इटावा में कथावाचक के साथ हुई बदसलूकी पर सियासत गरम, ओपी राजभर ने अखिलेश यादव पर जातीय राजनीति करने का आरोप लगाया। कहा—सिर्फ यादव पक्ष का समर्थन उचित नहीं, कानून का राज सबसे ऊपर है।
ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
लखनऊ। इटावा के दादरपुर गांव में कथावाचक मुकुट मणि यादव के साथ हुई अमर्यादित घटना को लेकर प्रदेश की राजनीति गर्मा गई है। अब इस मामले पर उत्तर प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर ने कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव पर तीखा हमला करते हुए कहा कि “सिर्फ एक जाति का पक्ष लेकर जातीय राजनीति को बढ़ावा देना गलत है।”
21 जून की घटना और 26 जून का तनाव
गौरतलब है कि 21 जून को इटावा जिले के बकेवर थाना क्षेत्र के दादरपुर गांव में कथावाचक मुकुट मणि यादव और उनके सहयोगी संत कुमार यादव के साथ कुछ ग्रामीणों ने बदसलूकी की थी। कथित तौर पर कथावाचक का सिर मुंडवाकर उनका अपमान किया गया और उन पर “गांव को अपवित्र करने” का आरोप लगाया गया।
इस घटना के विरोध में 26 जून को ‘अहीर रेजिमेंट’ और अन्य संगठनों ने उग्र प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के दौरान पुलिस पर पथराव हुआ, वाहनों को नुकसान पहुंचाया गया और आगरा-कानपुर नेशनल हाईवे को घंटों जाम कर दिया गया। स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस को हवाई फायरिंग करनी पड़ी और कई प्रदर्शनकारियों को हिरासत में लिया गया।
ओपी राजभर का बयान: कानून सबसे ऊपर
इन घटनाओं की निंदा करते हुए ओपी राजभर ने स्पष्ट कहा कि “सरकार संविधान के अनुसार चल रही है। कोई भी कानून से ऊपर नहीं है।” उन्होंने कथावाचक के साथ हुए दुर्व्यवहार की भी निंदा की और साथ ही 26 जून को हुई पत्थरबाजी को भी गलत ठहराया।
उन्होंने कहा—
“कथावाचक के साथ गलत हुआ, परंतु जो लोग कानून अपने हाथ में लेंगे, चाहे वे कोई भी हों, उन्हें बख्शा नहीं जाएगा। पुलिस पर पथराव, सरकारी संपत्ति को नुकसान और सड़क जाम जैसी हरकतें किसी भी हाल में स्वीकार्य नहीं हैं।”
अखिलेश यादव पर निशाना: “सिर्फ एक जाति का समर्थन क्यों?”
ओपी राजभर ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर आरोप लगाया कि उन्होंने कथावाचक को 51,000 रुपये की आर्थिक सहायता देकर केवल एक पक्ष का समर्थन किया, जबकि घटना में दोनों पक्षों के खिलाफ एफआईआर दर्ज है।
उन्होंने कहा—
“अगर आप पीडीए यानी पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक की बात करते हैं, तो दोनों पक्षों को सम्मान दीजिए। केवल यादव समुदाय को समर्थन देना और ब्राह्मण पक्ष को नजरअंदाज करना, पीडीए की आत्मा के खिलाफ है।”
राजभर ने यह भी कहा कि सपा के कार्यकाल में जातीय तनाव और दंगे आम हुआ करते थे और आज भी वही राजनीति की जा रही है।
“जातिवाद को खत्म करें, न कि उसे हवा दें”
ओपी राजभर ने संविधान और महापुरुषों का हवाला देते हुए कहा कि
“महात्मा बुद्ध, ज्योतिबा फुले, सावित्रीबाई फुले, शाहूजी महाराज और डॉ. भीमराव अंबेडकर ने हमेशा समता, शांति और न्याय की बात की। उनके विचारों को ही संविधान में जगह दी गई है।”
उन्होंने आगे कहा—
“हमें जातिवाद को मिटाना है, उसे बढ़ाना नहीं। गलत चाहे कोई भी करे, उसे सजा मिलनी चाहिए। कानून का शासन सबसे ऊपर है।”
कांवड़ यात्रा पर बोले: “शांति व्यवस्था प्राथमिकता”
कांवड़ यात्रा के दौरान खुले में मांस बिक्री और दुकानों पर नेमप्लेट लगाने के योगी सरकार के निर्देश पर ओपी राजभर ने कहा कि सरकार का उद्देश्य धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचने से रोकना और सामाजिक सौहार्द बनाए रखना है।
उन्होंने स्पष्ट किया—
“यह आदेश विवादों को टालने और शांति बनाए रखने के लिए दिया गया है। आस्था का सम्मान जरूरी है, लेकिन कानून भी साथ-साथ चलेगा।”
दत्तात्रेय होसबोले के बयान पर प्रतिक्रिया
आरएसएस नेता दत्तात्रेय होसबोले द्वारा ‘समाजवाद’ और ‘धर्मनिरपेक्षता’ जैसे शब्दों को संविधान से हटाने की बात पर राजभर ने कहा,
“यह उनका निजी मत हो सकता है। लेकिन संविधान में हर नागरिक को अपनी संस्कृति और धर्म के अनुसार जीने का अधिकार है। समाजवाद का मतलब जातिवाद खत्म करना है। अगर जाति हटाने से भेदभाव खत्म होता है, तो यह स्वागतयोग्य कदम है।”
मामला संवेदनशील, जरूरत है संतुलन की
इटावा की घटना ने न सिर्फ स्थानीय प्रशासन, बल्कि प्रदेश की राजनीति को भी झकझोर दिया है। जहां एक ओर हिंसा और पत्थरबाजी निंदनीय है, वहीं राजनीतिक दलों द्वारा जातिगत आधार पर बयानबाजी करना स्थिति को और जटिल बना सकता है। ऐसे में यह आवश्यक है कि कानून और संविधान के दायरे में रहकर सभी पक्षों को न्याय मिले—यही लोकतंत्र की असली पहचान है।