संतोष कुमार सोनी के साथ सुशील मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को बांदा जिले में बहुप्रतीक्षित केन-बेतवा लिंक परियोजना का शुभारंभ किया। सरकार ने इसे बुंदेलखंड क्षेत्र के लिए एक ऐतिहासिक और विकासोन्मुखी कदम बताते हुए क्षेत्र की जल समस्या का समाधान बताया। वहीं, दूसरी ओर, इस परियोजना से प्रभावित ग्रामीणों और पर्यावरणविदों ने इसे उनके जीवन, आजीविका और सांस्कृतिक पहचान पर एक बड़ा हमला करार दिया।
प्रदर्शनकारियों का गुस्सा और प्रतीकात्मक विरोध
परियोजना के डूब क्षेत्र में आने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व और इसके आस-पास के 22 गांवों के सैकड़ों ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन किया। बिजावर के सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर के नेतृत्व में ग्रामीण दौढ़न बांध के निर्माण स्थल पर एकत्र हुए। उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से चिता बनाकर उसमें आग लगाई और जलती चिताओं पर लेटकर विरोध जताया।
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि यह परियोजना उनकी पीढ़ियों से चली आ रही खेती की जमीन, घरों, और सांस्कृतिक धरोहर को समाप्त कर देगी। उन्होंने कहा कि उनकी जमीन और घरों का जबरन अधिग्रहण किया गया है और मुआवजा वितरण में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार हुआ है। ग्रामीणों ने फर्जी ग्राम सभाओं और सरकारी लाठीचार्ज की घटनाओं का भी जिक्र किया।
विकास नहीं, विनाश का प्रतीक
सामाजिक कार्यकर्ता अमित भटनागर ने इस परियोजना को पर्यावरण और जैव विविधता के लिए बेहद खतरनाक करार दिया। उन्होंने कहा कि इससे न केवल पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र नष्ट होगा, बल्कि डूब क्षेत्र के 22 गांवों के किसानों और आदिवासियों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया जाएगा।
भटनागर ने केंद्रीय सशक्त समिति (CEC) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि परियोजना के पर्यावरणीय दुष्प्रभावों को पूरी तरह अनदेखा किया गया है। उन्होंने सवाल उठाया कि जब यह मामला सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) में विचाराधीन है, तो इतनी जल्दबाजी क्यों की जा रही है।
कानूनी और सामाजिक अधिकारों की अनदेखी
प्रदर्शनकारियों ने आरोप लगाया कि इस परियोजना में ‘पंचायती राज अधिनियम’ और ‘भूमि अधिग्रहण अधिनियम’ का सही तरीके से पालन नहीं किया गया। फर्जी ग्राम सभाओं के जरिए सहमति के झूठे दावे किए गए। विस्थापित ग्रामीणों को रोजगार और पुनर्वास की सुविधाएं नहीं दी गईं, और मुआवजा वितरण में भारी असमानता रही।
ग्रामीणों ने प्रधानमंत्री से अपील की है कि सुप्रीम कोर्ट और NGT के अंतिम निर्णय आने तक परियोजना के काम को तत्काल रोका जाए। उन्होंने जल संकट के समाधान के लिए चंदेल कालीन तालाबों और पारंपरिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने की मांग की।
सरकार बनाम जनता: विकास का द्वंद्व
जहां सरकार इसे बुंदेलखंड की जल समस्या का समाधान बता रही है, वहीं ग्रामीणों और पर्यावरणविदों का कहना है कि यह परियोजना विनाश की ओर ले जाएगी। अब यह देखना होगा कि सरकार और न्यायपालिका इन आरोपों और आपत्तियों पर क्या निर्णय लेती है।