बीकानेर में हर वर्ष नृसिंह जयंती पर हिरण्यकश्यप-वध की प्रतीकात्मक लीला का आयोजन होता है। जानिए इस ऐतिहासिक परंपरा के अनोखे पहलुओं के बारे में, जहां धर्म-अधर्म का युद्ध सड़कों पर जीवंत होता है।
सुरेंद्र प्रताप सिंह की रिपोर्ट
हर वर्ष बीकानेर की गलियों में धर्म और अधर्म के संघर्ष का जीवंत चित्र प्रस्तुत होता है। नृसिंह जयंती के पावन अवसर पर यहां भगवान नृसिंह और हिरण्यकश्यप के बीच प्रतीकात्मक युद्ध की ऐतिहासिक परंपरा निभाई जाती है। यह न सिर्फ धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक विरासत का जीवंत उदाहरण भी है।
दोपहर से शुरू होता है हुंकार का दौर
जैसे ही दोपहर होती है, काले वस्त्रों में सिर पर दो सिंग लगाए और मुंह पर भयानक मुखौटा पहन कर हिरण्यकश्यप का स्वरूप सड़कों पर निकल पड़ता है। हाथ में बँटा हुआ कपड़े का कोड़ा लिए वह गली-गली घूमता है, हुंकार भरता है और प्रतीकात्मक रूप से राहगीरों को डराता है। बच्चे और युवा उसके पीछे दौड़ लगाते हैं और पारंपरिक ध्वनि ‘हिरणा किसना गोविन्दा प्रहलाद भजै’ गूंजने लगती है।
कोड़े की मार और सटाक की आवाज
इस प्रतीकात्मक प्रदर्शन में हिरण्यकश्यप सड़कों पर दौड़ता है और प्रत्येक आने-जाने वाले पर कोड़े की हल्की मार करता है। कई श्रद्धालु इस कोड़े को सिर पर झेलकर उसे आशीर्वाद के रूप में स्वीकार करते हैं। कोड़े की सटाक की आवाज माहौल को और भी जीवंत बना देती है।
सूर्यास्त पर होता है प्रतीकात्मक युद्ध
जैसे-जैसे सूर्य अस्त की ओर बढ़ता है, नगर के प्रमुख नृसिंह मंदिरों में हजारों की संख्या में लोग एकत्र होते हैं। मंच पर हिरण्यकश्यप और नृसिंह अवतार आमने-सामने आते हैं। प्रहलाद की भक्ति और अत्याचार के खिलाफ न्याय का संदेश देने वाली यह लीला धार्मिक उत्सव से कहीं अधिक एक सांस्कृतिक समारोह बन जाती है। अंत में, नृसिंह हिरण्यकश्यप का प्रतीकात्मक वध करते हैं। इसके बाद नृसिंह अवतार की आरती होती है और प्रसाद का वितरण किया जाता है।
कहां-कहां होता है आयोजन
यह परंपरा बीकानेर के डागा चौक, लखोटिया चौक, लालाणी व्यास चौक, नत्थूसर गेट, दमाणी चौक, और गोगा गेट स्थित नृसिंह मंदिरों में विशेष रूप से देखने को मिलती है। इनमें डागा चौक और लखोटिया चौक का आयोजन ऐतिहासिक महत्व रखता है।
थंब से प्रकट होते हैं भगवान
परंपरा के अनुसार, मंदिर के अंदर स्थित स्तंभ (थंब) से भगवान नृसिंह प्रकट होते हैं, जो भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए अवतार लेते हैं। यह दृश्य भक्ति, श्रद्धा और सामाजिक संदेशों से ओतप्रोत होता है।