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राजनीति

गठबंधन के नाम पर ‘तकरार’ के बीच विपक्ष के हौसले बुलंद

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आत्माराम त्रिपाठी की रिपोर्ट 

बीजेपी की अगुआई वाले एनडीए के खिलाफ विपक्ष के 26 दलों के गठबंधन के नाम I.N.D.I.A. पर घमासान मचा हुआ है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर तंज कसते हुए कह चुके हैं कि नाम बदलने से क्या हो जाता है, ‘इंडिया’ नाम तो ईस्ट इंडिया कंपनी में भी था, पीएफआई में था, इंडियन मुजाहिदीन में भी था।

विपक्ष ने पलटवार करते हुए इसे पीएम मोदी की ‘इंडिया’ के प्रति नापसंदगी करार दिया है। गठबंधन के नाम पर ‘तकरार’ के बीच विपक्ष के हौसलें बुलंद हैं। यहां तक कि नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ संसद में अविश्वास प्रस्ताव भी लाया जा चुका है। विपक्ष का जोश हाई है। लेकिन I.N.D.I.A. का दांव कहीं ग्रैंड ओल्ड पार्टी कांग्रेस के लिए नुकसान सबब न बन जाए?

विपक्ष के गठबंधन का अभी नाम और अगली मीटिंग का वेन्यू ही तय हुआ है। गठबंधन के सामने असल चुनौती सीट शेयरिंग पर सहमति बनाना है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस कितना ज्यादा त्याग कर सकती है, गठबंधन में सफल सीट शेयरिंग फॉर्म्युला बनाना इसी पर निर्भर करेगा।

प्रधानमंत्री पद के लिए चेहरा कौन होगा? ये भी बड़ा सवाल है लेकिन I.N.D.I.A. चुनाव बाद इसका फैसला करने की बात कहकर इस चुनौती टाल सकता है।

I.N.D.I.A. के लिए कांग्रेस को बड़ा त्याग करना पड़ रहा है। अपने ही तमाम स्टेट यूनिट की राय को दरकिनार कर गठबंधन का कुनबा बढ़ाने की कोशिश करना कोई छोटा-मोटा त्याग नहीं है।

गठबंधन में आम आदमी पार्टी के शामिल होने से दिल्ली और पंजाब कांग्रेस असहज हैं। इसी तरह पश्चिम बंगाल में टीएमसी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की राज्य ईकाई असहज है।

आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की जिस स्टेट यूनिटी में सबसे ज्यादा बेचैनी है, वह है पंजाब। पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष प्रताप सिंह बाजवा ने दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे से मुलाकात कर AAP के साथ गठबंधन पर विरोध दर्ज कराया है।

पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष अमरिंदर सिंह राजा वडिंग भी शुरुआत में AAP के साथ गठबंधन के खिलाफ दिखे लेकिन अब उनके तेवर नरम है। दूसरी तरफ, नवजोत सिंह सिद्धू ने दिल खोलकर I.N.D.I.A. का स्वागत किया है। यानी इस मुद्दे पर पंजाब कांग्रेस के नेताओं में ही मतभेद है।

दिल्ली में भी कांग्रेस की स्टेट यूनिट आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर असहज है। अजय माकन तो कई बार इस मुद्दे पर मुखर होकर बोल चुके हैं।

इसी तरह, पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के साथ गठबंधन को लेकर स्टेट कांग्रेस यूनिट असहज है।

बंगाल कांग्रेस प्रमुख और लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी लगातार टीएमसी चीफ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के खिलाफ हमला बोलते रहे हैं। I.N.D.I.A. के ऐलान के बाद भी उनके टीएमसी और ममता पर हमले थमे नहीं हैं। दूसरी तरफ, कांग्रेस हाईकमान को पता है कि बीजेपी को हराने के लिए ममता बनर्जी का साथ जरूरी है। तभी तो पार्टी ने बेंगलुरु में उन्हें खासा तवज्जो दिया।

विपक्ष की बैठक में ममता बनर्जी की कुर्सी सोनिया गांधी के ठीक बगल में लगी थी। चर्चाएं तो ये भी हैं कि लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस अधीर रंजन चौधरी को बंगाल कांग्रेस चीफ की भूमिका से हटा सकती है।

AAP के साथ जाने से क्यों डर रहीं स्टेट कांग्रेस?

आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर अभी दिल्ली और पंजाब कांग्रेस में ही असहजता दिखी है लेकिन आगे ये कुछ अन्य राज्यों में भी देखने को मिल सकता है। गुजरात भी वैसा ही एक राज्य है। गुजरात विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को ठीक-ठाक कामयाबी मिली और अब वह राज्य में कुछ लोकसभा सीटों पर भी अपनी दावेदारी छेड़ेगी। वहां भी कांग्रेस को ‘त्याग’ करना पड़ सकता है।

आखिर आम आदमी पार्टी के साथ गठबंधन को लेकर कांग्रेस की स्टेट यूनिट में डर क्यों है? इसका जवाब दिल्ली में छिपा हुआ है। दिल्ली में बीजेपी को सत्ता से दूर करने के लिए कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया लेकिन नतीजा क्या निकला?

कांग्रेस के साथ मिलकर 49 दिन तक सरकार चलाने के बाद अरविंद केजरीवाल ने उससे किनारा कर लिया। फिर जब चुनाव हुए तो कांग्रेस से उसके परंपरागत वोट छिटककर आम आदमी पार्टी की झोली में जा गिरे। आलम ये है कि दिल्ली में पिछले 2 विधानसभा चुनावों से कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला है।

प्रताप सिंह बाजवा जैसे नेताओं को डर है कि पंजाब में आम आदमी पार्टी के साथ कांग्रेस का गठबंधन सूबे में पार्टी के वजूद के लिए खतरा न बन जाए। सूबे में कहीं कांग्रेस का हाल दिल्ली जैसा न हो जाए।

वैसे भी क्षेत्रीय दल राष्ट्रीय पार्टियों की कीमत पर ही मजबूत होते हैं। कांग्रेस के कमजोर होने से ही देश में तमाम क्षेत्रीय पार्टियां पनपीं और मजबूत हुईं। कांग्रेस के लिए I.N.D.I.A. क्यों नुकसानदेह साबित हो सकता है, इसका जवाब अतीत के उसके अनुभवों में छिपा हुआ है। आजादी के बाद लंबे वक्त तक देश में कांग्रेस का ही एकछत्र राज था। लेकिन एक बार अगर किसी राज्य में कांग्रेस के सामने परंपरागत मुख्य प्रतिद्वंद्वी के अलावा कोई तीसरी ताकत उभरी तो उसे ही सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचा।

यूपी में सपा, बसपा के उभार के बाद देश के सबसे बड़े सियासी सूबे में कांग्रेस हाशिए पर चली गई। बिहार में आरजेडी, जेडीयू जैसे क्षेत्रीय दलों के उभार के बाद कांग्रेस की दुर्गति हो गई। वजह यही रही कि इन क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस से उसका परंपरागत वोट तक झटक लिया। क्षेत्रीय दलों की वजह से मुस्लिम कांग्रेस से छिटक गए, दलित छिटक गए।

अब अगर आम आदमी पार्टी गुजरात, राजस्थान या मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में उभरती है तो सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस को ही होगा।

नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी की केंद्र की सत्ता में हैटट्रिक को रोकने के लिए विपक्ष ने I.N.D.I.A. का दांव तो चल दिया है लेकिन कांग्रेस को इसकी कीमत चुकानी पड़ सकती है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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