक भी। साहित्य विधा के विविध प्रकारों को गूढता से पढना और उस पर समीचीन विचारोक्ती की प्रस्तुति… इनकी कमाल की विशेषता है। समाचार दर्पण परिवार के एक समर्पित सहयोगी हैं- संपादक) 

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"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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