UPSC सिविल सेवा परीक्षा 2024 में प्रयागराज की शक्ति दुबे ने ऑल इंडिया रैंक-1 प्राप्त कर उत्तर प्रदेश और अपने परिवार का नाम रोशन किया। जानिए उनकी सफलता की प्रेरक कहानी, शैक्षणिक सफर और संघर्ष की दास्तान।
जगदंबा उपाध्याय की रिपोर्ट
प्रयागराज से देश की सेवा तक: शक्ति दुबे ने UPSC 2024 में रचा इतिहास
संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की सिविल सेवा परीक्षा 2024 का फाइनल परिणाम घोषित हो चुका है और इस बार प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की बेटी शक्ति दुबे ने पूरे देश में टॉप कर ऑल इंडिया रैंक-1 हासिल की है। यह केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं, बल्कि प्रयागराज और उत्तर प्रदेश के लिए गर्व का क्षण है। शक्ति ने अपनी इस सफलता को न केवल अपने कठिन परिश्रम और समर्पण का परिणाम बताया, बल्कि इस उपलब्धि का सम्पूर्ण श्रेय अपने परिवार को दिया, जो हर कठिनाई में उनके साथ खड़ा रहा।
सात वर्षों की तपस्या का फल
शक्ति दुबे ने वर्ष 2018 से सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू की थी। पिछले वर्ष यानी UPSC 2023 में महज दो अंकों से चयन से चूकने के बाद भी उन्होंने हार नहीं मानी। हालांकि यह एक बड़ा झटका था, फिर भी उन्होंने आत्मविश्वास नहीं खोया। उनके भाई ने तब कहा था, “ईश्वर ने तुम्हें पहले स्थान के लिए बचा रखा है,” और आज यह बात सच साबित हुई। यही शक्ति की कहानी को विशेष बनाता है—आशा, संघर्ष और आत्मविश्वास की मिसाल।
शैक्षणिक पृष्ठभूमि: विज्ञान की छात्रा से सिविल सर्विस टॉपर तक
शक्ति का शैक्षणिक सफर भी प्रेरणादायक रहा है। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा सेंट मैरी कॉन्वेंट स्कूल, घूरपुर, प्रयागराज से प्राप्त की।
इसके बाद उन्होंने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से विज्ञान विषय में बीएससी किया, जिसमें उन्हें गोल्ड मेडल प्राप्त हुआ।
वर्ष 2016 में उन्होंने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) से बायोकेमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन (MSc) किया और यहां भी गोल्ड मेडल हासिल किया।
विज्ञान पृष्ठभूमि से आने के बावजूद उन्होंने जनरल स्टडीज़, एथिक्स, और वैकल्पिक विषय में शानदार प्रदर्शन कर यह सिद्ध कर दिया कि समर्पण और दृढ़ निश्चय से किसी भी क्षेत्र में सफलता संभव है।
परिवार की भूमिका: हर मोड़ पर संबल बना घर
शक्ति दुबे का परिवार उनकी सफलता की नींव रहा है। उनके पिता देवेंद्र द्विवेदी, प्रयागराज में डीपीएस व एडीसीपी ट्रैफिक के पेशकार के पद पर कार्यरत हैं।
उनकी माता प्रेमा दुबे एक गृहिणी हैं, जिन्होंने बेटी को भावनात्मक समर्थन देने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
उनकी जुड़वा बहन प्रगति भी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रही हैं, जबकि छोटा भाई आशुतोष एमसीए कर रहा है।
मूल रूप से यह परिवार बलिया जिले के बैरिया तहसील स्थित रामपुर गांव से ताल्लुक रखता है।
परिवार के सहयोग के बिना शक्ति की यह यात्रा संभव नहीं थी। खुद शक्ति कहती हैं कि उनका आत्मबल परिवार से ही आया।
भावनाओं का असीम संचार: जब आया रिजल्ट
रिजल्ट के दिन का जिक्र करते हुए शक्ति बताती हैं,
“सुबह से अंदेशा था कि रिजल्ट आज ही आएगा। सोचा था फोन साइड में रख दूं, लेकिन बेचैनी के कारण ऐसा नहीं कर पाई। जब वेबसाइट पर PDF देखा तो खुद को विश्वास नहीं हुआ। पहले पापा को फोन किया, फिर मम्मी को, उसके बाद कोचिंग से कॉल आया। जब कोचिंग ने पुष्टि की कि यही रोल नंबर है, तब जाकर यकीन हुआ।”
यह क्षण शक्ति के लिए भावनाओं से भरा था—सालों की मेहनत, त्याग और विश्वास का साक्षात फल।
समाज के लिए प्रेरणा: शक्ति का संदेश
यूपीएससी टॉपर बनने के बाद शक्ति दुबे ने कहा,
“मैंने कभी नहीं सोचा था कि टॉपर बनूंगी, लेकिन मैंने कोशिश करना नहीं छोड़ा। पिछले साल की असफलता के बाद जो आत्मविश्वास मेरे परिवार ने दिया, वही मेरी सबसे बड़ी ताकत बनी।”
उनकी यह सफलता उन सभी युवाओं के लिए एक जीवंत उदाहरण है, जो कठिनाइयों से जूझ रहे हैं और अपनी मंज़िल की तलाश में हैं।
शक्ति दुबे की कहानी केवल UPSC टॉपर की कहानी नहीं है, यह एक सपनों, संघर्ष, आत्मबल और परिवार के सहयोग की गाथा है। उन्होंने यह साबित कर दिया कि निरंतर प्रयास और मानसिक दृढ़ता से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है। ऐसे प्रेरणादायी व्यक्तित्व देश के भविष्य को एक नई दिशा देने में समर्थ होते हैं।