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November 2, 2024 7:57 pm

मंदिर में पूजा और बाहर आते ही फतवा : नसीम सोलंकी की उम्मीदवारी पर उठे सवाल

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले की सीसामऊ विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनावों में एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है। समाजवादी पार्टी (सपा) की प्रत्याशी नसीम सोलंकी के खिलाफ एक फतवा जारी किया गया है, जिसे ऑल इंडिया मुस्लिम जमात के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने जारी किया। इस फतवे के मुताबिक, नसीम सोलंकी ने इस्लामिक शरीयत का उल्लंघन किया है और उन्हें तौबा करने के साथ-साथ पुनः कलमा पढ़ने की हिदायत दी गई है।

धार्मिक पहलू और फतवे का कारण

मौलाना मुफ्ती शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने फतवे में स्पष्ट किया कि इस्लाम में मूर्ति पूजा वर्जित है और जो व्यक्ति अपनी इच्छा से ऐसी पूजा करता है, वह शरीयत के कठोर नियमों का सामना करता है। इस संदर्भ में नसीम सोलंकी पर आरोप है कि उन्होंने दीपावली के अवसर पर शिव मंदिर में पूजा की थी और दीप जलाए थे। इस घटना का वीडियो वायरल होते ही विवाद शुरू हो गया और मौलाना ने इसे शरीयत का उल्लंघन मानते हुए फतवा जारी किया।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और चुनौतियां

यह मामला सियासी तौर पर भी गरमा गया है। मौलवियों के विरोध के साथ-साथ भाजपा ने भी नसीम सोलंकी पर सवाल उठाए हैं, जिससे यह मुद्दा राजनीतिक विवाद में बदल गया है। हालांकि, नसीम सोलंकी ने अब तक इस पूरे विवाद पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है। उनके पति, इरफान सोलंकी, जिन्होंने 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत हासिल की थी, एक मामले में सात साल की सजा पाने के बाद उनकी विधायकी को अयोग्य घोषित कर दिया गया था। इसी कारण सीसामऊ सीट पर उपचुनाव हो रहा है और सपा ने नसीम सोलंकी को प्रत्याशी बनाया है।

उपचुनाव का महत्व

इस विवाद के बीच, सीसामऊ विधानसभा सीट के उपचुनाव का महत्व बढ़ गया है। यह चुनाव समाजवादी पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती है, विशेष रूप से उस क्षेत्र में जहां इरफान सोलंकी की मजबूत पकड़ रही है। इस सीट पर 13 नवंबर को मतदान होना है, जबकि परिणाम 23 नवंबर को घोषित किए जाएंगे। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की नौ अन्य विधानसभा सीटों पर भी उसी दिन मतदान होना तय है, सिवाय मिल्कीपुर सीट के, जहां पिटीशन लंबित होने के कारण चुनाव की तारीख घोषित नहीं हुई है।

यह मामला चुनावी राजनीति में धर्म और राजनीति के जटिल संबंधों को एक बार फिर उजागर करता है, जहां प्रत्याशियों की धार्मिक गतिविधियां भी उनके चुनावी भविष्य को प्रभावित करती हैं।

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