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संपादकीय

मदरसों पर सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: शिक्षा और संवैधानिकता का संतुलन

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अनिल अनूप

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने उत्तर प्रदेश के मदरसों के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए इन्हें ‘संवैधानिक’ करार दिया है। न्यायालय ने यह स्पष्ट किया है कि मदरसे, जो धार्मिक शिक्षण संस्थान हैं, संविधान के धर्मनिरपेक्ष ढांचे का उल्लंघन नहीं करते। इस फैसले के अनुसार, उत्तर प्रदेश मदरसा शिक्षा अधिनियम, 2004 और उससे संबंधित मदरसा बोर्ड ‘अवैध’ नहीं हैं, और इनका अस्तित्व संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों को प्रदान किए गए अधिकारों के अंतर्गत है।

मदरसे लंबे समय से समाज के एक महत्वपूर्ण हिस्से के रूप में कार्य कर रहे हैं। धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ इन संस्थानों ने लाखों बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान की है। हालांकि, मदरसों को अक्सर संदेह की नजर से देखा गया है, और इन्हें ‘आतंकवाद के अड्डे’ अथवा ‘इस्लामिक प्रचारक’ संस्थान के रूप में निरूपित किया गया है। ऐसे में, न्यायालय का यह फैसला अत्यंत आवश्यक था, ताकि धार्मिक और शैक्षिक संस्थानों के प्रति समाज की धारणा और राज्य के कर्तव्यों को एक नई दृष्टि मिल सके।

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि राज्य सरकार को मदरसों में आधुनिक शिक्षा प्रदान करने का अधिकार है। मदरसों में गणित और विज्ञान जैसे विषयों को शामिल किया जा सकता है ताकि छात्रों को रोजगारपरक और व्यावहारिक ज्ञान दिया जा सके। न्यायालय ने कहा कि हालांकि मदरसे कुरान की शिक्षा देते हैं, पर यह शिक्षा के दायरे से बाहर नहीं है। शिक्षण का मकसद छात्रों को बेहतर भविष्य देना है, और संविधान के अनुच्छेद 30 के तहत अल्पसंख्यक समुदायों को अपने शिक्षण संस्थान स्थापित करने और उन्हें चलाने का अधिकार है।

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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पहले मदरसा शिक्षा अधिनियम को ‘असंवैधानिक’ माना था और राज्य के सभी मदरसों को बंद करने का आदेश दिया था। यह आदेश उन छात्रों और शिक्षकों के भविष्य के लिए गंभीर संकट बन गया था, जिनकी शिक्षा और आजीविका मदरसों से जुड़ी है। सर्वोच्च न्यायालय ने इस आदेश को खारिज कर उत्तर प्रदेश के 13,364 मदरसों और उनमें पढ़ने वाले 12,34,388 छात्रों के भविष्य को संरक्षित किया है। साथ ही, हजारों शिक्षकों की नौकरी भी सुरक्षित हुई है।

न्यायालय ने यह भी कहा कि मदरसों के ‘कामिल’ और ‘फाजिल’ डिग्री पाठ्यक्रम, जो स्नातक और स्नातकोत्तर स्तर के हैं, अवैध माने जाएंगे, क्योंकि ये विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के अधिनियम का उल्लंघन करते हैं। केवल UGC से मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय ही स्नातक और स्नातकोत्तर डिग्रियां दे सकते हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को मदरसों की गतिविधियों की निगरानी करने का अधिकार दिया है। यदि किसी मदरसे में कानून-व्यवस्था को खतरे में डालने वाली गतिविधियाँ होती हैं या आतंकवादी संपर्क पाए जाते हैं, तो उनके खिलाफ सख्त कदम उठाए जा सकते हैं। लेकिन केवल संदेह के आधार पर सभी मदरसों को ‘आतंकी अड्डे’ करार नहीं दिया जा सकता।

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यह फैसला धार्मिक संस्थानों के प्रति संतुलित दृष्टिकोण का प्रतीक है, क्योंकि इसमें न तो सभी मदरसों को दोषी ठहराया गया है और न ही उन्हें बिना उचित कारण के बंद करने की बात कही गई है। इस निर्णय से शिक्षा के अधिकार और अल्पसंख्यकों के सांविधानिक अधिकारों के बीच एक समन्वय स्थापित होता है।

भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और विविधता वाले देश में यह फैसला महत्वपूर्ण है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी समुदायों के धार्मिक शिक्षण संस्थान सरकार की निगरानी में रहकर, कानून के दायरे में, शिक्षा प्रदान कर सकें।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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