उत्तर प्रदेश में बिजली दरों को लेकर बड़ा टकराव! पावर कॉरपोरेशन ने 30% बढ़ोतरी का प्रस्ताव भेजा, जबकि उपभोक्ता परिषद 45% कटौती की मांग पर अड़ी। जानिए क्या है पूरा मामला और जून में क्या हो सकता है फैसला।
चुन्नीलाल प्रधान की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश में बिजली दरों को लेकर स्थिति लगातार उलझती जा रही है। एक ओर राज्य की पावर कॉरपोरेशन बिजली दरों में 30% तक की बढ़ोतरी की मांग कर रही है, वहीं दूसरी ओर उपभोक्ता परिषद ने इसका कड़ा विरोध करते हुए 40-45% तक की कटौती का प्रस्ताव विद्युत नियामक आयोग (UPERC) के समक्ष प्रस्तुत किया है। जानकारों का मानना है कि आयोग जून 2025 में इस मामले पर सार्वजनिक सुनवाई शुरू करेगा। ऐसे में अब पूरे प्रदेश की नजरें इस सुनवाई पर टिकी हैं।
पावर कॉरपोरेशन की दलील: घाटे की भरपाई जरूरी
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने वित्तीय वर्ष 2025-26 के लिए बिजली दरों में 30% वृद्धि का प्रस्ताव दिया है। उनका तर्क है कि पिछले पाँच वर्षों से बिजली दरों में कोई बदलाव नहीं हुआ है, जिससे उन्हें 19,600 करोड़ रुपये का राजस्व घाटा उठाना पड़ा है। कॉरपोरेशन का कहना है कि यह घाटा उपभोक्ताओं से वसूली के जरिए पूरा करना आवश्यक है, ताकि बिजली आपूर्ति की गुणवत्ता बनी रहे।
उपभोक्ता परिषद की आपत्ति: घाटा कृत्रिम और अनुचित
इसके विपरीत, राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद ने इस प्रस्ताव को खारिज करते हुए 40-45% तक कटौती की मांग की है। परिषद का कहना है कि कॉरपोरेशन ने पहले ही उपभोक्ताओं से वसूली की गई राशि को घाटे में दर्शाया है, जो कि एक भ्रामक लेखा प्रबंधन का उदाहरण है।
परिषद ने यह भी आरोप लगाया कि स्मार्ट प्रीपेड मीटर परियोजना में 9,000 करोड़ रुपये की अधिक राशि खर्च की गई, जो उपभोक्ताओं पर अनुचित आर्थिक बोझ डालती है। साथ ही, बिजली दरों में शामिल फिक्स्ड कॉस्ट का प्रतिशत (54%) भी असामान्य रूप से अधिक बताया गया है।
प्रमुख विवाद बिंदु एक नजर में
- बिजली दरों में बदलाव 30% की बढ़ोतरी 45% तक कटौती संभव
- राजस्व घाटा 19,600 करोड़ रुपये पूर्व वसूली को घाटा बताया
- स्मार्ट मीटर जरूरी निवेश अनुमोदन से 9,000 करोड़ अधिक खर्च
- फिक्स्ड कॉस्ट बिजली खरीद की लागत 54% अत्यधिक बोझिल
परिषद के आरोप: अनियमितताओं की लंबी फेहरिस्त
उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने आरोप लगाया कि कंपनियां जानबूझकर घाटा दिखा रही हैं। उनके अनुसार, 2017-18 में 13,337 करोड़ रुपये का उपभोक्ता बकाया था, जो 2025 तक बढ़कर 35,000 करोड़ रुपये से अधिक हो गया है। इसके बावजूद इसे घाटे के रूप में दिखाया जा रहा है।
नोएडा पावर कंपनी को लेकर परिषद ने सवाल उठाया कि जब वहां लगातार तीन वर्षों से 10% की दर में कटौती की गई है, तो वही व्यवस्था अन्य कंपनियों पर क्यों नहीं लागू होती?

सौभाग्य योजना के तहत दिए गए मुफ्त कनेक्शनों पर भी उंगलियां उठाई गई हैं। परिषद का कहना है कि 54 लाख में से कई उपभोक्ता बिजली बिल ही नहीं चुका रहे, और अब उनके लिए भेजे जा रहे भारी-भरकम बिल बाकी उपभोक्ताओं पर बोझ बढ़ा रहे हैं।
पावर कॉरपोरेशन का जवाब: पारदर्शिता पर जोर
पावर कॉरपोरेशन के मुख्य अभियंता (वाणिज्य) डीसी वर्मा और मुख्य महाप्रबंधक (वित्त) सचिन गोयल ने अपने वित्तीय दस्तावेजों का बचाव किया। उन्होंने कहा कि सभी आंकड़े ERP सिस्टम के माध्यम से पारदर्शी रूप से तैयार किए जाते हैं और इनका CAG ऑडिट भी कराया जाता है।
आगे क्या?
अब सारा दारोमदार विद्युत नियामक आयोग पर है, जो जून 2025 में सार्वजनिक सुनवाई शुरू करेगा। आयोग सभी पक्षों की दलीलों और आंकड़ों की समीक्षा करेगा और उसके आधार पर तय करेगा कि बिजली दरें बढ़ेंगी, घटेंगी या यथावत रहेंगी।
उत्तर प्रदेश में बिजली दरों को लेकर गहराता यह टकराव सिर्फ आर्थिक नहीं, बल्कि नीतिगत पारदर्शिता और उपभोक्ता हितों का भी मसला है। पावर कॉरपोरेशन और उपभोक्ता परिषद के आंकड़ों में फर्क साफ झलक रहा है। अब देखना होगा कि नियामक आयोग किसके पक्ष में फैसला सुनाता है—क्या आम जनता को राहत मिलेगी, या जेब पर पड़ेगा और बोझ?