भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव पर एक गहन विश्लेषण जिसमें पाकिस्तान के जिद्दी रुख और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उठाए जा रहे निर्णायक कदमों की विस्तार से चर्चा की गई है।
➡️अनिल अनूप
भारत और पाकिस्तान के संबंध शुरू से ही संवेदनशील रहे हैं। कश्मीर मुद्दा, सीमा पार आतंकवाद, और राजनीतिक अस्थिरता जैसे मुद्दों ने इस तनाव को लगातार बढ़ाया है। वर्तमान समय में एक बार फिर दोनों देशों के बीच संबंधों में ठंडापन देखने को मिल रहा है। पाकिस्तान की जिद और भारत की स्पष्ट नीति ने इस संघर्ष को एक नए मोड़ पर ला खड़ा किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत जिस प्रकार से आक्रामक कूटनीति और सख्त रुख अपना रहा है, वह आने वाले समय की दिशा तय कर सकता है।
वर्तमान तनाव की पृष्ठभूमि
सबसे पहले, यह समझना आवश्यक है कि हाल के तनाव की जड़ क्या है। कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से पाकिस्तान बौखलाया हुआ है। उसने इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उठाने की भरपूर कोशिश की, लेकिन उसे खास सफलता नहीं मिली। इसके अलावा पाकिस्तान की सेना और आईएसआई ने फिर से सीमा पार घुसपैठ और आतंकवाद को बढ़ावा देना शुरू कर दिया है।
साल 2024 के अंत में पुंछ और राजौरी क्षेत्रों में हुए आतंकी हमलों ने इस बात को और स्पष्ट किया कि पाकिस्तान अब भी अपनी पुरानी नीतियों से पीछे नहीं हटा है। भारत ने इन घटनाओं को सीधे-सीधे पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद करार दिया और जवाबी कार्रवाई में आतंकियों के खिलाफ बड़े ऑपरेशन चलाए गए।
पाकिस्तान का जिद्दी रवैया
दूसरी ओर, पाकिस्तान की जिद स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। वैश्विक मंचों पर बार-बार बेइज्जती झेलने के बावजूद वह भारत के खिलाफ गलत सूचनाओं का प्रचार करता रहा है। इसके पीछे एक मुख्य कारण उसकी घरेलू राजनीति है। वहां की सेना और कट्टरपंथी ताकतें आम जनता का ध्यान आंतरिक समस्याओं से हटाने के लिए भारत विरोधी माहौल बनाती रहती हैं।
इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था चरमराई हुई है। आईएमएफ से बार-बार ऋण लेना, बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी और राजनीतिक अस्थिरता ने आम जनता को निराश कर दिया है। ऐसी स्थिति में भारत विरोधी प्रचार एक सस्ता और त्वरित उपाय बन गया है।
प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीति इस पूरे घटनाक्रम में निर्णायक भूमिका निभा रही है। उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि आतंक और वार्ता साथ-साथ नहीं चल सकते। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान को हर स्तर पर कूटनीतिक तौर पर अलग-थलग करने की कोशिश की है।
कूटनीतिक कदम
1. अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रहार: भारत ने संयुक्त राष्ट्र और अन्य वैश्विक मंचों पर पाकिस्तान के दोहरे चरित्र को उजागर किया है।
2. एफएटीएफ पर दबाव: भारत ने पाकिस्तान को फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट में बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयास किए।
3. सार्क का बहिष्कार: भारत ने सार्क शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने से मना कर पाकिस्तान को क्षेत्रीय स्तर पर भी अलग-थलग कर दिया।
सैन्य और सुरक्षा पहल
1. सर्जिकल स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक: उरी और पुलवामा हमलों के बाद भारत ने जिस प्रकार जवाबी कार्रवाई की, वह इतिहास में दर्ज हो चुका है।
2. सीमा पर सख्ती: एलओसी पर सेना को फ्री हैंड देने के साथ-साथ आधुनिक हथियार और तकनीक से लैस किया गया है।
3. अंतरराष्ट्रीय सहयोग: अमेरिका, फ्रांस और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों से सुरक्षा सहयोग को मजबूत किया गया है।
जहाँ एक ओर पाकिस्तान अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए भारत को दोषी ठहराता है, वहीं दूसरी ओर भारत, विशेष रूप से प्रधानमंत्री मोदी, एक स्पष्ट और दृढ़ नीति के तहत आगे बढ़ रहे हैं। इसके अतिरिक्त, भारत ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि अब पुरानी तरह की ‘संयम’ वाली नीति नहीं अपनाई जाएगी। इसके विपरीत, यदि पाकिस्तान ने कोई दुस्साहस किया, तो उसे उसी की भाषा में उत्तर दिया जाएगा।
मीडिया और जनभावना
भारत में जनता का रुझान भी अब बदल चुका है। प्रधानमंत्री मोदी की आक्रामक और स्पष्ट नीति को काफी समर्थन मिला है। वहीं, मीडिया भी अब पाकिस्तान की चालों को तुरंत उजागर करता है। सोशल मीडिया पर भी राष्ट्रवाद की भावना अधिक प्रबल होती जा रही है।
आगे की राह
भारत को अब अपनी नीति में निरंतरता बनाए रखनी होगी। पाकिस्तान को यह स्पष्ट संदेश देना होगा कि आतंकवाद और बातचीत कभी एक साथ नहीं चल सकते। इसके अलावा, वैश्विक मंचों पर कूटनीतिक प्रयासों को और तेज किया जाना चाहिए।
वहीं पाकिस्तान के लिए एक मात्र विकल्प है – अपने आंतरिक हालातों में सुधार, आतंक के रास्ते से दूरी और पड़ोसियों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंधों की स्थापना। हालांकि, इसके आसार फिलहाल बेहद कम दिखाई दे रहे हैं।
अंततः यह कहना गलत नहीं होगा कि भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव तब तक बना रहेगा जब तक पाकिस्तान अपने अड़ियल और आतंक समर्थक रवैये को नहीं छोड़ता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियां इस दिशा में ठोस और सशक्त दिखाई देती हैं। अब आवश्यकता है कि देश के नागरिक, कूटनीतिज्ञ, और सुरक्षा एजेंसियां इस नीति को और अधिक मज़बूती प्रदान करें।