थाने में सियासी अराजकता! पूर्व विधायक के इशारे पर सुलग उठा मऊ, बड़ी वारदात टली

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मऊ थाने में हुए हंगामे ने डीएसपी जियाउल हक हत्याकांड की दिल दहला देने वाली यादें ताज़ा कर दी हैं। पूर्व विधायक आनंद शुक्ला पर लगे आरोपों के बावजूद अब तक नहीं हुई कोई कार्यवाही—क्या पुलिस प्रशासन पर उठ रहे सवालों का मिलेगा जवाब?

संजय सिंह राणा की रिपोर्ट

चित्रकूट। मऊ कोतवाली क्षेत्र में हुए एक विवाद ने न सिर्फ कानून-व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए हैं, बल्कि 2013 के चर्चित डीएसपी जियाउल हक हत्याकांड की भयावह यादें भी ताज़ा कर दी हैं। गौरतलब है कि इस बार प्रदर्शनकारियों को उकसाने और मामले को भड़काने का आरोप सीधे मऊ मानिकपुर विधानसभा के पूर्व विधायक आनंद शुक्ला और उनके समर्थकों पर लग रहा है।

दरअसल, मऊ कोतवाली में तथाकथित भाजपा नेता संदीप त्रिपाठी के पुत्र आदित्य त्रिपाठी और पुलिसकर्मियों के बीच हुए टकराव के बाद माहौल तनावपूर्ण हो गया। पुलिस द्वारा मनचले रवैये पर कड़ी कार्रवाई करना महंगा पड़ गया। इसके बाद, संदीप त्रिपाठी व उनके समर्थकों ने थाने का घेराव किया और पुलिसकर्मियों से हाथापाई तक की।

डीएसपी जियाउल हक हत्याकांड की छाया में मऊ का घटनाक्रम

इस घटनाक्रम ने एक बार फिर 02 मार्च 2013 की उस घटना को याद दिला दिया, जब प्रतापगढ़ में सीओ जियाउल हक को प्रदर्शनकारियों ने पीट-पीटकर मौत के घाट उतार दिया था। अब जब मऊ थाने के क्षेत्राधिकारी भी मुस्लिम समुदाय से ताल्लुक रखते हैं, प्रदर्शनकारियों द्वारा उनके खिलाफ लगाए गए जातिवादी आरोपों ने स्थिति को और संवेदनशील बना दिया।

पूर्व विधायक की भूमिका संदिग्ध

सबसे अहम बात यह है कि घटना के दौरान पूर्व विधायक आनंद शुक्ला थाने में न सिर्फ मौजूद थे, बल्कि प्रदर्शनकारियों को बार-बार उकसाते देखे गए। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, उन्होंने सीओ से मोबाइल तक छीन लिया और बार-बार ऐसे बयान दिए जिससे भीड़ में उग्रता बढ़ती गई। हर बार जब वह कोई भड़काऊ बात कहते, प्रदर्शनकारी पेट्रोल मंगवाने की बात करते। यदि पुलिस ने सूझबूझ न दिखाई होती, तो स्थिति भयावह हो सकती थी।

अस्पताल में भी दिखा पूर्व विधायक का दबदबा

थाना परिसर से लेकर मऊ अस्पताल और फिर जिला चिकित्सालय तक, आनंद शुक्ला का प्रभाव स्पष्ट दिखा। उन्होंने डॉक्टरों पर दबाव बनाते हुए मेडिकल प्रक्रिया में भी दखल दिया। यह कार्य न सिर्फ स्वास्थ्य विभाग की प्रक्रिया का उल्लंघन था, बल्कि डॉक्टरों की कार्यप्रणाली पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है।

पुलिस की कार्यशैली पर सवाल

अब प्रश्न यह उठता है कि जब प्रदर्शनकारियों पर मुकदमा दर्ज किया गया है, तो फिर उन्हें उकसाने वाले पूर्व विधायक और उनके समर्थकों पर कार्रवाई क्यों नहीं की गई? जब फेसबुक लाइव जैसे डिजिटल साक्ष्य उपलब्ध हैं, तब भी पुलिस का मौन रहना उसकी कार्यशैली पर गंभीर सवाल खड़े करता है।

पुलिस ने मौके पर स्थिति को नियंत्रण में रखकर एक बड़ी घटना को टाल तो दिया, लेकिन अगर पूर्व विधायक के खिलाफ अब भी कोई कानूनी कार्रवाई नहीं होती, तो यह नजीर बन जाएगी कि कैसे राजनेता कानून से ऊपर समझे जाने लगते हैं।

अब देखने वाली बात यह होगी कि क्या शासन-प्रशासन इस मामले को गंभीरता से लेकर निष्पक्ष जांच कराएगा या फिर राजनीतिक प्रभाव के चलते यह मामला भी अन्य मामलों की तरह ठंडे बस्ते में डाल दिया जाएगा।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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