अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट
प्रयागराज: जिंदगी कब पूरी तरह से पलट जाए कहा नहीं जा सकता है। जिंदगी में यू-टर्न आते हैं। अहद से अधिक इसे कौन जान- समझ सकता है। पिता के साथ उन्होंने जितने टायर्स की पंचर की मरम्मत नहीं की होगी, उससे अधिक बड़ा बदलाव उनकी लाइफ में आ गया है। 26 वर्षीय अहद अब सिविल जज बनने की तैयारी कर रहे हैं। प्रयागराज के गांव की झोपड़ी में रहकर अपने पिता की पंचर बनाने में मदद करने वाले अहद ने अपनी प्रतिभा से सबको हैरान कर दिया है। ट्रेनिंग के बाद वे सिविल जज बन जाएंगे।
अहद अहमद कभी-कभी अपने पिता की टायरों की मरम्मत में मदद किया करते थे। उनका यह छोटा-सा व्यवसाय एक झोपड़ी से संचालित होता है। वह अब जल्द ही कोर्ट रूम में नजर आएंगे। न्याय की आस लगाए कोर्ट पहुंचने वालों को इंसाफ देंगे। अहद उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब वे अपनी मां और पिता को अपने आरामदायक, आधिकारिक क्वार्टर में ले जा सकें।
पिता की है टायर मरम्मत की दुकान
अहद के पिता शहजाद अहमद (50) एक टायर मरम्मत की दुकान के मालिक हैं। उनकी मां अफसाना बेगम (47) अपने पड़ोस में महिलाओं के लिए कपड़े सिलती हैं। प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर ब्लॉक के बरई हरख गांव में रहने वाला यह परिवार आज काफी खुश है। वे एक ऐसे बेटे के गौरवान्वित माता-पिता हैं, जिसने कठिन जीवन की चुनौतियों का सामना किया। पहले वकील बना और फिर प्रांतीय सिविल सेवा (न्यायिक) की अंतिम परीक्षा उत्तीर्ण की। अहद के दिसंबर में अपना साल भर का प्रशिक्षण शुरू करने की संभावना है। इसके बाद वे सिविल जज (जूनियर डिवीजन) बन जाएंगे।
घर मामूली, संकल्प असाधारण
शाहजाद अहमद का घर जितना मामूली है, उनका संकल्प उतना ही असाधारण है। उन्होंने अपने तीन बेटों को स्कूल और कॉलेज में पढ़ाया। शिक्षा के महत्व को शाहजाद बखूबी समझते थे। उनके बेटे शिक्षा के जीवन बदलने वाले प्रभाव का एक जीवंत उदाहरण हैं। सबसे बड़ा बेटा समद (30) सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। सबसे छोटा बेटा वजाहत (24) एक निजी बैंक में मैनेजर है। मंझले बेटे अहद ने 2019 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अपना इंटीग्रेटेड लॉ कोर्स पूरा किया। उन्होंने अपना करियर इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक वकील के जूनियर के रूप में शुरू किया। हालांकि, उनकी महत्वाकांक्षा बार से बेंच तक जाने की थी।
लॉकडाउन में शुरू की थी तैयारी
अहद कहते हैं कि जजों की परीक्षा के लिए मेरी तैयारी लॉकडाउन के दौरान शुरू हुई। मैंने मुफ्त ऑनलाइन कोचिंग कक्षाओं की मदद ली, क्योंकि हमारी वित्तीय स्थिति मुझे कोचिंग संस्थान में शामिल होने की अनुमति नहीं देती थी। 303 पदों के लिए हुई परीक्षा में उनकी रैंक 157 थी। उनकी मां ने परिवार की झेली गई कठिनाइयों का वर्णन करते हुए कहा कि मेरे पति की कमाई मुश्किल से हमें खिलाने के लिए पर्याप्त थी। लेकिन, हम अपने बच्चों को शिक्षित करना चाहते थे। इसलिए, मैंने कई साल पहले सिलाई का काम शुरू किया। हम दोनों ने बहुत मेहनत की और हमारे प्रयासों का फल मिला बंद। अहद कहते हैं कि मैं और मेरे भाई शिक्षा की शक्ति में हमारे विश्वास का परिणाम हैं।
अहद से जब पूछा गया कि कठिन परीक्षा की तैयारियों के बीच वे अपने पिता की टायर ठीक करने वाली दुकान पर कैसे मदद की? वे कैसे टायर ठीक कर पाते थे। अहद ने कहा कि पिता को टायरों की मरम्मत में मदद करने से मेरा दिमाग शांत हो जाता है। भावी जज का कहना है कि इस कार्य से मुझे मदद मिली। उनके इस फैसले पर बहस करना कठिन दिखता है।
Author: samachar
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