
कानपुर के नारामऊ में हुए दर्दनाक सड़क हादसे ने कई परिवारों को झकझोर कर रख दिया है। इस हादसे में जान गंवाने वाली शिक्षिका आकांक्षा के दो साल के बेटे गौरांग की मासूमियत ने हर किसी की आंखें नम कर दीं। तोतली आवाज में बार-बार कहता – “मेली आतांक्षा तहां है, मुझे भूथ लगी है। बाबा उछको बुलाओ न।”
गौरांग, अपने पिता गौरव की गोद में सिमटा मां के इंतजार में रातभर बेचैन रहा। परिजन उसे बहलाने की कोशिश करते रहे, लेकिन वह बार-बार यही पूछता रहा – “आकांक्षा कहां है?” और हर बार यह सवाल सबके दिल को छलनी कर देता।
कल्याणपुर, मिर्जापुर निवासी आकांक्षा ही गौरांग की देखभाल करती थीं। सास राधा देवी ने बताया कि उन्हें जोड़ों के दर्द की पुरानी बीमारी है, ऐसे में अब गौरांग की परवरिश की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उनके सिर पर आ गई है।
इसके अलावा, आकांक्षा के पति गौरव एयरफोर्स में तैनात हैं और हाल ही में दिल्ली में नई पोस्टिंग पर गए थे। आकांक्षा 20 अप्रैल से छुट्टियों में पति के पास जाने वाली थीं, लेकिन अब वह यात्रा अधूरी रह गई।
ससुर अशोक कुमार त्रिपाठी ने सरकार से अपील की है कि उनके छोटे बेटे सौरभ त्रिपाठी, जो एक प्राइवेट नौकरी करते हैं, को आकांक्षा की जगह सरकारी नौकरी दी जाए ताकि परिवार की जिम्मेदारियों का निर्वहन हो सके।
परिजनों ने बताया कि आकांक्षा रोजाना बिठूर रोड से स्कूल जाती थीं, लेकिन उस दिन उन्होंने नारामऊ की तरफ का रास्ता क्यों चुना, यह राज उनके साथ ही चला गया।
चालक विशाल की तेज गाड़ी चलाने की शिकायतें पहले भी सामने आ चुकी थीं। आकांक्षा उसे कई बार समझाती थीं – “ज्यादा तेज मत चलाओ,” लेकिन विशाल हर बार यही कहता – “दीदी, मैं उतना ही तेज चलाता हूं, जितना कंट्रोल कर सकूं।”
इस हादसे में बर्रा विश्व बैंक निवासी अंजुला मिश्रा की मौत से उनकी बेटियां पर्णिका और सोनिका सदमे में हैं। 24 घंटे से ज्यादा समय बीत चुका है, लेकिन दोनों ने खाना तक नहीं खाया है।
पति आनंद मिश्रा ने बताया कि बेटियां अपनी मां को खाना खिलाए बिना खुद कुछ नहीं खाती थीं। अब वह मां की गोद के बिना सब कुछ अधूरा मान रही हैं।
घर में काम करने वाली माया ने भी इस हादसे को भुला न पाने की बात कही। वहीं, सिलेंडर देने वाले सुधीर कुमार दीक्षित ने बताया कि अंजुला हर बार सिलेंडर के साथ 50 रुपये अतिरिक्त देती थीं – यह उनकी स्नेहभावना को दर्शाता है।
चंद्र प्रकाश, जो लंबे समय से इन शिक्षिकाओं के साथ आते-जाते थे, ने बताया कि आकांक्षा कभी आगे की सीट पर नहीं बैठती थीं। लेकिन उस दिन उन्होंने पहली बार आगे की सीट पर बैठने का फैसला लिया, जो शायद उनकी किस्मत को कुछ और ही मंजूर था।
चंद्र प्रकाश के मुताबिक, गाड़ी और ड्राइवर का चयन अंजुला मिश्रा ही करती थीं और दो माह पूर्व ही नया चालक लिया गया था।
इस हादसे में यूपीएस नयामतपुर के शिक्षक चंद्र प्रकाश मिश्र की जान बच गई, क्योंकि उसी दिन उन्हें ब्रेन ट्यूमर की जांच के लिए एम्स जाना था। वह छुट्टी पर थे, इसीलिए इस भीषण हादसे से बच गए।
नारामऊ हादसा सिर्फ एक सड़क दुर्घटना नहीं थी, यह कई मासूम जिंदगियों का भविष्य उजाड़ गया। चाहे वह गौरांग हो, जो अब मां की ममता के बिना बड़ा होगा या फिर पर्णिका और सोनिका, जिनकी आंखें अब अपनी मां को कभी नहीं देख पाएंगी।
यह घटना सिर्फ तेज रफ्तार गाड़ी की लापरवाही नहीं, बल्कि हमारे सिस्टम और सुरक्षा व्यवस्था पर भी बड़ा सवाल है।
ठाकुर बख्श सिंह की
रिपोर्ट