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प्रमोद दीक्षित मलय
कविता की मधुरिम भाषा हो तुम।
प्रेमिल हृदयों की आशा हो तुम।
सौंदर्य शास्त्र का आधार सुखद,
सुंदरता की परिभाषा हो तुम।।
पग चिह्न बनाती तुम खास डगर।
उर उपजाती उत्साह बन रविकर।
थके चरण, हारे मन में हरदम,
जीवन का रचती विश्वास प्रखर।।
धरा में हो तुम चंद्र ज्योति विमल।
जीवन तुम सुमधुर शुभ प्रीति प्रबल।
भावों की सुरभित सरिता में तुम,
नेह-धार मृदु, प्रेम सुधा सम्बल।।
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