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December 12, 2024 5:45 am

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उपचुनाव 2024 में सियासी दांवपेंच ; पीडीए बनाम ‘सबका साथ’

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कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में नौ विधानसभा सीटों पर उपचुनाव का राजनीतिक माहौल बेहद गरम है। सभी प्रमुख राजनीतिक दलों ने अपने-अपने उम्मीदवारों की घोषणा करते हुए जातिगत समीकरणों पर जोर दिया है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि आगामी चुनाव न केवल सत्ता परीक्षण है, बल्कि राजनीतिक दलों की रणनीति का भी प्रदर्शन है।

जातिगत समीकरणों की अहमियत

समाजवादी पार्टी (सपा) ने अपने पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फॉर्मूले के आधार पर उम्मीदवारों का चयन किया है। यह फॉर्मूला 2024 लोकसभा चुनाव में सपा की सफलता का मुख्य कारण बना था, जब पार्टी ने 37 सीटें जीती थीं, जिनमें से 25 उम्मीदवार पिछड़ी जातियों से थे। इस बार भी सपा ने पिछड़े वर्ग, दलित और मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवारों को तवज्जो दी है, जैसे मैनपुरी की करहल सीट से तेज प्रताप यादव और गाज़ियाबाद से दलित समुदाय के प्रत्याशी।

बीजेपी ने भी अपने उम्मीदवारों के चयन में पिछड़े वर्ग के प्रत्याशियों पर ध्यान केंद्रित किया है। पार्टी ने चार ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं और ‘सबका साथ, सबका विश्वास’ के नारे को प्रमुखता दी है। हालांकि, बीजेपी का पीडीए फॉर्मूला सपा से थोड़ा अलग है, जहां ‘ए’ का अर्थ अगड़ी जातियां हैं। बीजेपी ने मैनपुरी की करहल सीट से अनुजेश यादव को प्रत्याशी बनाकर यादव मतदाताओं पर ध्यान केंद्रित किया है। यह कदम सपा के यादव समर्थन को चुनौती देने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।

अन्य दलों की रणनीति

बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) ने भी इस बार अपने उम्मीदवारों के जातिगत समीकरणों का खास ख्याल रखा है। पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष विश्वनाथ पाल ने समाजवादी पार्टी के पीडीए फॉर्मूले की आलोचना करते हुए उसे ‘परिवार दल अलायंस’ करार दिया। बीएसपी ने दो मुस्लिम, दो ब्राह्मण, एक दलित और चार ओबीसी उम्मीदवार उतारे हैं, जो पार्टी की ‘सबका हित’ नीति की ओर संकेत करते हैं। कांग्रेस ने सपा का समर्थन करते हुए इस उपचुनाव में अलग से उम्मीदवार नहीं उतारे हैं।

मतदाताओं की सोच और पिछले चुनावों का प्रभाव

बीजेपी के लिए इस उपचुनाव का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि लोकसभा और विधानसभा चुनावों में पार्टी को ओबीसी वर्ग का अच्छा समर्थन मिला था। लेकिन हाल के सर्वेक्षणों में, खासतौर पर सीएसडीएस के अनुसार, ओबीसी और ग़ैर-जाटव दलित वोटों में गिरावट दिखी है। 2024 के लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन ने 43 सीटें जीतीं थीं, जिसमें सपा ने 37 और कांग्रेस ने 6 सीटें हासिल की थीं। दूसरी ओर, बीजेपी का प्रदर्शन 33 सीटों तक सिमट गया था।

उपचुनाव के महत्व और भविष्य की राजनीति

विश्लेषकों के अनुसार, ये उपचुनाव 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ा राजनीतिक संकेत देंगे। अगर बीजेपी को हार का सामना करना पड़ता है, तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की साख पर असर पड़ सकता है। वहीं, सपा के लिए यह चुनाव उनके पीडीए फॉर्मूले की प्रभावशीलता और कांग्रेस के साथ गठबंधन के भविष्य की दिशा तय करेगा। बीएसपी भी अपनी खोई हुई सियासी ज़मीन को पुनः प्राप्त करने की कोशिश में है।

इन उपचुनावों में जातिगत समीकरण, विभिन्न दलों की रणनीतियाँ, और मतदाताओं का झुकाव यह तय करेगा कि किस पार्टी की नीति आने वाले समय में उत्तर प्रदेश की राजनीति पर हावी रहेगी।

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