– वल्लभ लखेश्री
हिंदी मनडो मोवणी,
आखर लागे अंग ।
पढ़ें जिनासूं जाण जो,
कैडो आवे रंग ।
संस्कृत री लाडली,
भारत भू री पिराण।
धिन हिंदी थारै नूर ने,
जगत करै बखान ।
पानै पानै उपकार रा,
मिल रिया प्रमाण ।
बांता बतावें सार री,
ज्यूं रतना री खाण।
कबिता अर काणियां,
ढोला मारु री प्रित ।
कवि जणै रे कंठा सूं,
बहे अमी रस गीत ।
हिंदी भाषा मन मोहिनी,
सगंला रे मन भाया ।
अंग्रेजी रूसी चीनडी,
अलगी अलगी जाय ।
दिनकर निराला प्रेमचंद,
माया मीरा कबीर।
इण सगंला री लाडली,
धिन हिंद वाणी अमीर।
हिंदी री महिमा बढै,
दिन दिन अपरम पार।
म्हारे हिवड़े री विणती ,
सुण जो सिरजन हार ।
97 पाठकों ने अब तक पढा
[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]