भारत माता का वंदन ; कविता

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प्रमोद दीक्षित मलय

भारत माता के वंदन में उपवन महक रहे।
कलरव करतीं सरिताएँ, नभ पंछी चहक रहे।।

सूरज ने माथे मल दी कुमकुम केसर रोली।
सँवार दी वसंत ने सुरभित सुमनों से डोली।
रत्न भेंट कर सागर नित माँ के चरण पखारे,
करे अर्चना हिमवान, धन-धान्य से भर झोली।
अभिनंदन को आतुर पलाश-मन, वन दहक रहे।

कोटि कंठ गा रहे गीत समरसता राग भरे।
शुभ सरिता रहे प्रवाहित उर समता आग भरे।
हम रोपें खुशियों के पौधे माँ के आँचल में,
देह-गेह में सुमन खिलें सुवासित पाग धरे।
रोकें उन कदमों को, हो अमर्यादित बहक रहे।।
भारत माता के वंदन में उपवन महक रहे।।……(2)

अमृत काल आजादी का खुशियों के दीप जले।
नमन वीर शहीदों को, गौरव गाथा प्रीत पले।
फाँसी के फंदे चूमे, झूम गये जो हँसकर,
वे तारे बन चमक रहे, उर के मनमीत भले।
बलिदान त्याग तप से उनके, तन-मन लहक रहे।।
भारत माता के वंदन में उपवन महक रहे।।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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