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आजमगढ़

रुद्र महायज्ञ के साथ गूंजा भक्ति का जयघोष, परशुराम स्तोत्रम् का भव्य लोकार्पण

पंडित कुंदन की रचना और रजनीकांत तिवारी की आवाज़ ने बंधी श्रोताओं की नज़र

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आजमगढ़ के धनेजदुबे में रुद्र महायज्ञ का भव्य समापन भंडारे के साथ हुआ। शुभम दास जी महाराज ने परशुराम स्तोत्रम् का लोकार्पण किया। जानें इस पावन अवसर के मुख्य highlights।

जगदम्बा उपाध्याय की रिपोर्ट

आजमगढ़। गोपालगंज के निकट स्थित धनेजदुबे गांव में चल रहा श्री रुद्र महायज्ञ 16 मई से आरंभ होकर गुरुवार देर रात विशाल भंडारे के साथ संपन्न हुआ। इस अवसर पर धार्मिक उत्साह चरम पर रहा और श्रद्धालुओं की भारी उपस्थिति ने वातावरण को और भी पावन बना दिया।

परशुराम स्तोत्रम् का लोकार्पण

कार्यक्रम की खास बात यह रही कि एक भव्य समारोह में दुर्वासा महामण्डलेश्वर श्री श्री 108 शुभम दास जी महाराज द्वारा प्रसिद्ध कवि पं. सुभाष चंद्र तिवारी ‘कुंदन’ की रचना परशुराम स्तोत्रम् का लोकार्पण किया गया, जिसे रजनीकांत तिवारी ने स्वरबद्ध किया है। लोकार्पण के बाद स्तोत्रम् का सामूहिक पाठ हुआ, जिससे उपस्थित श्रद्धालु भावविभोर हो उठे।

संतों का संबोधन

अपने प्रेरणादायक संबोधन में श्री शुभम दास जी महाराज ने पं. कुंदन की रचनाओं की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि “इनके काव्य न केवल आध्यात्मिक हैं, बल्कि जनकल्याण की भावना से ओतप्रोत हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि परशुराम स्तोत्रम् का पाठ और श्रवण करने से मानसिक शांति और सुख की अनुभूति होती है।

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वहीं मानस भ्रमर सुधीर जी महाराज ने धर्म की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा, “जब-जब पृथ्वी पर अधर्म का प्रभाव बढ़ा है, तब-तब भगवान विष्णु ने विविध अवतार लेकर अधर्म का नाश किया है।” उन्होंने त्रेतायुग में श्रीराम और परशुराम अवतार की व्याख्या करते हुए धर्म की स्थापना की आवश्यकता पर बल दिया।

आयोजन का सफल संचालन

कवि पं. सुभाष चंद्र तिवारी कुंदन ने उपस्थित जनसमूह के प्रति आभार व्यक्त किया और ईश्वर भक्ति की ओर उन्मुख होने की प्रेरणा दी।

कार्यक्रम का कुशल संचालन लक्ष्मण दुबे ने किया, जबकि यज्ञ का संयोजन शैलेन्द्र दुबे द्वारा संपन्न हुआ।

जनभागीदारी

इस अवसर पर यज्ञाचार्य शतानंद तिवारी, कवि लाल बहादुर चौरसिया लाल, रौनक दुबे, सुभाष तिवारी शास्त्री, रामविनय दुबे, देवेंद्र दुबे, कौशल दुबे, भगवान दुबे समेत सैकड़ों श्रद्धालु उपस्थित रहे और आयोजन को सफल बनाने में अपना योगदान दिया।

यह धार्मिक आयोजन न केवल आध्यात्मिक उन्नयन का माध्यम बना बल्कि सामाजिक समरसता और भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण का उदाहरण भी प्रस्तुत किया।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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