ठाकुर बख्श सिंह की रिपोर्ट
उत्तर प्रदेश के मैनपुरी जिले में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक व्यक्ति ने सिर्फ कक्षा आठ तक पढ़ाई करने के बावजूद फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बेसिक शिक्षा विभाग में नौ वर्षों तक शिक्षक की नौकरी की। शिकायत मिलने के बाद मामला उजागर हुआ, जांच हुई और अब उसे गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया है।
कैसे सामने आया फर्जीवाड़ा?
मैनपुरी के कोतवाली नगर क्षेत्र के मोहल्ला ग्वालटोली निवासी राजकुमार यादव की नियुक्ति वर्ष 2015 में बेसिक शिक्षा विभाग में राजा का रामपुर थाना क्षेत्र के इमादपुर स्थित पूर्व माध्यमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक के रूप में हुई थी। उसे विज्ञान विषय पढ़ाने की जिम्मेदारी दी गई, लेकिन वह खुद सिर्फ कक्षा आठ तक ही पढ़ा था।
साल 2023 में विजेंद्र सिंह, जो कि उसी मोहल्ले के रहने वाले हैं, ने जिला बेसिक शिक्षाधिकारी (BSA) से शिकायत की। उन्होंने आरोप लगाया कि राजकुमार ने हाईस्कूल, इंटर, बीएड और टीईटी तक के फर्जी दस्तावेज प्रस्तुत करके नौकरी प्राप्त की। इसके समर्थन में उन्होंने ठोस साक्ष्य भी प्रस्तुत किए।
जांच में फर्जी निकले सभी प्रमाणपत्र
शिकायत के बाद तत्कालीन खंड शिक्षाधिकारी मुकेश कुमार को मामले की जांच सौंपी गई। जांच में पाया गया कि आरोपी द्वारा प्रस्तुत किए गए सभी दस्तावेज फर्जी थे। इसके बाद 20 दिसंबर 2023 को राजा का रामपुर थाने में प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई गई।
जैसे ही मामला दर्ज हुआ, जिला बेसिक शिक्षाधिकारी ने आरोपी शिक्षक की सेवा समाप्त कर दी। हालाँकि, इसके बाद आरोपी पुलिस को लगातार चकमा देता रहा। वह लगातार अपना ठिकाना बदलता रहा और यहां तक कि अपना मोबाइल नंबर भी बदल लिया, जिससे पुलिस उसे पकड़ नहीं पा रही थी।
कैसे हुई गिरफ्तारी?
राजकुमार यादव मूल रूप से मैनपुरी का निवासी है, लेकिन उसने अपने कागजात में शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) का पता भी दर्ज कराया था। यही कारण था कि पुलिस उसे दोनों जिलों में तलाश रही थी।
आखिरकार, रविवार रात पुलिस को सूचना मिली कि आरोपी अपने मैनपुरी स्थित घर पर मौजूद है। इस पर पुलिस ने तत्काल कार्रवाई की और रात 11 बजे उसे गिरफ्तार कर लिया। पूछताछ के बाद सोमवार को अदालत में पेश किया गया, जहां से उसे जेल भेज दिया गया।
10 लाख रुपये में खरीदे थे फर्जी दस्तावेज
जांच के दौरान एक और बड़ा खुलासा हुआ कि आरोपी ने 10 लाख रुपये में किसी अन्य व्यक्ति (जिसका नाम भी राजकुमार था) से उसके शैक्षणिक दस्तावेज खरीदे थे। हालांकि, अभी तक यह पता नहीं चल पाया है कि दस्तावेज बेचने वाला व्यक्ति कहां का है।
क्या शिक्षा विभाग की भी है लापरवाही?
इस मामले में सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि अगर शिकायत नहीं की जाती, तो क्या यह फर्जी शिक्षक लगातार नौकरी करता रहता? इसके अलावा, शिक्षा विभाग ने नौ वर्षों तक उसके दस्तावेजों की जांच क्यों नहीं की? यह लापरवाही न केवल शिक्षा व्यवस्था पर सवाल उठाती है, बल्कि छात्रों के भविष्य के लिए भी खतरा पैदा करती है।
राजकुमार यादव की गिरफ्तारी के साथ ही यह मामला एक बार फिर शिक्षा विभाग में भ्रष्टाचार और लापरवाही को उजागर करता है। यह घटना दर्शाती है कि कैसे फर्जी दस्तावेजों के सहारे लोग महत्वपूर्ण पदों पर पहुंच जाते हैं और वर्षों तक सिस्टम को गुमराह करते हैं। पुलिस अब यह भी पता लगाने में जुटी है कि क्या इस फर्जीवाड़े में कोई और भी शामिल था?
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Author: जगदंबा उपाध्याय, मुख्य व्यवसाय प्रभारी
जिद है दुनिया जीतने की