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लखनऊ

उत्तर प्रदेश में डीजीपी नियुक्ति की नई प्रक्रिया: सियासी विवाद को मिली नई हवा

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

उत्तर प्रदेश सरकार ने हाल ही में राज्य के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) की नियुक्ति के लिए एक नई प्रक्रिया को मंजूरी दी है, जिससे राज्य में राजनीतिक विवाद पैदा हो गया है। इस नई प्रक्रिया के तहत डीजीपी की नियुक्ति के लिए छह सदस्यीय समिति का गठन किया जाएगा, जिसमें हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में निर्णय लिया जाएगा। समिति में राज्य के मुख्य सचिव, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) का एक सदस्य, राज्य सेवा चयन आयोग के अध्यक्ष, राज्य के अपर मुख्य सचिव या प्रमुख सचिव, और राज्य के पूर्व डीजीपी भी शामिल होंगे।

नई प्रक्रिया पर विवाद

नई नियुक्ति प्रक्रिया पर विपक्षी दलों ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने आरोप लगाया कि यह कदम योगी सरकार के किसी खास अधिकारी को फायदा पहुंचाने के लिए उठाया गया है। उन्होंने सोशल मीडिया पर कहा, “किसी बड़े अधिकारी को स्थायी पद देने और उनका कार्यकाल दो साल बढ़ाने की योजना बनाई जा रही है। क्या यह दिल्ली बनाम लखनऊ का नया अध्याय है?”

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कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने भी इस मामले पर सरकार को घेरा और कहा कि उत्तर प्रदेश में तीन साल से कोई स्थायी डीजीपी नहीं है, जिससे कानून व्यवस्था चरमरा गई है। उन्होंने कहा, “लखनऊ और दिल्ली के झगड़े में पिछले तीन साल से प्रदेश की कानून व्यवस्था से खिलवाड़ हो रहा है।”

सरकार का पक्ष

उत्तर प्रदेश सरकार के प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने विपक्ष के आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि अखिलेश यादव को अपने कार्यकाल को याद करना चाहिए जब वे खुद अपने फैसले नहीं कर पाते थे। त्रिपाठी ने कहा, “अखिलेश यादव को अपने समय की याद सताती है, जब उनके फैसले उनके परिवार के सदस्यों द्वारा प्रभावित होते थे।”

नई प्रक्रिया: सीनियरिटी और सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन्स पर सवाल

पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन ने नई प्रक्रिया की आलोचना करते हुए कहा कि इससे सीनियर अधिकारियों का मनोबल गिरेगा। उन्होंने कहा कि डीजीपी और मुख्य सचिव के पदों को राजनीतिक प्रभाव से दूर रखा जाना चाहिए। वहीं, पूर्व डीजीपी सुलखान सिंह ने इसे सुप्रीम कोर्ट के 2006 के फैसले के खिलाफ बताया, जिसमें डीजीपी की नियुक्ति के लिए UPSC की भूमिका को अनिवार्य किया गया था।

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पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह, जिनकी याचिका पर 2006 में सुप्रीम कोर्ट ने दिशा-निर्देश जारी किए थे, ने कहा कि नई प्रक्रिया में केंद्रीय गृह मंत्रालय के प्रतिनिधि को शामिल नहीं किया गया है। इससे केंद्र और राज्य सरकार के बीच मतभेद और बढ़ सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन?

उत्तर प्रदेश की नई प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट के 2006, 2018 और 2019 के फैसलों के विरुद्ध मानी जा रही है। इन फैसलों में कहा गया था कि राज्य सरकारें डीजीपी नियुक्ति के लिए UPSC द्वारा सुझाए गए तीन वरिष्ठ अधिकारियों में से ही चयन करेंगी और नियुक्ति के बाद उनका कार्यकाल कम से कम दो साल का होगा। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में कई राज्यों को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त करने पर अवमानना का नोटिस भी भेजा था, जिसमें उत्तर प्रदेश शामिल है।

वरिष्ठ अधिकारियों की अनदेखी

नई नियमावली के चलते राज्य के कई वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को नजरअंदाज किया जा सकता है। मौजूदा कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार से वरिष्ठ करीब एक दर्जन अफसरों को दरकिनार किया जा सकता है। इनमें एसएन साबत, आनंद कुमार, एसए रिज़वी, आशीष गुप्ता, पीवी रामाशास्त्री जैसे अधिकारी शामिल हैं।

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यदि प्रशांत कुमार को स्थायी डीजीपी नियुक्त किया जाता है, तो उनके रिटायर होने के बाद नए डीजीपी के चयन की प्रक्रिया में सिर्फ उन्हीं अधिकारियों के नामों पर विचार किया जाएगा जो जुलाई 2026 के बाद रिटायर होंगे। इससे कई वरिष्ठ अधिकारियों के बिना डीजीपी बने ही रिटायर होने की संभावना है।

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा डीजीपी नियुक्ति की नई प्रक्रिया को लेकर उठाया गया कदम एक नए राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है। विपक्ष का आरोप है कि यह पूरी प्रक्रिया एक खास अधिकारी को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है। वहीं, सरकार का कहना है कि नई प्रक्रिया से पुलिस विभाग की कार्यक्षमता में सुधार होगा। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का पालन न करने को लेकर विवाद और बढ़ सकता है, जिससे राज्य और केंद्र सरकार के बीच तनाव भी बढ़ सकता है।

आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि इस नई नियुक्ति प्रक्रिया के लागू होने से राज्य की कानून व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ता है और क्या यह विवाद सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचता है या नहीं।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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