देवरिया के लोक निर्माण विभाग में बड़ा घोटाला सामने आया। पहले से बनी सड़क की मरम्मत के नाम पर 6.08 करोड़ रुपये मंगाए गए। रकम के बंटवारे में विवाद हुआ और घोटाला उजागर हो गया। तीन अधिकारी निलंबित, जांच जारी।
संजय कुमार वर्मा की रिपोर्ट
देवरिया: उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से एक चौंकाने वाला घोटाला सामने आया है, जहां लोक निर्माण विभाग (PWD) ने एक पहले से बनी और चकाचक सड़क की मरम्मत के नाम पर सरकार से 6 करोड़ 8 लाख रुपये मंजूर करा लिए। लेकिन जैसे ही इन करोड़ों की बंदरबांट शुरू होने वाली थी, अंदरूनी कलह ने इस पूरे खेल की परतें उधेड़ दीं।
धोखाधड़ी का हैरतअंगेज तरीका
दरअसल, 2015 में कुशीनगर के कप्तानगंज से देवरिया के रूद्रपुर तक लगभग 50 किलोमीटर लंबी सड़क का निर्माण हुआ था। कुछ हिस्सा PWD ने बनाया और फिर जिम्मेदारी एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) को सौंप दी गई। सड़क तय समय पर बनकर तैयार हो गई और 2027 तक इसके रख-रखाव की जिम्मेदारी भी ADB के पास है।
यहां से शुरू हुआ खेल
मार्च 2025 में जब विभागीय बजट खर्च का दबाव था, तभी अधिकारियों ने पहले से तैयार इस सड़क को ‘खस्ता हाल’ दिखाकर मरम्मत के लिए 6.08 करोड़ रुपये मंजूर करा लिए। सबसे हैरान करने वाली बात यह रही कि इस मरम्मत के लिए उसी फर्म के बांड का इस्तेमाल किया गया, जिसे 2015 में सड़क निर्माण का ठेका मिला था।
बंटवारे में मची खींचतान, और फूटा राज
जैसे ही रकम विभागीय खाते में पहुंची, अंदरखाने हिस्सेदारी को लेकर घमासान मच गया। अफसरों और बाबुओं में मतभेद हुआ और विवाद विभाग से बाहर लीक हो गया। शिकायत लखनऊ पहुंची और फिर शुरू हुई एसआईटी जांच।
तीन अफसर सस्पेंड, एक पर गिरी गाज की तलवार
जांच में प्रथम दृष्टया दोषी पाए गए सहायक अभियंता सुधीर कुमार, अवर अभियंता रामगणेश पासवान और बजट बाबू रविन्द्र गिरी को तत्काल निलंबित कर दिया गया। जबकि अधिशासी अभियंता अनिल कुमार जाटव अभी जांच के घेरे में हैं और उन पर भी कार्रवाई तय मानी जा रही है।
PWD में मचा हड़कंप, ठेकेदारों में खुशी
इस सनसनीखेज खुलासे के बाद पूरे विभाग में अफरा-तफरी का माहौल है। कर्मचारी अब एक-दूसरे पर शक की निगाह से देख रहे हैं। वहीं दूसरी ओर, वर्षों से विभागीय मनमानी का सामना कर रहे ठेकेदार इस कार्रवाई से खासे खुश नजर आ रहे हैं।
इस मामले ने एक बार फिर ये सवाल खड़ा कर दिया है कि करोड़ों के बजट का आखिर कौन रखवाला है? जब बनी हुई सड़क पर भी करोड़ों की मरम्मत मंजूर हो सकती है, तो भ्रष्टाचार की जड़ें कितनी गहरी हैं, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं।