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विचार

जब धरती बनी गौमाता और राजा पृथु ने किया उसका दोहन—पौराणिक रहस्य उजागर

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पृथ्वी को ‘पृथ्वी’ क्यों कहा जाता है? जानिए पौराणिक रहस्य

पृथ्वी को “पृथ्वी” क्यों कहा जाता है? जानिए गौपुत्र धर्म दास महाराज द्वारा बताए गए पौराणिक रहस्य और राजा पृथु की कथा

आगरा। ब्रजवासी गौ रक्षक सेना भारत के राष्ट्रीय अध्यक्ष गौपुत्र धर्म दास महाराज ने हाल ही में एक अद्भुत और ज्ञानवर्धक जानकारी साझा की, जिसमें उन्होंने बताया कि आखिर पृथ्वी को “पृथ्वी” क्यों कहा जाता है। यह विषय केवल पौराणिक महत्व ही नहीं रखता, बल्कि धार्मिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

राजा वेन और पृथ्वी की पीड़ा

धर्म दास महाराज ने बताया कि सतयुग के काल में इक्ष्वाकु वंश में एक अत्याचारी राजा हुए, जिनका नाम राजा वेन था। राजा वेन के शासनकाल में अधर्म और अन्याय इस कदर बढ़ गया कि धरती ने स्वयं अपनी उर्वरता खो दी। नदियां सूखने लगीं, औषधियां और वनस्पतियां विलुप्त होने लगीं और अन्न का उत्पादन ठप पड़ गया। ऐसा प्रतीत हुआ मानो धरती ने सारे जीवनदायिनी तत्वों को अपने भीतर समा लिया हो।

राजा पृथु का प्राकट्य: धर्म की पुनर्स्थापना

इस भीषण परिस्थिति में राजा वेन के पुत्र राजा पृथु का जन्म हुआ। धर्म, ज्ञान और साहस से परिपूर्ण राजा पृथु ने स्थिति को गंभीरता से समझा और समाधान की दिशा में ठोस कदम उठाए। उन्हें अपने गुरु सनत कुमार स्वामी से अद्वितीय ज्ञान प्राप्त हुआ था, जिसने उन्हें एक आदर्श शासक के रूप में स्थापित किया।

धरती बनी गौ रूपी देवी और राजा पृथु का दोहन

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, जब राजा पृथु ने देखा कि उनकी प्रजा भूख, प्यास और कष्ट में डूबी हुई है, तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। तभी पृथ्वी देवी गौ माता के रूप में उनके समक्ष प्रकट हुईं और जीवन के लिए भागने लगीं। राजा पृथु ने धनुष-बाण उठाकर उनका पीछा किया, ताकि वे धरती से जीवन के साधन वापस प्राप्त कर सकें।

राजा पृथु ने धरती से दोहन कर उसे पुनः उर्वर, समृद्ध और जीवनदायिनी बनाया। उन्होंने धरती को उसकी पूर्व स्थिति में पुनर्स्थापित कर दिया, जिससे समस्त जीवों को जीवन और आश्रय मिला।

पृथ्वी नाम की उत्पत्ति और धार्मिक मान्यता

श्रीमद्भागवतम के अनुसार, राजा पृथु की इस महान सेवा और योगदान के कारण ही धरती को उनके नाम पर “पृथ्वी” कहा गया। वे भगवान विष्णु के 24 अवतारों में से एक माने जाते हैं। उनकी करुणा, वीरता और धर्मपरायणता की गाथाएं आज भी धर्मग्रंथों और लोककथाओं में अमर हैं।

धर्म दास महाराज का संदेश

गौपुत्र धर्म दास महाराज ने इस कथा को सामूहिक चेतना और धार्मिक ज्ञान का प्रतीक बताया। उन्होंने कहा कि यह प्रसंग हमें यह सिखाता है कि जब समाज पतन की ओर बढ़ता है, तब कोई एक धर्मशील, न्यायप्रिय और सेवाभावी नेतृत्व उसे पुनः सन्मार्ग पर ला सकता है।

➡️ठाकुर धर्म सिंह ब्रजवासी


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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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