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–संदीप कुमार जैन
माँ तेरा नाम ,
जब कभी आता है मेरी जुबां पर , एहसास कराता है मुझे तेरे बेटे होने का ,
अहसास कराता है मेरे कारण उठाए गए कष्टों का
ममता भरा आंचल , जिसकी छांव में कभी देखी नहीं तपन
बस एक सुखद अनुभव मिलता रहा है मुझे हर पल।
तेरे हाथों का वह दर्द निवारक स्पर्श ,
याद आता है मुझे जब कभी
मेरे अंतर्मन को हिला कर रख देता है ,
याद दिलाता रहता है तेरे उपकार के प्रति अपना जीवन निछावर करने की ,
अपने कर्तव्य को निभाने की
मगर तेरे एहसानों का कोई मूल्य नहीं
तेरे हृदय प्रेम एवं संतान के प्रति स्नेह की कीमत कौन चुका पाया है आज तक ?
बस एहसास होता है जब कभी जुबां पर आता है , माँ तेरा नाम ।
Author: samachar
"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."
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