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December 12, 2024 11:34 pm

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एनडीए की एकजुटता और उपचुनावों में अपना दल (एस) की अहम भूमिका

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दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश में आगामी 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव के लिए राजनीतिक दलों ने प्रचार अभियान को तेज कर दिया है। इस चुनाव में एनडीए गठबंधन के तहत भाजपा, अपना दल (सोनेलाल), राष्ट्रीय लोक दल, निषाद पार्टी, और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी ने संयुक्त रूप से अपने प्रत्याशी मैदान में उतारे हैं। खासतौर से, भाजपा प्रत्याशियों के समर्थन में अपना दल (एस) ने पूरी ताकत झोंक दी है। इसके लिए संगठन ने अपने प्रमुख पदाधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों की जिम्मेदारी सौंपते हुए चुनाव प्रचार में सक्रिय भूमिका निभाने का निर्देश दिया है।

अपना दल (एस) की भागीदारी और रणनीति: अपना दल (एस) ने एक पत्र जारी किया है, जिसमें चुनाव प्रचार के लिए अपने पदाधिकारियों को नौ विधानसभा सीटों पर अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गई हैं। यह कदम इसलिए अहम है क्योंकि इन उपचुनावों में एनडीए को पूरी तरह से संगठित होकर चुनावी मैदान में उतरना पड़ रहा है। यह सुनिश्चित करना कि एनडीए के उम्मीदवारों को हर विधानसभा क्षेत्र में मजबूत समर्थन मिले, संगठन की प्राथमिकता है।

जिम्मेदारी वितरण: प्रत्येक विधानसभा सीट के लिए अपना दल (एस) ने वरिष्ठ नेताओं और विधायकों को प्रचार की जिम्मेदारी सौंपी है। उदाहरण के लिए:

मझवा विधानसभा सीट पर जमुना प्रसाद सरोज, पूर्व विधायक, को जिम्मेदारी दी गई है।

रोहनिया से विधायक डॉ. सुनील पटेल, और मानिकपुर से विधायक अविनाश चन्द्र द्विवेदी को क्रमशः अपनी विधानसभा सीटों पर प्रचार अभियान की देखरेख करने का दायित्व मिला है।

फूलपुर में राष्ट्रीय महासचिव एवं पूर्व सांसद नागेन्द्र पटेल को मैदान में उतारा गया है।

अन्य प्रमुख नेताओं जैसे वाचस्पति (विधायक बारा) और जीतलाल पटेल (विधायक विश्वनाथगंज) को भी विशेष जिम्मेदारियां सौंपी गई हैं।

इसी तरह, गाजियाबाद विधानसभा सीट के लिए अजीत बसेला, जो राष्ट्रीय सचिव हैं, और मीरापुर के लिए जैकी अल नासिर, प्रदेश महासचिव, को नियुक्त किया गया है।

चुनाव की आवश्यकता और प्रचार की भूमिका: इन उपचुनावों का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह स्थानीय और राज्य स्तर पर एनडीए की पकड़ और लोकप्रियता की परीक्षा होगी। हालिया समय में राज्य की राजनीति में कई बदलाव हुए हैं, जिनका असर इन उपचुनावों पर पड़ सकता है। इसलिए अपना दल (एस) के जनप्रतिनिधियों की जिम्मेदारी है कि वे एनडीए के प्रत्याशियों को विजय दिलाने के लिए हरसंभव प्रयास करें।

अपना दल (एस) का इस प्रकार से सक्रिय प्रचार में उतरना यह दर्शाता है कि गठबंधन में एकजुटता बनाए रखना और इसे मजबूत करना इस चुनाव की मुख्य रणनीति है। इन उपचुनावों के परिणाम न केवल विधानसभा में सत्ता संतुलन पर असर डाल सकते हैं, बल्कि आगामी चुनावों की दिशा भी तय कर सकते हैं।

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