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राजनीति

“शिवपाल” पार्टी में मुलायम काल में कभी बने रहते थे नंबर दो, अखिलेश कार्यकाल में बदला नंबर, कहीं ये रणनीति तो नहीं?

दुर्गा प्रसाद शुक्ला की रिपोर्ट 

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में बड़ा बदलाव होता दिख रहा है। समाजवादी पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी घोषित कर दी है। अखिलेश यादव के निर्देश पर कार्यकारिणी सदस्यों के नाम घोषित किए गए हैं। इसमें से कई नाम चौंकाने वाले हैं, लेकिन सबसे अधिक चर्चा जिन नामों पर हो रही है, वे शिवपाल यादव और स्वामी प्रसाद मौर्य के नाम हैं। शिवपाल यादव ने पिछले दिनों अपनी पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी का सपा में विलय कराया था। समाजवादी पार्टी में आने के बाद से उनको कोई पद न मिलने की बात लगातार उछाली जा रही थी। विवाद गरमाने के बाद अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव के आवास पर जाकर उनसे मुलाकात की थी। अब उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान मिल गया है। अखिलेश यादव को राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद कई प्रकार की चर्चाएं शुरू हो गई है। यूपी के राजनीतिक गलियारों की गतिविधि पर पैनी नजर रखने वाले राजनीतिक पंडितों की मानें तो शिवपाल यादव घाटे के सौदे में चले गए हैं। कभी समाजवादी पार्टी में नंबर दो की भूमिका में रहने वाले शिवपाल को अखिलेश की कार्यकारिणी में पांचवें नंबर पर रखा गया है। इसी को लेकर बहस शुरू हुई है।

फायदे में या घाटे में शिवपाल यादव?

सबसे बड़ी बहस इस मुद्दे पर हो रही है कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी की ताजा घोषित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान मिलने के बाद फायदे में है या घाटे में। दरअसल, मुद्दे को थोड़ा पहले से समझने का प्रयास करते हैं। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव ने पार्टी में अपने भाइयों के बीच लगातार पावर बैलेंस किया था। प्रो. रामगोपाल यादव को राष्ट्रीय राजनीति में रखा और शिवपाल यादव के संगठनात्मक गुणों को देखते हुए प्रदेश की राजनीति में रखा। रामगोपाल यादव पार्टी के राष्ट्रीय प्रधान महासचिव मुलायम सिंह यादव कार्यकाल में भी थे और अखिलेश यादव कार्यकाल में भी बने हुए हैं। मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को लगातार प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी हुई थी। इस कारण दोनों भाइयों के बीच टकराव होते हुए भी कभी यह पार्टी के भीतर नहीं झलका। दोनों को लगभग एक जैसा पोर्टफोलियो पार्टी में मिला हुआ था।

वर्ष 2012 में मुलायम सिंह यादव ने जब अपना उत्तराधिकारी अखिलेश यादव को घोषित कर दिया तो शिवपाल यादव के मन में विरोध की चिंगारी उठने लगी। वे अखिलेश के प्रतिद्वंदी के रूप में उभरने लगे। 2017 आते-आते अखिलेश और शिवपाल के बीच तलवारें खिंच गईं। शिवपाल ने अपना रास्ता बदला। समाजवादी पार्टी से अलग हुए। प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बनाई। पार्टी का संरक्षक उन्होंने मुलायम सिंह यादव को ही रखा। मतलब, मुलायमवादी राजनीति को लेकर शिवपाल चलते रहे। हालांकि, नई पार्टी गठन के बाद शिवपाल को हासिल कुछ नहीं हुआ। 2017 से लेकर 2022 तक शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के बीच विवाद और सुलह जैसी स्थिति बनती-बिगड़ती रही। चुनावों में शिवपाल समाजवादी पार्टी के करीब ही दिखे।

मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शिवपाल और अखिलेश अधिक करीब आए। दूरियां मिटी। मैनपुरी लोकसभा उप चुनाव में शिवपाल ने बहू डिंपल यादव के लिए जमकर प्रचार किया। पार्टी को बड़ी जीत हासिल हुई। इसके बाद उनकी समाजवादी पार्टी में दोबारा वापसी हुई। पार्टी में वापसी के बाद पहली बार उन्हें कोई पद मिला है। 6 साल बाद समाजवादी पार्टी मैं उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में जगह मिली, लेकिन उनका कद घटने की बात कही जा रही है। प्रो. रामगोपाल यादव की हैसियत पार्टी में पहले जैसी है। वहीं, शिवपाल यादव राष्ट्रीय महासचिव की भूमिका में होंगे। उनके सामने राष्ट्रीय प्रधान महासचिव की भूमिका में प्रो. रामगोपाल यादव होंगे। राष्ट्रीय महासचिव के 14 नामों में 1 नाम शिवपाल यादव का होने को लेकर राजनीतिक विश्लेषक इसे घाटे का सौदा मान रहे हैं।

प्रदेश में भूमिका रहेगी सीमित

शिवपाल यादव की भूमिका प्रदेश स्तर की राजनीति में कम हो जाएगी। राष्ट्रीय महासचिव बनाए जाने के बाद उनकी राष्ट्रीय राजनीति में भूमिका बढ़ेगी। वे दिल्ली की राजनीति करते हुए नजर आएंगे। अखिलेश यादव ने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की घोषणा के साथ ही यह संकेत दे दिए हैं कि शिवपाल यादव को अगले लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार भी बनाया जा सकता है। ऐसे में शिवपाल यादव और रामगोपाल यादव अब दिल्ली की राजनीति करेंगे। अखिलेश ने यूपी चुनाव 2022 के समय से ही साफ कर दिया है कि लखनऊ और यूपी की राजनीति को वे खुद देखेंगे। इस स्थिति में शिवपाल समर्थक सपा नेताओं की स्थिति में सुधार की गुंजाइश कम ही दिख रही है।

हालांकि, अखिलेश ने शिवपाल को पद देकर पार्टी के उन सीनियर नेताओं को संदेश दे दिया है कि मुलायम गुटके नेताओं को उचित सम्मान दिया जा रहा है। शिवपाल के माध्यम से ऐसे नेता पार्टी फोरम तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। मुलायम के निधन के बाद पार्टी के सभी वर्गों में इस रणनीति से मजबूत बनाने की कोशिश करते अखिलेश दिख रहे हैं। उन्होंने रामपुर में कमजोर स्थिति के बाद भी आजम खान को राष्ट्रीय महासचिव का पद दिया गया है।

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