मोहन द्विवेदी की खास रिपोर्ट
महाकुंभ का आयोजन केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता, संस्कृति, और आध्यात्मिक परंपरा का जीवंत प्रतीक है। यह आयोजन न केवल भारत के लिए, बल्कि पूरी दुनिया के लिए आकर्षण का केंद्र बन चुका है।
प्रयागराज में इस बार 144 वर्षों के बाद महाकुंभ का आरंभ हुआ है। इस महायज्ञ का पहला स्नान 13 जनवरी को लोहड़ी पर्व के अवसर पर हुआ, जिसमें 1.65 करोड़ श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाकर आस्था और विश्वास का विश्व कीर्तिमान स्थापित किया।
मकर संक्रांति और शाही स्नान का महत्व
मकर संक्रांति के पावन अवसर पर साधु-संतों और नागा संन्यासियों द्वारा शाही स्नान का आयोजन किया गया। यह परंपरा आदि शंकराचार्य की अद्वितीय देन है, जिन्होंने सनातन धर्म को पुनर्जीवित करने के लिए अखाड़ों की स्थापना की थी।
वर्तमान में भारत में 13 प्रमुख अखाड़े सक्रिय हैं, जिनमें शैव, वैष्णव, महानिर्वाणी, उदासीन और निर्मल नामधारी जैसे अखाड़े शामिल हैं। इन अखाड़ों का अपना आध्यात्मिक और वैचारिक दर्शन है, लेकिन उनकी आत्मा सनातन धर्म में रची-बसी है।
नागा संन्यासियों का भस्म-शृंगार देखकर भगवान शिव के गणों की स्मृति ताजा हो जाती है। इन संन्यासियों का जीवन त्याग, साधना और ईश्वर की भक्ति का प्रतीक है। उनके जयकारे “हर-हर महादेव” और “जय श्रीराम” की गूंज इस महाकुंभ में श्रद्धा और भक्ति का माहौल रचते हैं।
महाकुंभ: विश्व का सबसे बड़ा आयोजन
महाकुंभ मौजूदा ब्रह्मांड का सबसे बड़ा, व्यवस्थित और व्यापक आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, बहुराष्ट्रीय, बहुभाषीय और दैवीय जन-समागम है।
अनुमान है कि 26 फरवरी तक चलने वाले इस महाकुंभ में 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालु संगम में स्नान कर सकते हैं। यह आंकड़ा किसी देश की कुल आबादी से भी अधिक है। अमरीका की कुल आबादी को पीछे छोड़ने वाला यह आयोजन भारत की प्राचीन परंपरा और संगठन कौशल का अद्वितीय उदाहरण है।
इस बार का आयोजन न केवल धार्मिक दृष्टि से, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने इस आयोजन के लिए 15,000 करोड़ रुपए का बजट निर्धारित किया है। इसके साथ ही विभिन्न कंपनियों ने अपने ब्रांड की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए 3000 करोड़ रुपए खर्च करने की घोषणा की है। यह आयोजन भारत की अर्थव्यवस्था को भी एक नई दिशा प्रदान करेगा।
प्रबंधन और सुरक्षा: विश्वस्तरीय उदाहरण
महाकुंभ का आयोजन प्रबंधन के क्षेत्र में भी एक मिसाल है। श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए 45,000 से अधिक सुरक्षाकर्मी तैनात किए गए हैं। इसके साथ ही, 3000 से अधिक सीसीटीवी कैमरों के नेटवर्क और नियंत्रण-कक्ष के जरिए हर गतिविधि पर सतर्क निगरानी रखी जा रही है।
1954 की त्रासदी से सबक लेते हुए इस बार आयोजन को और भी सुव्यवस्थित और सुरक्षित बनाया गया है। श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए 450 किलोमीटर लंबी सड़कों का निर्माण किया गया है। स्नान के अलग-अलग रूट निर्धारित किए गए हैं, और 1.5 लाख शौचालय बनाए गए हैं। इसके अलावा, तैरने वाले पुल भी इस आयोजन की सफलता में प्रमुख भूमिका निभा रहे हैं।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक महत्व
महाकुंभ का इतिहास और परंपरा गहराई से भारतीय संस्कृति और धर्म से जुड़ा हुआ है। पौराणिक कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत-कलश लेकर देवराज इंद्र के पुत्र जयंत भाग रहे थे, तब अमृत की कुछ बूंदें प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में छलक गईं। इन्हीं स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है।
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव ने भीमासुर नामक असुर का वध कर पुणे के पास सह्याद्रि पर्वत पर भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग की स्थापना की थी। इस घटना से जुड़ी मान्यता है कि महाकुंभ के संगम स्नान से सभी प्रकार के पाप और दोष समाप्त हो जाते हैं।
आधुनिकता और प्राचीनता का संगम
महाकुंभ न केवल आध्यात्मिकता का प्रतीक है, बल्कि यह आधुनिकता और प्राचीनता का संगम भी है। इस बार के आयोजन में डिजिटल तकनीक और प्रबंधन कौशल का अद्भुत प्रदर्शन देखने को मिल रहा है। श्रद्धालुओं के लिए हेल्पलाइन सेवाएं, मोबाइल एप्लिकेशन और डिजिटल भुगतान जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराई गई हैं।
एकता और सहिष्णुता का संदेश
महाकुंभ का महत्व केवल धार्मिक आयोजन तक सीमित नहीं है। यह आयोजन भारतीय समाज में एकता, सहिष्णुता और सांस्कृतिक विविधता का संदेश देता है। यहां दुनिया भर से लोग आते हैं, जो विभिन्न धर्म, जाति और भाषाओं से जुड़े होते हैं। लेकिन संगम तट पर सब एक समान होते हैं।
महाकुंभ से सीखने योग्य प्रबंधन कौशल
दुनिया के किसी भी कोने में यदि कोई विशाल जनसमूह का प्रबंधन करना चाहता है, तो उसे महाकुंभ से प्रेरणा लेनी चाहिए। करोड़ों लोगों की भीड़ का मानवीय प्रबंधन, चाक-चौबंद सुरक्षा व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण जैसे पहलुओं पर प्रयागराज महाकुंभ एक आदर्श प्रस्तुत करता है।
महाकुंभ केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, आध्यात्मिकता और संगठन क्षमता का महापर्व है। प्रयागराज का यह आयोजन इतिहास में अपनी विशिष्ट जगह बना चुका है। यह न केवल भारत को, बल्कि पूरी दुनिया को एक संदेश देता है कि जब भारतीय परंपरा और आधुनिकता का संगम होता है, तो एक असाधारण चमत्कार संभव है।
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की