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कविता

कविता : अखबार

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– बल्लभ लखेश्री

हर मुंडेर पर हर रोज,
अखबार आता है,
और वो कहता है ।
जुल्मों जख्म सितम का,
पैगाम लाता हूं ।
अन्याय अत्याचार का,
मजर लाता हूं ।
भोगी और गोदी का
अहसास लाता हूं।
पक्षपात चापलूसी का,
आईना लाता हूं ।
और वो कहता है …..
खाकी और खादी का ,
ठाट बाट दिखाता हूं ।
भाई भतीजावाद का ,
बंदर बांट दिखाता हूं ।
लोभ और लालच का ,
लूटपाट दिखाता हूं ।
दबंगों की कारगुजरी पर,
नकाबपोश दिखाता हूं।
और वो कहता है…….
आंखों की दहलीज पर,
मेरी आहट देख लो ।
ढोंग और पाखंड की ,
कशीदाकारी देख लो ।
कलम और कागज की,
कार गुजरी देख लो ।
सुर्ख़ियों की भूख की,
लाचारी देख लो ।
और वो कहता है…….
छलिया विज्ञापनों की,
भरमार लाता हूं।
विज्ञान को पछाड़ कर ,
पाखंड लाता हूं।
निज स्वार्थ प्रचार का,
पिटारा लाता हूं ।
लाठी जिसकी भैंस का,
नजारा लाता हूं ।
और वो कहता है……..
कलम की सौदागिरी से,
ताड़ित हूं मैं।
सीने पर खंजर से ,
प्रताड़ित हूं मैं ।
मेरे नाजायज दोहन से,
शर्मसार हूं मैं ।
नई व्याकरण की चाह में,
व्याकुल हूं मैं ।
हर मुंडेर पर हर रोज,
अखबार आता है।
हर रोज कहता है,
और वो यही कहता ।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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जिद है दुनिया जीतने की
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