google.com, pub-2721071185451024, DIRECT, f08c47fec0942fa0
खास खबर

मैतेई न कुकी, मर गई इंसानियत ; मणिपुर को 77 दिनों से कौन जला रहा है ?

IMG-20250425-WA1620
IMG-20250425-WA1484(1)
IMG-20250425-WA0826
IMG-20250502-WA0000
Light Blue Modern Hospital Brochure_20250505_010416_0000
Green Modern Medical Facebook Post_20250505_080306_0000
132 पाठकों ने अब तक पढा

आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

मरी हुई मानवता पर चर्चा सबसे जरूरी है। मानवता न बचे तो मानव जीवन बेकार है। मणिपुर में बहन-बेटियों के वायरल वीडियो देख आपको ऐसा ही लग रहा होगा। कहीं रिलीफ कैंप में बैठी उन महिलाओं की आत्मा हमें धिक्कार रही है। कितने हैवान हो गए हैं हम। ये बात न मैतेई की है, न कुकी जनजाति की। ये बात है इंसानियत की जो मर गई है। तीन मई से आज 20 जुलाई की शाम तक 77 दिन हो चुके हैं। मणिपुर जल रहा है। लगभग 150 लोग मारे जा चुके हैं। सैंकड़ों घायल हैं। बंदूक की आग ठंडी नहीं हुई है। 2000 हथियार जब्त होने के बाद भी मणिपुर जल रहा है। एक दूसरे के खून के प्यासे भेड़ियों ने कत्लेआम, लूट के नए कीर्तिमान बना डाले लेकिन चार मई को जो हुआ वो आपके-हमारे मानस पटल पर अमिट हो जाएगा। हम उस वीडियो को ब्लर करके भी दिखाना नहीं चाहते। निर्वस्त्र बहनों के साथ 90-100 हैवानों की करतूत कैसे दिखाएं जो उनके जिस्म को नोचने पर आमादा हैं। भाई और जन्म देने वाले पिता ने बचाना चाहा तो उन्हें गाजर मूली की तरह काट दिया गया। फिर जंगल में ले जाकर उनमें से एक के साथ निर्ममता से गैंगरेप किया गया।

प्रधान सेवक की टूटी चुप्पी

उनकी चीत्कार जब व्हाट्सएप्प और इंटरनेट के जरिए दिल्ली पहुंची तो हमारे चीफ जस्टिस भी दहल गए। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को बुलाकर बताया कि ये जो हुआ है वो बर्दाश्त से बाहर है। सरकार से कहो जल्दी कुछ कदम उठाए नहीं तो हम कार्रवाई करेंगे। फिर देखिए हमारे प्रधान सेवक को। मणिपुर पर 77 दिनों की चुप्पी के बाद नरेंद्र मोदी भी फट पड़े। उनको पता था कि संसद में छीछालेदर होने वाली है। मणिपुर में भी भाजपा की सरकार है। पढ़िए मोदी ने क्या कहा.. मेरा हृदय पीड़ा से भरा हुआ है, क्रोध से भरा हुआ है। मणिपुर की जो घटना सामने आई है, किसी भी सभ्य समाज के लिए शर्मसार करने वाली घटना है। पाप करने वाले, गुनाह करने वाले कितने हैं कौन हैं, वो अपनी जगह है लेकिन ये पूरे देश की बेइज्जती है। मैं सभी मुख्यमंत्रियों से आग्रह करता हूं कि वो राज्य में कानून-व्यवस्था को सख्त करें। मैं देशवासियों को विश्वास दिलाना चाहता हूं कि किसी गुनहगार को बख्शा नहीं जाएगा। मणिपुर की बेटियों के साथ जो हुआ है, इसे कभी माफ नहीं किया जा सकता है।

बीरेन सिंह की थोथली दलील

उधर मणिपुर के सीएम एन बीरेन सिंह भी सामने आ गए और दोषियों को फांसी की सजा देने की बात करने लगे। शर्म आती है हुक्मरानों पर। चाहे वो दिल्ली के हों या मणिपुर के। और बीरेन सिंह तो ड्रामेबाजी के लिए जाने जाते हैं। याद है 30 जून को क्या हुआ था। इन्होंने इस्तीफा पत्र लिखा, अपने घर पर महिला समर्थक बुला लिए और कथित महिला समर्थकों ने उनके इस्तीफे के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। बहन-बेटियों की आबरू के टुकड़े-टुकड़े होने के बाद ये मुख्यमंत्री किसी विरोधी दल के नेता की तरह बात कर रहे। फांसी की सजा कौन दिलवाएगा भाई। आपने तो एक्शन भी नहीं लिया। अमित शाह और आर्मी चीफ कई दिनों तक इंफाल में रहे, लौट आए लेकिन हिंसा की आग ठंडी नहीं पड़ी। कौन जिम्मेदार है इसके लिए। जवाब Indian National Development Inclusive Alliance यानी INDIA से लेने की जरूरत नहीं है। ये तो मोदी मंत्रिमंडल के सदस्य आरके रंजन ने ही बता दिया था जब इंफाल में उनके घर को स्वाहा कर दिया गया। आरके रंजन ने बीरेन सिंह पर ही सवाल उठा दिए। उन्होंने साफ बता दिया कि मणिपुर में कानून और व्यवस्था फेल है।

सवाल तो मोदी से भी होंगे

अब सवाल तो प्रधान सेवक पर भी उठेंगे ही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीरेन सिंह पर कार्रवाई क्यों नहीं की? इसलिए कि भारतीय जनता पार्टी की छवि खराब होगी? क्या इसलिए कि केंद्र सरकार मणिपुर में सबकुछ अंडर कंट्रोल दिखाना चाहती है? हद दो तब हो गई जब यूरोपीय संसद में मणिपुर हिंसा पर चर्चा होती है, भारत सरकार से इस पर रोक लगाने की मांग की जाती है। आप जानते हैं यूरोपीय संसद कहां है। फ्रांस के स्ट्रासबर्ग में। वही देश जहां मोदी होकर आए हैं। जहां का सर्वोच्च सम्मान हासिल किया है। उस पर तो खूब बोले लेकिन मणिपुर पर चुप्पी 77 दिनों की आग में चिंगारी लगने के बाद टूटी।

मणिपुर में संविधार का अनुच्छेद 355 लगाना चाहिए। हद दो तब हो गई जब हिंसा शुरू होने के दस दिनों बाद बीरेन सिंह की पार्टी के एक विधायक और पुलिस चीफ ने बताया कि राज्य में धारा 355 लगाया गया है और इसी के तहत केंद्र सरकार ने सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति की है। हमें भी हैरानी हुई। क्योंकि केंद्र सरकार ने तो किसी तरह की अधिसूचना जारी की नहीं है। हो सकता है बताने में जल्दबाजी कर दी हो। संविधान के अनुच्छेद 355 में प्रावधान है कि केंद्र सरकार किसी भी राज्य को बाहरी हमले या आंतरिक अव्यवस्था से बचाएगी। दरअसल इस अनुच्छेद से धारा 356 का रास्ता साफ होता है जिसमें किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान है। क्या मणिपुर इसके लिए फिट केस नहीं है? जब मोदी के मंत्री खुलेआम बीरेन सिंह के फेल बता रहे हों, जहां सीआरपीएफ और असम रायफल्स के जवानों पर हमले हो रहे हों, हथियार लूटे जा रहे हों, मर्डर और महिलाओं की अस्मत लूटी जा रही हो, उस सरकार को बने रहने का क्या हक है?

वायरल वीडियो से कई सवाल पैदा होते हैं। इसके जवाब बीरेन सिंह हों या मोदी सरकार, किसी को देने होंगे।

  1. घटना थॉउबल जिले में चार मई को हुई, 18 मई को जीरो एफआईआर कांगपोकपी जिले में दर्ज हुई और सरकार सोती रही। क्या हम वीडियो बाहर आने का इंतजार कर रहे थे। और वीडियो आते ही एक को पकड़ लिया। ये आँखों में धूल झोंकने जैसा नहीं है क्या?
  2. गांव में हुए हमले में पांच लोगों का परिवार जान बचाकर जंगल में छिपता है। पुलिस उन्हें बचा लेती है और भीड़ पुलिस से उन्हें छुड़ाती है। दो पुरुषों को मार डालती है, तीन महिलाों को नग्न कर परेड कराती है। एक के साथ गैंगरेप होता है और पुलिस चुप रह जाती है। उसी समय राज्य सरकार ने केंद्र से मदद क्यों नहीं मांगी?
  3. 800 से 1000 की भीड़ हथियारों के साथ गांव में घुसती है। उनके हाथों में एसएलआर से लेकर एके 47 जैसे घातक हथियार हैं। तो लोकल पुलिस दो महीने में अब तक किसी को अरेस्ट क्यों नहीं कर सकी? खासकर तब जब आर्मी और अर्धसैनिक बलों की तैनाती की गई है।

एक सवाल कुकी और मैतेई संगठनों से भी है जो महिलाओं को ढाल बनाकर हिंसा को हवा देने में लगे हैं। खबरों के मुताबिक कई बार सुरक्षाबलों को महिलाओं की अग्रिम पंक्ति ने आगे बढ़ने से रोक दिया और कई बार महिलाओं ने खुद ही कपड़े उतारने की धमकी दे डाली। महिलाओं को ढाल बना कर हमला करने की बात आर्मी खुद बता चुकी है। यहां तक कि सेना के कब्जे से खूंखार आतंकियों को छुड़ा लिया गया क्योंकि महिलाओं ने उन्हें घेर लिया। आर्मी ने इसका वीडियो भी जारी किया था। ये मैतेई उग्रवादी संगठन का समर्थन कर रही थीं। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि दो कुकी महिलाओं के साथ जो हुआ उसे हम बदले की कार्रवाई जैसी सोच बताकर खारिज कर दें। उन हैवानों की जगह कहीं और है।

अब एक बड़ा सवाल। जब मोदी सरकार उल्फा, मिजो और नगा संगठनों से शांति समझौता कर सकती है तो मणिपुर के जातीय संघर्ष को समय रहते रोकने में क्यों सफल नहीं हो पाई। क्या सिर्फ कोर्ट के फैसले से आग लगी जैसी हवा बनाई गई है। आम तौर पर यही माना जाता है कि मणिपुर हाई कोर्ट ने 19 अप्रैल को दिए फैसले में मैतेई को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का फैसला किया जिसके बाद कुकी नाराज हो गए और दंगे फैल गए। ऐसा नहीं है। कुछ बानगी देख लीजिए..

  1. एन बीरेन सिंह की सरकार लगातार कुकियों पर अफीम और हथियारों की तस्करी का आरोप लगाती रही है। फिर रिजर्व फॉरेस्ट एरिया बढ़ाने के लिए कई कुकी गांवों को खाली कराने का आदेश जारी किया गया। आदिवासी संगठनों का कहना है कि ये फॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 के खिलाफ है।

2.मामला गरम होता देख बीरेन सिंह ने 10 मार्च के दिन हिल एरिया में धारा 144 लागू कर दी। दो कुकी संगठनों- कुकी नेशनल आर्मी और जोमी रिवोल्यूशनरी आर्मी के साथ हुए समझौते को भी रद्द कर दिया। एक झटके में इंफाल, नई दिल्ली और कुकियों के बीच हुआ समझौता खत्म। बीरेन सिंह सरकार ने कहा कि प्रदर्शनकारी इन आतंकी संगठनों से मिले हुए हैं।

3.बीरेन सिंह सरकार ने आरोप लगाया कि म्यांमार की सीमा से कुकी संगठनों को भड़काया जा रहा है। हथियार दिए जा रहे हैं।

  1. म्यांमार से आने वाले चिन कुकी शरणार्थियों का इस्तेमाल राजनीति साधने के लिए किया गया। मैतेई समुदाय में ऐसा संदेश गया कि अवैध तरीके से आ रहे चिन कुकी उन्हें उनकी जमीन से बेदखल कर देंगे।

अब हिंसा में जल रहे मणिपुर में शांति के लिए मोदी सरकार को आगे आना पड़ेगा। कुकी और मैतेई संगठनों के साथ बातचीत करनी चाहिए। दोनों समुदायों की गलतफहमियां दूर होनी चाहिए। कार्रवाई न करने के वादे के साथ अवैध हथियारों को जमा करने की मियाद बढ़ानी चाहिए। इसमें सिविल सोसायटी की भूमिका अहम हो सकती है।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

[embedyt] https://www.youtube.com/embed?listType=playlist&list=UU7V4PbrEu9I94AdP4JOd2ug&layout=gallery[/embedyt]
Tags

samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की
Back to top button
Close
Close