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27 December 2024 12:34 am

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आजकल महिलाएं “खटाखट” की बात कर रहे हैं और हम उससे उत्पन्न “खटपट”  की बात सुना रहे हैं… .. 

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-अनिल अनूप

आप खटाखट की बात कर रहे हैं और मैं खटपट को लेकर चिंतित हूं। आप खटाखट करेंगे तो कई लोग चिंतित होंगे और जब चिंतित होंगे तो खटपट भी होगी। खटपट हुई तो सिंहासन खतरे में पड़ जाएगा। खटाखट हुई तो खटपट रोकेंगे कैसे? 

आप खुद कह रहे हैं कि खजाना तो खाली है। आप इसे भर नहीं रहे बल्कि खाली खजाने में जो थोड़ा बहुत पैसा आ रहा है, वह आप अपने मित्रों में बांट दे रहे हैं। मित्रों के बैंक अकाउंट में खटाखट हो रही है। यानी खटखटा करके पैसे आ रहे हैं। 

मित्र लोग पैसों से खेल रहे हैं। पैसों से खेलते हुए वह दूसरों की भावनाओं से भी खेल रहे हैं। इसी वजह से पार्टी के भीतर खटाखट के साथ-साथ खटपट भी हो रही है। 

पब्लिक के सामने दो विषय आ गए हैं। पहला विषय खटाखट का है और दूसरा विषय खटपट का है। ओहदे बांटे जाने के साथ ही खटपट शुरू हो गई है। जिनको ओहदे नहीं मिले हैं, यानी जो सत्ता में रहकर भी पीडि़त हैं, उनके समर्थकों में भी खटपट चल रही है और परिवार में भी खटपट चल रही है। जिनको ओहदे मिल गए हैं, उनके हाथ सूंड की गड्डी लग गई है। पैसे खटाखट आना शुरू हो गए हैं। सरकार के खजाने से भी आ रहे हैं…ठेकेदारों से भी आ रहे हैं…उद्योगपतियों से भी आ रहे हैं। सबको अपने-अपने काम करवाने हैं। उनको खटपट से कुछ नहीं लेना देना है। उनको खटाखट करने वालों से काम निकलवाने हैं। 

इधर कुछ औरतें पार्टी दफ्तर में पहुंच गई हैं और खटखट करके दरवाजा खटखटा रही हैं कि पैसों की खटाखट अभी तक नहीं हुई है और चुनाव के नतीजे भी आ गए हैं। खटाखट कब होगी? लेकिन दरवाजा नहीं खुल रहा।

भीतर से कोई आवाज नहीं आ रही। क्योंकि नारा देने वाले खजाने की चाबी से दूर हो गए हैं। जिनको खजाने की चाबी हाथ लग गई है, वे खटाखट की बात नहीं कर रहे क्योंकि गठबंधन की संस्कृति है। 

खटाखट की बजाय खटपट रोकना पहली प्राथमिकता हो गई है। गठबंधन वाले बीच-बीच में खटपट राग छोड़ रहे हैं। सरकार का एक हाथ माथे पर है और एक हाथ सिर पर है। पहली प्राथमिकता यह है कि खटपट नहीं होनी चाहिए। खटाखट जाए भाड़ में। खटाखट और खटपट शब्दों में सिर्फ एक मात्रा की कमी है, लेकिन दोनों के अर्थ अलग-अलग हैं। इनमें खटपट शब्द ज्यादा प्रचलन में है। 

घर घर की कहानी है। सास बहू की कहानी है। पति-पत्नी की कहानी है। बॉस और सहकर्मियों की कहानी है। मुख्यमंत्री और मंत्रियों की कहानी है। विधायक दल की कहानी है। भीतर ही भीतर खटपट चलती रहती है। 

कई बार यह खटपट किसी सरकार को खतरे में भी डाल देती है। सरकार के मुखिया खटाखट नोट गिन रहे होते हैं और इधर खटखट करके सरकार अल्पमत में आ जाती है। क्योंकि खटपट हो जाती है। सरकार को एक अधिनियम सदन में लाना चाहिए, ताकि खटखट पर भी विराम लग जाए और खटाखट की बात करना गैरकानूनी हो जाए।

जब तक इन दोनों शब्दों की जुगलबंदी रहेगी, सरकार की सांस उखड़ी रहेगी…पब्लिक बेचारी हलकान रहेगी…लोकतंत्र परेशान रहेगा…नेता लोग दिशाहीन हो जाएंगे, एक पार्टी से निकलकर दूसरी पार्टी का दरवाजा खटखटाएंगे। इससे भी खटाखट होगी। जिस पार्टी में जाएंगे, वहां खटपट होगी। 

बड़ी लफड़ानात्मक स्थिति रहेगी। पब्लिक कंफ्यूज रहेगी। अफसरशाही एक-दूसरे को आंख मारती रहेगी। सबको अपनी-अपनी कुर्सी की रहेगी। अपनी अपनी पोस्टिंग की रहेगी।

जनता के नुमाइंदे भिड़ते रहेंगे। खटपट होती रहेगी। चुनावी वायदे धूल फांकते रहेंगे। नए नारे ईजाद होते रहेंगे। खटाखट का मौसम निकल जाएगा और खटपट का मौसम सदाबहार रहेगा। हर दल की यही कहानी रहेगी।

samachar
Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."

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