अहमदाबाद में बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान का क्रैश एक अभूतपूर्व त्रासदी है, जिसने न सिर्फ यात्रियों बल्कि जमीन पर मौजूद दर्जनों जिंदगियों को भी लील लिया। यह लेख हादसे के संभावित कारणों, तकनीकी पहलुओं और नियति की विडंबना पर गहराई से प्रकाश डालता है।
मोहन द्विवेदी की रिपोर्ट
बीते गुरुवार का दिन भारत के लिए एक काली छाया की तरह बीता।
कुछ तस्वीरें चीखती नहीं, मगर चीखों की गूंज लिए होती हैं। यह वही तस्वीर है—जिसमें आग की लपटों में घिरा एक विमान, आसमान से ज़मीन पर गिरते हुए नज़र आता है। उस जलते हुए लोहे के पिंजरे में इंसान नहीं, ख्वाब थे। बच्चे थे, मां-बाप थे, साथी थे, और थे कुछ ऐसे लोग, जो पहली बार उड़ान भर रहे थे — शायद ज़िंदगी की दिशा बदलने के लिए।
लेकिन नियति को कुछ और ही मंज़ूर था।
अहमदाबाद से उड़ान भरते ही कुछ ही मिनटों में एयर इंडिया की फ्लाइट एआई-171 आग का गोला बन गई और सदी की सबसे भयावह त्रासदियों में तब्दील हो गई। यह महज़ एक विमान दुर्घटना नहीं थी, बल्कि एक ऐसा हादसा था जिसने दर्जनों परिवारों की दुनिया उजाड़ दी।
इस दुर्घटना में विमान में सवार लगभग सभी यात्रियों की मौत हो गई। हालांकि नियति का एक विचित्र खेल यह भी रहा कि एकमात्र यात्री विश्वास कुमार रमेश इस भीषण हादसे से जीवित निकल आए। इसे चमत्कार नहीं तो और क्या कहेंगे?
हादसे के शिकार सिर्फ यात्री नहीं थे…
हादसा महज़ आसमान तक सीमित नहीं था। विमान जब ज़मीन से टकराया, तो वह एक मेडिकल कॉलेज के हॉस्टल पर गिरा। वहां मेस में बैठकर डॉक्टर, छात्र, नर्सें दोपहर का खाना खा रहे थे। पलभर में हँसी, बातें और जीवन, सब राख बन गया। एक साथ इतने शरीर जले कि पहचान तक मुमकिन न रही। रिपोर्ट्स के अनुसार 27 लोग मौके पर ही जलकर राख हो गए और 20 से ज्यादा लोग अब भी लापता हैं। इस हृदय विदारक दृश्य को शब्दों में बयान कर पाना लगभग असंभव है।
जांच की प्रक्रिया और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोण
हालांकि दुर्घटना की असल वजह अभी स्पष्ट नहीं है, लेकिन एयरक्राफ्ट एक्सीडेंट इनवेस्टिगेशन ब्यूरो (AAIB) इसकी जांच में जुट चुका है। चूंकि हादसे में विदेशी नागरिक भी शामिल थे—53 ब्रिटिश, 7 पुर्तगाली और 1 कनाडाई नागरिक—इसलिए जांच का दायरा अब अंतरराष्ट्रीय नागरिक विमानन संगठन (ICAO) तक फैल गया है, जिसे 30 दिनों के भीतर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी।
आधुनिकता की सीमाएं और तकनीक पर सवाल
यह हादसा इसलिए भी चौंकाता है क्योंकि इसमें शामिल विमान था बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर—एक ऐसा विमान जिसे विश्व की सबसे भरोसेमंद उड़ानों में गिना जाता है। अब तक इस मॉडल के 1175 विमान 1 अरब से ज्यादा यात्रियों को सुरक्षित सफर करा चुके हैं, लेकिन यह हादसा साबित करता है कि तकनीक कितनी भी उन्नत हो, त्रुटि की संभावना हमेशा बनी रहती है।
तो सवाल यह उठता है
दोनों इंजन एक साथ फेल कैसे हुए? क्या ईंधन रिसाव हुआ? क्या लीथियम बैटरी से गर्मी बढ़ी या कंप्यूटर चिप में कोई हैकिंग या तकनीकी गड़बड़ी हुई?
कुछ विशेषज्ञ बर्ड हिट या स्पीड सेंसर फेल्योर को भी संभावित कारण मानते हैं।
पायलट सुमित सभ्रवाल, जिनके पास 8200 घंटे से अधिक उड़ान का अनुभव था, ने उड़ान भरते ही ‘मे डे’ कॉल दी थी। इससे यह तो तय है कि उन्होंने आखिरी समय तक बचाव की हरसंभव कोशिश की। पायलट की योग्यता पर सवाल उठाना अब तर्कहीन प्रतीत होता है।
संसद से लेकर जनमानस तक—सवाल ही सवाल
भारतीय संसद में भी ड्रीमलाइनर की तकनीकी खामियों पर पहले बहस हो चुकी है। अब जबकि यह त्रासदी सामने आई है, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने हादसे की न्यायिक जांच की मांग उठाई है। यह मांग इसलिए भी वाजिब लगती है, क्योंकि इतने भरोसेमंद माने जाने वाले विमान में इतने गंभीर तकनीकी दोष कैसे आए—इस पर स्पष्टता जरूरी है।
क्या यह केवल ‘दुर्घटना’ थी?
यह प्रश्न केवल तकनीकी नहीं, मानवीय और दार्शनिक भी है। नियति का यह कैसा न्याय है कि 200 से अधिक लोग एक ही उड़ान में सवार हों और सभी की मृत्यु सुनिश्चित हो? जिन शिशुओं ने अभी दुनिया को देखा भी नहीं था, उनका जीवन एक पल में खत्म हो गया।
जवाबदेही की मांग
अब आवश्यकता इस बात की है कि हादसे से जुड़ी सभी रिपोर्टें जनसामान्य के लिए सार्वजनिक की जाएं। केवल परिजनों को ही नहीं, बल्कि पूरे समाज को यह जानने का अधिकार है कि इन मौतों की वजह क्या थी। विमान कंपनियों और नागरिक विमानन मंत्रालय को अब महज़ टेक्नोलॉजी पर भरोसा करके चैन की नींद नहीं लेनी चाहिए।
अब सवाल है—क्यों?
इतना भरोसेमंद विमान आखिर कैसे गिरा? क्या इंजन फेल हुए? क्या ईंधन लीक था? क्या कंप्यूटर चिप ने धोखा दिया? या पायलट की चेतावनी को समय रहते समझा नहीं गया?
तकनीकी जांच जारी है, लेकिन उन परिवारों के लिए जिनके सपने जलकर राख हो गए, अब किसी उत्तर का कोई मतलब नहीं रह गया है।
कुछ सपने जल गए, कुछ आंखों में अब भी जल रहे हैं…
हर मौत के पीछे एक परिवार होता है, और हर परिवार के पीछे एक संघर्ष। AI-171 में बैठे 231 यात्री महज़ आंकड़े नहीं थे। कोई बेटी की शादी में शामिल होने जा रहा था, कोई विदेश में नए भविष्य की तलाश में था, तो कोई लौट रहा था—अपने घर, अपनों के पास।
और आज… घर के दरवाजे तो खुले हैं, मगर वो लौटने वाले नहीं।
एक चमत्कार, जो खामोश है…
इस हादसे में एकमात्र जीवित बचे यात्री—विश्वास कुमार रमेश। ज़ख्मों से भरे, पर आंखों में कुछ ऐसा लिए, जो कहता है कि “मैं वहां था… और सबकुछ होते देखा।”
क्या वह कभी बोल पाएंगे? शायद नहीं। कुछ घटनाएं शब्दों से परे होती हैं।
अब ज़िम्मेदारी आपकी भी है…
हमेशा की तरह कुछ हफ्तों बाद यह हादसा खबरों से उतर जाएगा। लेकिन हमें ज़िंदा रखना होगा उन जिंदगियों की याद को, उन सवालों को जो अभी भी अनुत्तरित हैं। क्योंकि एक सभ्य समाज वही होता है, जो मौत से सीखता है और भविष्य को बचाता है।