Explore

Search
Close this search box.

Search

18 March 2025 12:20 am

प्रेम और परंपरा का अनूठा संगम: बलदेव में हुरियारिनों ने हुरियारों पर बरसाए रंग भरे कोड़े!

66 पाठकों ने अब तक पढा

मथुरा के बलदेव में हुई अनोखी कोड़ा मार होली, जहां हुरियारिनों ने हुरियारों के कपड़े फाड़कर टेसू के रंग में भीगे कोड़ों से प्रेम भरी मार लगाई। जानें इस अनूठी परंपरा की पूरी कहानी!

मथुरा। ब्रज की होली न केवल देश में, बल्कि पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है। होली के बाद अब बलदेव में हुरंगा उत्सव की धूम मची हुई है। श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलदाऊ जी की नगरी बलदेव में यह अनोखा उत्सव बड़े धूमधाम से मनाया गया। खासतौर पर दाऊजी मंदिर में खेली जाने वाली “कोड़ा मार होली” श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बनी रही।

हुरंगा की अनूठी परंपरा

बलदेव कस्बे में होली के ठीक एक दिन बाद दाऊजी मंदिर में भव्य हुरंगा उत्सव का आयोजन किया गया। मंदिर के आंगन को टेसू के फूलों से बने रंगों से भरा गया, जिससे पूरा वातावरण गुलाल और रंगों से सराबोर हो गया। जैसे ही होली के रसिया गीतों की धुन गूंजी, श्रद्धालु झूम उठे और हुरंगा की शुरुआत हो गई।

हुरंगा की परंपरा के अनुसार, हुरियारिनें (महिलाएं) हुरियारों (पुरुषों) के कपड़े फाड़कर उन्हें पानी में भिगोती हैं और फिर उसी कपड़े से कोड़ा (चाबुक) बनाकर हुरियारों की पीठ पर मारती हैं। यह कोड़ा टेसू के फूलों से बने रंग में भिगोया जाता है, जिससे पूरा माहौल रंगीन हो जाता है।

दुनियाभर से उमड़े श्रद्धालु

यह आयोजन ब्रज की सांस्कृतिक धरोहर का अभिन्न हिस्सा है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों श्रद्धालु बलदेव पहुंचते हैं। दाऊजी मंदिर में इस विशेष हुरंगा उत्सव का आयोजन पांडेय समाज के लोग करते हैं, जो मंदिर के पुजारी भी होते हैं।

हुरंगा के लिए विशेष रूप से गुलाल और टेसू के फूल मंगाए जाते हैं, और इसकी तैयारी कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। मंदिर के पट सुबह 5 बजे खुलते हैं, जबकि हुरंगा दोपहर 1 बजे से आरंभ होता है।

हुरियारों के लिए खास तैयारी

इस परंपरा में भाग लेने वाले हुरियारे (पुरुष) नंगे बदन हुरियारिनों की कोड़ों की मार सहते हैं। इस मार को सहने के लिए वे सुबह से ही भांग का सेवन करते हैं और ब्रज की पारंपरिक वेशभूषा में सजधज कर आते हैं।

हुडंगा होली का दृश्य

बलदाऊ जी पर आधारित हुरंगा

जहां ब्रज की होली भगवान श्रीकृष्ण के इर्द-गिर्द घूमती है, वहीं हुरंगा भगवान बलदाऊ जी पर केंद्रित है। दाऊजी मंदिर में खेले जाने वाले इस विशेष हुरंगा के नायक भगवान शेषावतार बलदाऊ जी माने जाते हैं। श्रद्धालुओं के बीच इस अनोखी परंपरा को देखने की जबरदस्त उत्सुकता बनी रहती है।

ब्रज की संस्कृति का जीवंत स्वरूप

बलदेव का हुरंगा केवल एक उत्सव ही नहीं, बल्कि ब्रज की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का महत्वपूर्ण हिस्सा है। कवि ने भी इसे वर्णित करते हुए लिखा है:

“देख देख या ब्रज की होरी, ब्रह्मा मन ललचाए।”

यह पंक्ति ब्रज की होली और हुरंगा उत्सव की अद्भुतता को पूरी तरह दर्शाती है। इस तरह, हर साल आयोजित होने वाला यह विशेष हुरंगा उत्सव, श्रद्धा और उमंग का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता है।

➡️ब्रजकिशोर सिंह की रिपोर्ट

Leave a comment