उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में मनरेगा कार्य ठप होने से हजारों मजदूरों को रोजगार से वंचित होना पड़ रहा है। ग्राम पंचायतों की उदासीनता के कारण गांवों में काम बंद है, जिससे पलायन बढ़ रहा है।
संतोष कुमार सोनी के साथ सुशील मिश्रा की रिपोर्ट
बांदा, उत्तर प्रदेश: महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत ग्रामीणों को रोजगार मुहैया कराने का उद्देश्य अब केवल कागजों तक सिमट कर रह गया है। बांदा जिले की 470 ग्राम पंचायतों में से अधिकांश में मनरेगा के कार्य पूरी तरह ठप पड़े हैं। इस स्थिति के पीछे ग्राम सचिवों और प्रधानों की उदासीनता को मुख्य कारण माना जा रहा है।
दरअसल, जिले में 2.28 लाख से अधिक मनरेगा श्रमिक पंजीकृत हैं, जिनमें करीब एक लाख श्रमिक सक्रिय रूप से काम की तलाश में हैं। पहले ये श्रमिक गांव में ही मजदूरी कर अपने परिवार का भरण-पोषण कर लेते थे, लेकिन अब उन्हें शहरों की ओर पलायन करना पड़ रहा है।
काम के अवसर कम, मजदूर परेशान
वर्तमान वित्तीय वर्ष में अब तक केवल 32,493 मानव दिवस ही सृजित किए गए हैं, जबकि पिछले वर्ष मार्च-अप्रैल में यह आंकड़ा 1,22,567 था। यानी इस साल 90,074 मानव दिवस की गिरावट दर्ज की गई है, जो कि श्रमिकों की आमदनी पर सीधा प्रभाव डाल रही है।
कई मजदूरों ने बताया कि उन्हें महीनों काम नहीं मिलता और जब काम मिलता भी है, तो उसका भुगतान समय से नहीं होता। कमासिन क्षेत्र के भरोसे लाल ने बताया कि अब उन्हें रोज सुबह मुख्यालय जाना पड़ता है, जिससे दिनभर की कमाई भी अनिश्चित रहती है। इसी तरह कामता प्रसाद ने बताया कि पहले पत्नी के साथ गांव में ही काम कर लेते थे, लेकिन अब पत्नी शहर नहीं आ पाती, जिससे घर चलाना मुश्किल हो गया है।
प्रशासन हुआ सक्रिय
स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उपयुक्त कदम उठाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। उपायुक्त श्रम एवं रोजगार अजय कुमार पांडे ने बताया कि ग्राम पंचायतों की निष्क्रियता बेहद चिंताजनक है। उन्होंने सभी खंड विकास अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिए हैं कि प्रत्येक पंचायत में तत्काल कार्य प्रारंभ कराएं और अधिक से अधिक मानव दिवस सृजित करें। उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर हालात में सुधार नहीं हुआ, तो संबंधित अधिकारियों के विरुद्ध शासन को रिपोर्ट भेजी जाएगी।
बांदा जिले में मनरेगा की बदहाल स्थिति ने ग्रामीणों की आजीविका पर गहरा प्रभाव डाला है। अगर समय रहते पंचायतें और प्रशासन सक्रिय नहीं हुए, तो गांवों से मजदूरों का शहरों की ओर पलायन और भी बढ़ सकता है, जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था और अधिक कमजोर होगी।