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2 February 2025 2:27 pm

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आया बसंत, फिर दिलों में शोर सा मचने लगा… प्रकृति ही नहीं इंसानों के दिल में भी एक परिवर्तन लाता है यह बसंत

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अनिल अनूप

बसंत पंचमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि प्रकृति का महोत्सव है, जिसमें ऋतु अपनी नई छवि के साथ अंगड़ाई लेती है और हर ओर हरियाली, उल्लास और नवसृजन की सुगंध फैल जाती है। यह केवल ऋतु परिवर्तन का सूचक नहीं, बल्कि जीवन में नई उमंग, नई चेतना और नवसृजन की प्रेरणा देने वाला एक अनुपम अवसर भी है। भारतीय संस्कृति में इस पर्व को माँ सरस्वती की आराधना के रूप में विशेष महत्व प्राप्त है, जो ज्ञान, कला और साहित्य की अधिष्ठात्री देवी मानी जाती हैं। बसंत पंचमी का यह पावन पर्व साहित्य के लिए भी विशेष मायने रखता है, क्योंकि यह न केवल कवियों, लेखकों और कलाकारों को प्रेरित करता है, बल्कि उनकी रचनात्मकता को नई ऊँचाइयों तक ले जाने का अवसर प्रदान करता है।

बसंत पंचमी: प्रकृति का नूतन श्रृंगार

बसंत पंचमी का पर्व शिशिर की ठिठुरन को विदा कर मधुमास की मादकता में प्रविष्ट होने का संकेत देता है। यह समय फूलों के खिलने, खेतों में सरसों के सुनहरे गहने सजने और आम की मंजरियों से वातावरण सुगंधित होने का होता है। बसंत का यह उल्लासमय वातावरण मनुष्य के मन में भी नवस्फूर्ति का संचार करता है। साहित्य में प्रकृति का चित्रण हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है, और जब बात बसंत की हो, तो यह ऋतु कवियों की प्रिय रही है। कालिदास से लेकर आधुनिक कवियों तक, सभी ने इस ऋतु की सुंदरता को अपनी लेखनी में स्थान दिया है।

कालिदास की ‘ऋतुसंहार’ में बसंत

संस्कृत साहित्य में महाकवि कालिदास ने अपनी कृति ऋतुसंहार में बसंत का अनुपम चित्रण किया है। उन्होंने बसंत को प्रेम और सौंदर्य का पर्व कहा है, जिसमें संपूर्ण प्रकृति श्रृंगार करती है और वातावरण में एक अद्भुत मादकता फैल जाती है। उनकी कविताओं में यह ऋतु केवल प्राकृतिक परिवर्तन नहीं, बल्कि प्रेम और उल्लास की ऋतु के रूप में चित्रित हुई है।

साहित्य में बसंत का प्रभाव

बसंत पंचमी केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि साहित्यिक दृष्टि से भी एक महत्वपूर्ण अवसर है। यह वह समय है जब कवियों की लेखनी में नई स्फूर्ति आती है, जब साहित्यकारों को प्रेरणा मिलती है और उनकी रचनाएँ नए भावों से भर जाती हैं। हिंदी, संस्कृत, उर्दू और अन्य भारतीय भाषाओं के साहित्य में बसंत के आगमन का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।

हिंदी साहित्य में बसंत

हिंदी साहित्य में बसंत के महत्व को लेकर अनेक कवियों ने अपनी अमर रचनाएँ दी हैं। भारतेंदु हरिश्चंद्र, जयशंकर प्रसाद, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ और सुमित्रानंदन पंत जैसे कवियों ने बसंत को जीवन के उल्लास, नवीनता और ऊर्जा से जोड़ा है।

महादेवी वर्मा ने बसंत को केवल एक ऋतु न मानकर एक जीवनदर्शन के रूप में प्रस्तुत किया है। उनके अनुसार, बसंत केवल बाहरी हरियाली का नाम नहीं, बल्कि अंतर्मन के उल्लास का प्रतीक भी है।

सुमित्रानंदन पंत ने बसंत का ऐसा चित्रण किया:

“पीली सरसों के फूलों पर जब,

भ्रमर गूँजते गाते हैं,

संदेश नया ले आता है,

यह बसंत, ऋतुराज हमारा।”

यह पंक्तियाँ स्पष्ट रूप से दिखाती हैं कि बसंत केवल एक ऋतु नहीं, बल्कि एक चेतना है, जो जीवन में नवीनता का संचार करती है।

उर्दू शायरी में बसंत का रंग

उर्दू शायरी में भी बसंत का विशेष स्थान है। इस ऋतु को इश्क, उमंग और नई उम्मीदों का प्रतीक माना गया है। कई शायरों ने बसंत के रंग को अपनी ग़ज़लों और नज़्मों में उकेरा है।

जिगर मुरादाबादी कहते हैं—

“आया बसंत फिर दिलों में शोर सा मचने लगा,

फूलों की महक से हर दिल महकने लगा।”

यानी बसंत केवल प्रकृति में नहीं, बल्कि इंसान के दिल में भी उमंग और नई ऊर्जा भर देता है।

बसंत पंचमी और साहित्य का नवजागरण

बसंत पंचमी केवल एक ऋतु-परिवर्तन का पर्व नहीं, बल्कि साहित्य के लिए भी यह नए सृजन का अवसर है। पुराने समय में यह पर्व साहित्यिक सभाओं, कवि सम्मेलनों और काव्य गोष्ठियों के आयोजन का प्रमुख अवसर हुआ करता था। आज भी इस दिन कवि सम्मेलन, साहित्यिक परिचर्चाएँ और लेखन प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।

इस दिन विशेष रूप से माँ सरस्वती की पूजा होती है, जो ज्ञान, संगीत और साहित्य की देवी हैं। साहित्य और कला की दुनिया में जो भी नवीन सृजन होता है, उसे कहीं न कहीं बसंत पंचमी का आशीर्वाद प्राप्त होता है। यह दिन न केवल विद्यार्थियों, संगीतकारों और कलाकारों के लिए, बल्कि साहित्यकारों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनता है।

बसंत पंचमी का पर्व केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नहीं, बल्कि साहित्य, कला और संस्कृति के लिए भी विशेष मायने रखता है। यह सृजन, चेतना और नवीनता का पर्व है, जो साहित्यकारों और कलाकारों को अपनी रचनाओं में नई ऊर्जा और नवीनता भरने की प्रेरणा देता है। कालिदास से लेकर आधुनिक कवियों तक, सभी ने बसंत की महिमा का वर्णन किया है और इसे साहित्य के उत्थान से जोड़ा है।

आज के दौर में भी, जब साहित्य डिजिटल माध्यमों पर स्थानांतरित हो रहा है, तब भी बसंत पंचमी साहित्यिक चेतना को जाग्रत करने का माध्यम बनी हुई है। यह पर्व हमें बताता है कि जीवन में नई सोच, नए विचार और नई ऊर्जा का स्वागत करना कितना आवश्यक है। बसंत का यह उल्लास न केवल प्रकृति में, बल्कि साहित्य में भी अपनी छाप छोड़ता रहेगा।

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