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23 February 2025 6:59 pm

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इल्म की दरिया का नायाब मोती अपने ही अस्तित्व से जूझ रहा है… आप जानते हैं इस सपूत-ए-हिंद को… .? 

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मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट

“फैली है जिसके इल्म की दुनिया में रोशनी गुमनाम सा लगाता है वो अपने शहर में “उक्त पंक्तियां अमीर खुसरो पर पूरी तरह सत्य साबित होती हैं। देश ही नहीं बल्कि विदेशों में भी सूफी संत के नाम से पहचान रखने वाले कवि अमीर खुसरो अपनी ही धरा पर बेगाने हो गए हैं। कभी भी नेताओं और अधिकारियों ने उनकी ओर ध्यान नहीं दिया। अब लोकसभा चुनाव में खुसरो को भी उनका हक देने की मांग उठ रही है।

आज हम आपको तेरहवीं-चौदहवीं सदी (संवत १२५३ ई./६५३ हिज्री से सन १३२५ ई./७२५ हिज्री तक) के हिन्दुस्तान की उस रंगारंग हुनरमंद, शानदार अजीम शख्सियत और अमर हस्ती से मिलवाएँगे जिसने बरबादी और आबादी, तबाही और तामीर (निर्माण करना), जंग और अमन तथा दुख और सुख के बीच निडरता एवं अपने बुद्धि कौशल से एक बेहतरीन किंज़दगी के बहत्तर साल गुज़ारे। यह विओ प्रसिद्ध एवं लोकप्रिय शख़िसयत हैं – तूती-ए-हिंद यानी हज़रत अमीर खुसरो दहलवी। इनका वास्तविक अर्थात बचपन का नाम था – अबुल हसन यमीनुद्दीन मुहम्मद। यह नाम इनके पिता ने इन्हें दिया था जो बहुत ही निडर सिपहसालार एवं योद्धा थे। 

अमीर खुसरो को बचपन से ही कविता करने का शौक़ था। इनकी काव्य प्रतिभा की चकाचौंध में, इनका बचपन का नाम अबुल हसन बिल्कुल ही विस्मृत हो कर रह गया। अमीर खुसरो दहलवी ने धार्मिक संकीर्णता और राजनीतिक छल कपट की उथल-पुथल से भरे माहौल में रहकर हिन्दू-मुस्लिम एवं राष्ट्रीय एकता, प्रेम, सौहादर्य, मानवतावाद और सांस्कृतिक समन्वय के लिए पूरी ईमानदारी और निष्ठा से काम किया। 

प्रसिद्ध इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तारीखे-फिरोज शाही’ में स्पष्ट रुप से लिखा है कि बादशाह जलालुद्दीन फ़ीरोज़ खिलजी ने अमीर खुसरो की एक चुलबुली फ़ारसी कविता से प्रसन्न होकर उन्हें ‘अमीर’ का ख़िताब दिया था जो उन दिनों बहुत ही इज़ज़त की बात थी। उन दिनों अमीर का ख़िताब पाने वालों का एक अपना ही अलग रुतबा व शान होती थी।

अमीर खुसरो दहलवी का जन्म उत्तर-प्रदेश के एटा जिले के पटियाली नामक ग्राम में गंगा किनारे हुआ था। गाँव पटियाली उन दिनों मोमिनपुर या मोमिनाबाद के नाम से जाना जाता था। इस गाँव में अमीर खुसरो के जन्म की बात हुमायूँ काल के हामिद बिन फ़जलुल्लाह जमाली ने अपने ऐतिहासिक ग्रंथ ‘तज़किरा सैरुल आरफीन’ में सबसे पहले कही। तेरहवीं शताब्दी के आरंभ में दिल्ली का राजसिंहासन गुलाम वंश के सुल्तानों के अधीन हो रहा था। उसी समय अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन महमूद (मुहम्मद) तुर्किस्तान में लाचीन कबीले के सरदार थे। कुछ लोग इसे बलख हजारा अफ़गानिस्तान भी मानते हैं। चंगेज खाँ के इस दौर में मुगलों के अत्याचार से तंग आकर ये भारत आए थे। 

कुछ लोग ऐसी भी मानते हैं कि ये कुश नामक शहर से आए थे जो अब शर-ए-सब्ज के नाम से जाना जाता है। ये वस्ते एशिया के तजाकिस्तान और उज्बेकिस्तान देशों की सीमा पर स्थित है। उस समय भारत में कुतुबुद्दीन ऐबक (१२०६-१२१० ई.) का देहांत हो चुका था और उसके स्थान पर उसका एक दास शम्शुद्दीन अल्तमश (१२११-१२३६ ई.) राज्य करता था। अमीर खुसरो के पिता अमीर सैफुद्दीन अपने लाचीन वालों के साथ पहले लाहौर और फिर दिल्ली (देहली) पहुँचे। यहाँ सौभाग्य से शम्शुद्दीन अल्तमश के दरबार में उनकी पहुँच जल्दी हो गयी। अपने सैनिक गुणों के कारण वे दरबार में फ़ौजी पद पर सरदार बन गए। शम्शुद्दीन अल्तमश के पश्चात शरीफ और अम्न पंसद बादशाह नासिरुद्दीन महमूद ने इन्हें नौकरी दी। 

गुलाम खानदाने शाही के एक ज़बरदस्त और दबदबे वाले तख्तनशीं बलबन ने अमीर को औहदा और पटियाली जिला एटा में गंगा किनारे जागीर दी।

अमीर खुसरो भारतीय परम्परा और परिवेश से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने इस्लामी परम्पराओं को भारतीय विरासत के अंदर समाहित करने का प्रयास किया। उन्होंने दो विभिन्न संस्कृतियों, दो विभिन्न धार्मिक विश्वासों और परम्पराओं में परस्पर सौहार्द, प्रेम और सामंजस्य का वातावरण तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। 

संगीत के क्षेत्र में अमीर खुसरो ने अपने समन्वयकारी प्रवृत्ति के अनुकूल अनेक चमत्कार किए। उन्होंने भारतीय संगीत में कई राग-रागनियों का आविष्कार किया, कई वाद्य यन्त्रों को ईजाद करने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है।

इल्म देने वाली शख्सियत को अपनी जमीं पर ही भुला दिया गया

भारतीय साहित्य क्षेत्र में अमीर खुसरो एक जगमागते हुए सितारे हैं। 

जनपद गंगां युमनी संस्कृति का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। कासगंज मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर की दूरी पर स्थित तहसील पटियाली के मोहल्ला किला परिसर में अमीर खुसरों का 27 दिसंबर को जन्म हुआ। 

खुसरो दुनिया को शायरी, गजल, वाद्ययंत्र, कव्वाली जैसी विधाएं देने वाले शख्स के रूप में पहचाने जाते हैं। लेकिन जनप्रतिनिधियों और शासन द्वारा रुचि न लेने से ऐसी इल्म देने वाली शख्सियत को अपनी जमीं पर ही भुला दिया गया।

जिला प्रशासन ने नहीं ली सुध

जहां खुसरो का जन्म हुआ वह स्थल ही अतिक्रमण का शिकार है। वहीं कुछ प्रशासक ऐसे भी आए जिन्होंने सूफी संत अमीर खुसरो के महत्व को ध्यान में रखते हुए उनकी स्मृति में कुछ कदम भी उठाये, जिसके चलते कस्वा पटियाली में प्रतिवर्ष अमीर खुसरो महोत्सव भी स्थानीय स्तर पर आयोजित किया गया लेकिन कुछ वर्षों बाद उसका आयोजन भी बंद हो गया। 

वहीं जिला प्रशासन ने भी अमीर खुसरो के नाम से एक पार्क और लाइब्रेरी का निर्माण कराया, परंतु जनप्रतिनिधियों के रुचि न लेने व प्रशासनिक स्तर पर रख रखाव व देखभाल उचित ढंग से न हो पाने के कारण दोनों ही स्मारक अस्तित्वहीन होते चले जा रहे हैं। जिससे खुसरो अपनी ही घरती पर बेगाने से हो गए हैं।

अमीर खुसरो भारतीय परम्परा और परिवेश से बहुत प्रभावित थे और उन्होंने इस्लामी परम्पराओं को भारतीय विरासत के अंदर समाहित करने का प्रयास किया। 

उन्होंने दो विभिन्न संस्कृतियों, दो विभिन्न धार्मिक विश्वासों और परम्पराओं में परस्पर सौहार्द, प्रेम और सामंजस्य का वातावरण तैयार करने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। संगीत के क्षेत्र में अमीर खुसरो ने अपने समन्वयकारी प्रवृत्ति के अनुकूल अनेक चमत्कार किए। उन्होंने भारतीय संगीत में कई राग-रागनियों का आविष्कार किया, कई वाद्य यन्त्रों को ईजाद करने का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है।

खुसरो फारसी के ही महान कवि नहीं थे, उन्हें अपनी मातृभाषा हिन्दी (हिन्दवी) से भी बहुत प्रेम था। खुसरो ने दिल्ली के आस-पास की बोली को जिसे आगे चलकर खड़ी बोली का नाम दिया गया संवारने, सुधारने और साहित्यिक स्वरूप देने का सर्वप्रथम प्रयास किया। कालांतर में यही भाषा अपने परिनिष्ठित रूप में आधुनिक हिन्दी और उर्दू का आधार बनी और स्वतंत्र भारत के संविधान में इसी हिन्दी को देश की राजभाषा होने का गौरव प्राप्त हुआ।

सुल्तान की महफिल में खुसरो नई-नई गजलें प्रस्तुत करते थे। अलाउद्दीन खिलजी के युग में भी खुसरो दरबार से संबंधित रहे। मुल्तान से लौटने के पश्चात खुसरो ने लिखा है कि “मुझे ईरानी संगीत के चार उसूलों, 12 पर्दों तथा सूक्ष्म रहस्य का ज्ञान है।’’

आज भी शेख निजामुद्दीन चिश्ती की दरगाह में खुसरो के ब्रजवासी गीत परंपरा के रूप गाए जाते हैं। समारोह, वाद्ययंत्र, उर्दू कविता, संगीत, और सूफ़ी तत्त्वों की समन्वयित रचनाएँ – ये सब अमीर खुसरो की संगठन क्षमता और साहित्यिक ज्ञान का प्रतीक हैं। उनकी शानदार कविताएँ और संगीत रचनाएँ उनके समय से आज तक चर्चित हैं और उन्हें एक महान कवि और संगीतकार के रूप में मान्यता दी जाती है।

अमीर खुसरो अपने साहित्यिक और संगीतीय योगदान के माध्यम से भारतीय साहित्य और संगीत को नई ऊँचाइयों तक ले गये। उनकी कविताएँ और संगीतीय रचनाएँ उनके समय से आज तक उनके प्रशंसकों के द्वारा पसंद की जाती हैं और उन्हें एक महान कवि और संगीतकार के रूप में याद किया जाता है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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