उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर गरमाई बहस। अखिलेश यादव ने राजा भैया पर राजनीतिक हमला तेज किया, बोले- “मायावती का फैसला पलटना गलती थी”। जानिए पूरा मामला और इसके पीछे की वजह।
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बार फिर टकराव की स्थिति बन गई है। समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव और जनसत्ता दल के नेता रघुराज प्रताप सिंह उर्फ राजा भैया एक बार फिर आमने-सामने हैं।
हालांकि, कभी राजा भैया अखिलेश सरकार में मंत्री रह चुके हैं और उनके पिता मुलायम सिंह यादव के बेहद करीबी माने जाते थे। मगर अब हालात बिल्कुल बदल चुके हैं।
क्या है पूरा मामला?
हाल ही में पत्रकारों से बातचीत के दौरान अखिलेश यादव ने बिना नाम लिए राजा भैया पर निशाना साधा। उन्होंने कहा, “गलती हो गई, मायावती सरकार ने जो फैसला लिया था, उसे पलटना नहीं चाहिए था।” यह बयान सीधे तौर पर उस फैसले से जुड़ा है जिसमें बसपा शासनकाल के दौरान राजा भैया पर POTA (पोटा) लगाकर जेल भेजा गया था। बाद में मुलायम सरकार ने वह कानून हटा लिया था।
अखिलेश यादव ने दावा किया है कि अब राजा भैया का राजनीतिक सफर खत्म होने की कगार पर है।
नाराजगी की असली वजह क्या है?
असल में, अखिलेश यादव की नाराजगी की जड़ में उनके खास सहयोगी और प्रतापगढ़ के सपा जिलाध्यक्ष गुलशन यादव के खिलाफ की गई कार्रवाई है। राजा भैया ने गुलशन यादव पर FIR दर्ज करवाई थी। इसके बाद 4 मई को गुलशन की 7 करोड़ रुपये की संपत्ति कुर्क कर ली गई, जिससे अखिलेश बेहद नाराज बताए जा रहे हैं।
राजा भैया और सपा का उतार-चढ़ाव भरा रिश्ता
राजा भैया और समाजवादी पार्टी का रिश्ता काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। एक समय वे अखिलेश सरकार में मंत्री बने, लेकिन डिप्टी एसपी जिया उल हक की हत्या के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, बाद में वे फिर मंत्री बन गए।
बाद में राजा भैया ने अपनी पार्टी ‘जनसत्ता दल’ बना ली और समाजवादी पार्टी से दूरी बना ली।
अखिलेश का नया दांव
2022 विधानसभा चुनाव के दौरान अखिलेश यादव ने कहा था कि वे “कुंडा में कुंडी लगा देंगे”। यह संकेत राजा भैया के गढ़ कुंडा विधानसभा सीट की तरफ था, जहां से वे लगातार विधायक चुने जाते हैं।
अब एक बार फिर अखिलेश यादव राजा भैया के खिलाफ मोर्चा खोलकर अपने PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) गठजोड़ को मजबूत संदेश देना चाहते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजनीति एक बार फिर पुराने गठबंधनों और नई दुश्मनियों के दौर में प्रवेश कर चुकी है। राजा भैया और अखिलेश यादव के बीच बढ़ती तकरार आने वाले चुनावी समीकरणों को भी प्रभावित कर सकती है।