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November 3, 2024 12:58 am

यूपी की सियासत में मजबूत विपक्ष की कवायद ; I.N.D.I.A. की ड्राइविंग सीट पर अखिलेश

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट 

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में I.N.D.I.A. (Indian National Developmental Inclusive Alliance) को जमीन पर उतारने की कोशिश तेज हो गई है। पटना और लखनऊ में विपक्षी गठबंधन की बैठक के बाद लखनऊ में राजनीतिक पारा गरमाने लगा है। I.N.D.I.A. के मुकाबले एनडीए ने अपनी तैयारियों को शुरू कर दिया है। विपक्ष के समीकरण को ढाहने के लिए छोटे-छोटे राजनीतिक दलों के साथ भाजपा आगे बढ़ती दिख रही है। किसी भी स्थिति में वोटों के बिखराव को रोकने की कोशिश शुरू कर दी है। इस स्थिति में विपक्षी दलों के लिए मुश्किलें बढ़ती दिख रही हैं। सबसे बड़ी चुनौती तो I.N.D.I.A. से जुड़े दलों में होने वाली है। अभी विपक्षी एकता गठबंधन में समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय लोक दल और कांग्रेस दिख रहे हैं। कांग्रेस के राहुल गांधी, सपा के अखिलेश यादव और रालोद के जयंत चौधरी ने बेंगलुरु में हुई 17-18 जुलाई की विपक्षी एकता गठबंधन में भाग लिया। इसके साथ ही यूपी के राजनीतिक मैदान में लोकसभा चुनाव की तस्वीर साफ होने लगी है। इसी के साथ सीटों के बंटवारे को लेकर भी सवाल उठने लगे हैं। यूपी की 80 लोकसभा सीटों में सपा कितनी सीटों पर सहयोगियों को खड़ा कराएगी? यह सवाल हर कोई उठाने लगा है। इस स्थिति ने राहुल गांधी और जयंत चौधरी के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं। वे अपनी मांग को बडे़ स्तर पर रख पाएंगे या नहीं, सवाल यह भी उठने लगा है।

कांग्रेस की रणनीति है अलग

कांग्रेस पार्टी ने यूपी में अलग ही राजनीतिक समीकरण के साथ चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी की है। पार्टी की ओर से सवर्ण वोटरों को लुभाने की कोशिश शुरू की गई है। यूपी की राजनीति में अहम ब्राह्मण वोट बैंक में सेंधमारी की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा पार्टी ने मुस्लिम वोट बैंक के बीच भी एक अलग तरीके से प्रचार शुरू किया है। केंद्र की मोदी और प्रदेश की योगी सरकार के कार्यकाल की योजनाओं को अल्पसंख्यक हितों के खिलाफ बताए जाने की कोशिश की जा रही है। इसके अलावा पार्टी की ओर से दलित और ओबीसी वोटरों को भी साधने के लिए ग्रामीण स्तर पर कार्यक्रम चलाया जा रहा है।

प्रियंका गांधी, सोनिया गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे की ओर से तमाम कार्यक्रमों पर जोर दिया जा रहा है। राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा पश्चिमी यूपी से गुजरी थी। इस इलाके में पार्टी के कैडर को एक्टिवेट करने में इसे सहायक बताया जा रहा है। कांग्रेस पहले से अकेले दम पर चुनावी मैदान में उतरने की बात कर रही है। लेकिन, पिछले चुनावों में पार्टी के प्रदर्शन ने सवाल खड़ा किया है।

कांग्रेस को लोकसभा चुनाव 2019 में 6 फीसदी से कुछ अधिक वोट मिला। पार्टी ने अपने गढ़ अमेठी में मात खाई। राहुल गांधी चुनाव हार गए। केवल रायबरेली से कांग्रेस चुनाव जीत सकी। वहीं, यूपी चुनाव 2022 में पार्टी का प्रदर्शन और खराब रहा। कांग्रेस 2 फीसदी से कुछ अधिक वोट हासिल कर सकी। दो सीटों पर जीती। इस स्थिति में राहुल गांधी सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने कोई बड़ा डिमांड कर पाने की स्थिति में नहीं दिख रहे हैं।

रालोद की स्थिति बेहतर नहीं

समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी भी कोई बड़ा डिमांड रख पाने में कामयाब नहीं हो पाएंगे। दरअसल, पिछले लोकसभा चुनावों में रालोद को कोई सफलता नहीं मिल पाई है। विधानसभा चुनावों में पार्टी ने सफलता दर्ज की है। लेकिन, लोकसभा चुनाव में उन्हें जीत के लिए सपा के सामाजिक समीकरण की जरूरत होगी। राष्ट्रीय लोक दल पश्चिमी यूपी में जाट-मुस्लिम समीकरण को साधकर सफलता दर्ज करती रही है। हालांकि, 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद स्थिति बदली है। भाजपा ने इन दंगों के लिए तत्कालीन अखिलेश यादव सरकार को जिम्मेदार ठहरा दिया। इसका फायदा पार्टी को मिला। यूपी चुनाव 2022 में समीकरण में बदलाव होती दिखी है। रालोद भले ही 12 से 14 सीटों पर दावे कर रही हो, लेकिन लोकसभा चुनाव में सपा के साथ इतनी सीटें मिलती नहीं दिख रही हैं।

I.N.D.I.A. में मजबूत होंगे अखिलेश

अखिलेश यादव अगर यूपी के राजनीतिक मैदान में इंडिया को उतारने में सफल होते हैं तो उन्हें फायदा मिल सकता है। यूपी चुनाव 2022 में समाजवादी पार्टी ने रिकॉर्ड 32 फीसदी वोट हासिल किया था। यह पार्टी का अब तक का सबसे अधिक वोट है। पार्टी के गठबंधन में जाने से कांग्रेस का वोट बैंक भी इससे जुड़ने की उम्मीद की जा रही है। भले ही यूपी चुनाव में कांग्रेस का वोट घटा है। लेकिन, अखिलेश को लेकर मुस्लिम वोट बैंक के बीच की नाराजगी को कांग्रेस खत्म कर सकती है। ऐसे में पार्टी कई लोकसभा सीटों पर खुद को मजबूत कर सकती है। बसपा सुप्रीमो मायावती के किसी गठबंधन में न जाने की घोषणा के बाद भी वे दलित और ओबीसी वोटरों में सेंधमारी कर अपनी स्थिति को प्रदेश में बेहतर बना सकेंगे।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो I.N.D.I.A. के यूपी में आकार लेने के बाद भी समाजवादी पार्टी 60 से 65 सीटों पर चुनावी मैदान में उम्मीदवार उतार सकती है। यहां भाजपा और सपा में सीधा मुकाबला होने के आसार भी हैं। बसपा कुछ हद तक कुछ सीटों पर टक्कर दे सकती है। वहीं, कांग्रेस और रालोद को बची सीटों में बंटवारा करना होगा। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा पहले भी अपने वोट बैंक को पूरी तरह सहयोगियों को शिफ्ट नहीं कराती है। ऐसे में पार्टी से ही उन्हें जोड़कर रखने की नीति के तहत समर्थक दलों को साध सकती है।

भाजपा की भी तैयारी तेज

भारतीय जनता पार्टी ने भी प्रदेश में अपनी तैयारियों को तेज कर दिया है। पार्टी भले ही अब तक दो तरफा मुकाबलों में उस स्तर पर सहूलियत महसूस नहीं कर पा रही, लेकिन चुनौती को पार्टी ने अलग अंदाज में लिया है। भाजपा ने हर लोकसभा सीट को लेकर रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है। आजमगढ़, गाजीपुर जैसी सीटों पर भाजपा को पिछले चुनावों में हार मिली थी। इस बार स्थिति को बेहतर बनाने के लिए पार्टी की ओर से ओम प्रकाश राजभर से लेकर दारा सिंह चौहान तक को पहले से मैदान में उतार कर माहौल बनाने की जिम्मेदारी दी जानी है। इसके अलावा अन्य सीटों पर भी पार्टी के तमाम नेता लगातार मेहनत कर रहे हैं। सीएम योगी आदित्यनाथ से लेकर पीएम नरेंद्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्‌डा तक प्रदेश में पार्टी के लक्ष्य 80 को हासिल करने की दिशा में काम करते दिख रहे हैं। ऐसे में विपक्षी एकता की सबसे बड़ी परीक्षा आने वाले दिनों में होने वाली है।

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Author: samachar

"कलम हमेशा लिखती हैं इतिहास क्रांति के नारों का, कलमकार की कलम ख़रीदे सत्ता की औकात नहीं.."