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पहाड़ की शांत शबनम पर उग रहे नशे के सजर ; नशे का मरकज बन चुकी रेव पार्टियां

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ममता चौधरी की रिपोर्ट 

किसी भी क्षेत्र में इंकलाब लाने की सलाहियत रखने वाले मुल्क के मुस्तकबिल युवावेग के लब यदि नशे के तलबगार बन जाएं तो मुकाम जुर्म की दुनिया में ही तलाशा जाएगा। आगाज-ए-जवानी में अजीम मुस्सविर बनने का ख्वाब देखने वाली निगाहें यदि नशे के लिए बेताब रहें तो युवा ताकत का भविष्य जुल्मत के दौर में ही जाएगा। नशे की सुनामी के आगे अभिभावकों के अरमान जमींदोज हो रहे हैं। नशीले पदार्थों के व्यसन से दर्दनाक मौतें व जहरीली शराब से मातम का चित्कार जैसी खौफनाक खबरें जब अखबारों के पन्नों पर धूल उड़ाती हैं तो अभिभावकों की जिंदगी और भी तल्ख तरीन हो जाती है। लेकिन तरक्की की इबारत लिखने की बेचैनी पैदा करने वाली मेहनत का नशा यदि जुनून बनकर जीवन में शुमार हो जाए तो मुकद्दर के बंद पड़े दरवाजे भी खुल जाते हैं। मुनासिब मुकाम हासिल करने के लिए मेहनत का जुनून किसी मशबरे का मोहताज नहीं होता। अपने पराक्रम के बल पर हिंदोस्तान को गौरवान्वित करने वाले सैन्य पृष्ठभूमि के गढ़ हिमाचल प्रदेश में कुछ वर्ष पूर्व तक नशाखोरी जैसी चीजें देखने सुनने को नहीं मिलती थी, मगर हर रोज नशीले पदार्थों का पकड़ा जाना राज्य में नशा माफिया के बेखौफ कारोबार व मजबूत नेटवर्क की तस्दीक करता है।

पहाड़ की शांत शबनम पर उग रहे नशे के सजर व नशे की अवैध तिजारत देवभूमि की धरा पर इंतशार पैदा कर रहे हैं। देश के सबसे शांतमयी राज्यों में शुमार हिमाचल में पर्यटन के नाम पर देश विदेश के सैलानियों व प्रवासियों की बढ़ती संख्या से प्रदेश में नशाखोरी व कई संगीन वारदातों की नई दस्तक महसूस हो रही है। दरअसल भारतीय सेना द्वारा चार युद्धों में शर्मनाक शिकस्त का अजाब झेलकर आलमी सतह पर जलील हो चुके पाक सिपहसालारों ने सरहदों पर आतंक व नशे की सप्लाई को भारत के खिलाफ अपना अचूक हथियार बना लिया है। देश के समृद्ध राज्य पंजाब में लगभग चार दशक पूर्व पाकिस्तान ने नशाखोरी का एक ऐसा नेटवर्क खड़ा किया जिसने युवा कौम को नशे के जाल में फंसाकर बर्बादी के मुहाने पर खड़ा कर दिया। पांच दरियाओं की धरती कहे जाने वाले पंजाब सूबे में छठा दरिया नशे का बहना शुरू हुआ। नशीले पदार्थों की खपत का एक बड़ा बाजार बनने के कारण ही पंजाब की शिनाख्त ‘उड़ता पंजाब’ के रूप में हुई।

दहशतगर्दी के मरकज पाकिस्तान से लगती अंतर्राष्ट्रीय सरहद पर ड्रोन जैसी आधुनिक तकनीक से नशीले पदार्थों की तस्करी को अंजाम दिया जा रहा है। पंजाब से लगते हिमाचल के जिलों में भी नशे की गतिविधियां रफ्तार पकड़ रही हैं। लेकिन सरहदों व समुद्री तटों पर नशा तस्करी के अलावा कुछ वर्षों से देश में रेव पार्टियों व हुक्का बार के रूप में नशे का एक नया प्रचलन शुरू हो चुका है। विडंबना है कि गरीब व मजदूर वर्ग जहरीली शराब का शिकार होकर मौत की आगोश में समा रहे हैं तथा बेहद महंगे नशे के लिए कुख्यात हाइप्रोफाइल रेव पार्टियों में धनकुबेरों के शहजादों की बज्म सजती हैं। रेव पार्टी यानि कई किस्म के महंगे नशे व मौज मस्ती से लबरेज जोशीली बज्म-ए-अंजुम। जहां अय्याशी के खुले इंतजाम में जिगर की ख्वाहिश केवल नशा होता है। चरम पर अश्लीलता के आगे नैतिकता, शिष्टाचार व गैरत भी शर्मसार होकर अपना वजूद तलाशने को मजबूर रहते हैं। डीजे की बुलंद आवाज में युवाओं को मदहोश करके मर्यादाओं से ज्यादा अदाओं को अहमियत देने वाली पश्चिम की इस बेमुरब्बत तहजीब ने युवावर्ग को संस्कार विहीन करके भारतीय संस्कृति से विमुख कर दिया है।

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चिंताजनक पहलू यह है कि बड़े शहरों व समंदर के बीच में नशे से गुलजार होने वाली निशाचर रेव पार्टियों का क्रेज देवभूमि के पहाड़ों पर भी दस्तक दे चुका है। जांच एजेंसियों से महफूज रहने के लिए नशे के इस खेल को रेव पार्टियों के जरिए पहाड़ों पर खुफिया तरीके से अंजाम दिया जाता है। नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो जैसी सुरक्षा एंजेसियां रेव पार्टियों पर छापा मार कर कई लोगों को हिरासत में लेती हैं, मगर धनबल व रसूखदारी के आगे व्यवस्था भी खामोश हो जाती है। देश के कई शहरों में हुक्का बार का प्रचलन भी तेजी से फैल रहा है। कई होटल व रेस्तरां में नशे के शौकीन युवक व युवतियों के हुक्का गुडग़ुड़ाने व सिगार का धुंआ उड़ाने की खबरें अक्सर सुर्खियां बनती हैं। कई तरह के रसायन युक्त फ्लेवर पेश करके हुक्का बारों में युवाओं का इस्तकबाल पूरी शिद्दत से होता है। स्वास्थ्य के लिहाज से खतरनाक मादक धुंआ हुक्का बारों के जरिए युवावर्ग को आकर्षित करके नशे की दलदल में धकेल रहा है। हुक्का बार व रेव पार्टियों का आयोजन इसके संचालकों के लिए फायदेमंद साबित हो रहा है, लेकिन देश की दशा व दिशा बदलने की काबिलियत रखने वाले युवा नशाखोरी के अवैध धंधे में मुल्लविश होकर खुद दिशाहीन हो रहे हैं। सभ्य समाज में फैल रही कई बुराइयों का श्रेय समाज का दर्पण कहे जाने वाले सिनेमा व बालीवुड के अदाकारों को भी जाता है।

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भारतीय संस्कृति व संस्कारों को दूषित करने वाली पश्चिमी तहजीब फिल्मों के जरिए ही समाज की दहलीज तक पहुंची है। ड्रग माफियाओं ने नशे की काली कमाई से करोड़ों रुपए का साम्राज्य खड़ा कर लिया है, मगर कई घरों के चश्म-ओ-चराग बुझ गए। नशा करने वालों के गुलशन उजड़ गए आशियाने बिक रहे हैं। नशे के बड़े सरगना कानूनी नुक्तों के लूपहोल से अक्सर बच निकलते हैं। नशाखोरी से बिगड़ रहे खौफनाक हालात मुल्क के निजाम से सवाल पूछने को मजबूर करते हैं। सवाल अक्सर जम्हूरियत की पंचायतों में विराजमान मुल्क के रहबरों से ही पूछे जाते हैं। बहरहाल इससे पहले कि मुल्क का भविष्य युवावर्ग नशे की परवाज में मफलूज हो जाए, जुल्मत-ए-शब की नशीली महफिल रेव पार्टियों व नशे का मरकज हुक्का बारों पर लगाम लगनी चाहिए। शौर्य पराक्रम के धरातल वीरभूमि व देवभूमि की शिनाख्त वाले सूबे हिमाचल को नशाभूमि बनने से रोकने के लिए हैरोइन व सिंथेटिक ड्रग जैसे जानलेवा नशे की चपेट में आ चुकी पहाड़ की जवानी को बचाना होगा।

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