–केवल कृष्ण पनगोत्रा
जम्मू-कश्मीर में आपराधिक घटनाओं का बढ़ता ग्राफ समाज के लिए गंभीर चिंता का विषय बन गया है। लूटपाट, चोरी और राहजनी की घटनाएं, जो कभी अपवाद मानी जाती थीं, अब आम अपराध बन चुकी हैं। हाल ही में, हीरानगर में एक युवक को रात के अंधेरे में लूट लिया गया। यह घटना न तो पहली है और न ही आखिरी। अगर हम बीते दिनों पर नजर डालें, तो भारत ने स्वतंत्रता के बाद से आर्थिक और भौतिक विकास में तेजी से प्रगति की है। लेकिन इस विकास की चकाचौंध के पीछे हमारी सामाजिक, नैतिक और मानवीय मूल्यों में गिरावट दर्ज की गई है।
आर्थिक और भौतिक प्रगति के बीच सामाजिक पतन
आज का समाज भौतिकता की ऊँचाइयों को छूने में सक्षम हो चुका है। एक समय था जब लोग मीलों पैदल चलते थे, और अब हर व्यक्ति मोटर कार, साइकिल और हवाई यात्रा का अनुभव कर रहा है। लेकिन इसी प्रगति के बीच मानवता और नैतिकता के स्तर में भयानक गिरावट आई है। अपराध का ग्राफ लगातार बढ़ रहा है, और मानवीय मूल्यों का लोप हो रहा है।
जम्मू-कश्मीर: बढ़ते अपराध की भयावह तस्वीर
जम्मू-कश्मीर में, जहां पहले चोरी, लूट और राहजनी जैसी घटनाएं दुर्लभ थीं, अब ये सामान्य अपराध बन चुके हैं। चोरी के मामलों ने लोगों को इतना भयभीत कर दिया है कि अब एक घंटे के लिए घर खाली छोड़ना भी खतरे से खाली नहीं है। सुनसान रास्तों पर वाहन चलाना या शाम ढलते बाहर निकलना जोखिम भरा हो गया है।
अपराध के पीछे की वजहें
इन अपराधों के पीछे नशे की लत (ड्रग एडिक्शन) को मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि, बेरोजगारी और महंगाई से त्रस्त गरीब भी इसमें शामिल हो सकते हैं। ड्रग्स की तस्करी और इसके बढ़ते इस्तेमाल ने समाज को खोखला कर दिया है। चिट्टा और अन्य नशीली चीजों का नेटवर्क बड़े तस्करों से लेकर निचले स्तर के नशेड़ियों तक फैला हुआ है।
सरकार की कोशिशें और चुनौतियां
हालांकि, सरकार इन नशीली चीजों की तस्करी रोकने के लिए प्रयास कर रही है, लेकिन पूरी तरह सफल नहीं हो पाई है। आतंकवाद के खात्मे के दावे के बावजूद, चिट्टे जैसी खतरनाक नशीली चीजों का प्रचलन और तस्करी अभी भी जारी है। यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब ढूंढना आवश्यक है।
सामाजिक विकास की आवश्यकता
आज का समाज भौतिक और आर्थिक प्रगति में तो आगे बढ़ रहा है, लेकिन मानवीय और नैतिक विकास में पिछड़ रहा है। चौड़ी सड़कों और भव्य पुलों से विकास का आकलन नहीं किया जा सकता। किसी भी समाज की उन्नति उसकी मानवीय संवेदनाओं और नैतिक मूल्यों से मापी जाती है।
जम्मू-कश्मीर में बढ़ते अपराध और नशाखोरी ने समाज को जीने लायक नहीं छोड़ा है। विकास के नाम पर भौतिक उपलब्धियों का ढोल पीटना तब तक व्यर्थ है जब तक समाज में मानवता और नैतिकता का विकास नहीं होता। समाज को सही दिशा में ले जाने के लिए आवश्यक है कि हमारे कर्णधार सामाजिक और मानवीय विकास पर ध्यान केंद्रित करें, ताकि आने वाली पीढ़ियां सुरक्षित और संतुलित माहौल में जी सकें।
1 thought on “माहौल जीने लायक नहीं रहा: जम्मू-कश्मीर में बढ़ती आपराधिक घटनाओं पर विशेष”
बहुत सही बात है।
रहवासियों को भी सजग रहकर सरकार को सिस्टम को व्यवस्थित रूप से चलाने में साथ देना चाहिए।
नशा एक अस्थायी बेहोशी है, और बेहोशी खुद का दिमाग चलने नहीं देती।
और इंसान जागरूकता की स्थिति में नहीं रह पाता।
जो जागरूक इंसान है, वही बदलाव (परिवर्तन) ला सकता है समाज में।
जय हिंद।