विचार

मणिपुर में कोई कृष्ण नहीं…द्रौपदियां कब तक सरेआम चीरहरण की शिकार होती रहेगी ?

मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट 

द्वापर युग में पांडवों की धर्मपत्नी द्रौपदी का चीरहरण नहीं किया जा सका, क्योंकि श्रीकृष्ण ने अपनी माया से उन्हें बेइज्जत होने से बचा लिया था, लेकिन कलियुग के मणिपुर में कोई ‘कृष्ण’ नहीं बन पाया, नतीजतन 3 महिलाओं को निर्वस्त्र कर सार्वजनिक तौर पर घुमाया गया और एक 21 साला युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म किया गया। यह है नए भारत के एक राज्य की सोच की एक बानगी…! यह घिनौनी हरकत और जघन्य आपराधिक घटना बीती 4 मई की है और हम 21 जुलाई को विश्लेषण कर रहे हैं, क्योंकि देश के प्रधानमंत्री तक को इस शर्मनाक, अमानवीय, अश्लील घटना की जानकारी नहीं थी। उनके बयान से साफ है कि इस घटना ने उन्हें अभी पीडि़त और क्रोधित किया है। हालांकि हम यह मानने को तैयार नहीं हैं कि प्रधानमंत्री को ऐसी वारदात का इल्म नहीं होगा। कमोबेश भाजपाई मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने ब्रीफ किया होगा! खुफिया एजेंसियों के जो प्रमुख नियमित तौर पर प्रधानमंत्री को ब्रीफ करते रहते हैं, क्या उन्हें ऐसी खौफनाक घटना की जानकारी नहीं थी? तो फिर मणिपुर सरीखे अशांत और हिंसा से जल रहे राज्य में खुफिया-तंत्र क्या कर रहा है? मणिपुर की राज्यपाल भी महिला और केंद्र की प्रतिनिधि हैं।

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क्या उन तक भी ऐसे भीडक़ांड की भनक तक नहीं पहुंची, क्योंकि औरतों के साथ ऐसा पाशविक सलूक, राज्य की राजधानी इंफाल से, 40-45 किलोमीटर दूर ही किया गया था? अकर्मण्यता की पराकाष्ठा है कि बीती 4 मई को घटना हुई, लेकिन 18 मई को जीरो प्राथमिकी दर्ज की गई और फिर 21 जून को नियमित प्राथमिकी दर्ज हुई, लेकिन 19 जुलाई तक सन्नाटा पसरा रहा। मुख्यमंत्री की सफाई है कि ऐसे ही 100 केस मणिपुर में हुए हैं, इसलिए इंटरनेट बंद करना पड़ा है। एक ही केस की बात न करें, जमीनी हकीकत को देखें। बहरहाल ट्विटर के जरिए यह वीडियो सामने आया, तो सिर्फ हैवानियत और दरिंदगी ही निर्वस्त्र नहीं हुईं, सब कुछ बेनकाब हो गया। हम शुक्रगुजार हैं कि देश के प्रधान न्यायाधीश जस्टिस चंद्रचूड़ के संज्ञान में यह अश्लील वीडियो आया और उन्होंने इसे संवैधानिक, मानवाधिकारों का हनन माना। वह भी क्षुब्ध हुए, क्योंकि एक लोकतांत्रिक देश में ऐसी ‘राक्षसी हरकतें’ स्वीकार्य नहीं हैं। देश का वैश्विक मान-सम्मान निर्वस्त्र हो गया। हमारी सभ्यता, इनसानियत, सुरक्षा बलों, पुलिस और उस इलाके की आबादी भी निर्वस्त्र हो गई। महिलाएं रोती-चीखती रहीं, गिड़गिड़ाती रहीं, लेकिन चौतरफा इलाका मूकदर्शक बना रहा।

नारी की इज्जत, गरिमा तार-तार कर दी गई। सिर्फ यह जघन्य अपराध करने वाली भीड़ के चेहरे, हैवान-शैतान की तरह, हंसते रहे। बेशक प्रधानमंत्री मोदी ने गुनहगारों को नहीं बख्शने का बयान दिया है, उसी के बाद मुख्य आरोपित समेत कुल 4 दरिंदों को गिरफ्तार किया गया है। मुख्यमंत्री ने हैवानों को फांसी की सजा दिलवाने का आश्वासन दिया है, लेकिन मुख्यमंत्री पर भरोसा ही टूट चुका है। 78 दिन के बाद एक वीडियो के जरिए मणिपुर का यह चीरहरण और भयावह सच सामने आया है। इसकी बुनियादी जवाबदेही किसकी है? प्रधानमंत्री और गृह मंत्री इस पर मंथन करें। वे स्वीकार करें अथवा न करें, लेकिन मणिपुर में उनकी डबल इंजन की सरकार के मुख्यमंत्री राज्य को संभालने में नकारा, नाकाम और अक्षम रहे हैं। उन्हें बदला नहीं गया, तो मणिपुर एक राष्ट्रीय मुद्दा बन जाएगा और सत्ताधीशों के हाथ से बहुत कुछ फिसल सकता है।

नारी-सम्मान को जिस तरह नग्न किया गया, वह मैतेई-कुकी जातीय टकराव से कहीं ज्यादा भयावह है। दरअसल इसके गर्भ में धर्म और जातीय आरक्षण हैं। बीते 80 दिनों से जो हिंसा, आगजनी, लूटपाट का दौर जारी है, उसका प्रतिशोध यह नहीं हो सकता कि कोई औरतों को ही सरेआम निर्वस्त्र कर दे। आरक्षण नीति पर मंथन होना चाहिए।

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