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प्रयागराज

संघर्ष से सम्मान तक: किन्नर अखाड़े की संत हैं आज, इनके साथ संकुचित सोच वाले समाज ने क्या क्या नही किया… सिहर जाएंगे आप…. 

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अंजनी कुमार त्रिपाठी की रिपोर्ट

कुंभ नगरी में 13 अखाड़ों के शिविर सेक्टर 20 में स्थित हैं, जबकि किन्नर अखाड़े का कैंप यहां से काफी दूर सेक्टर 16 में लगाया गया है। इस अखाड़े में एक किन्नर महंत, जयंती ठाकुर, अपने साथी से धाराप्रवाह अंग्रेज़ी में बातचीत करती दिखीं। पूछने पर पता चला कि वे जयंती ठाकुर हैं।

जयंती बनारसी साड़ी में लिपटी हुई थीं, उनके गले में ढेर सारे गहने थे और माथे पर रोली की बड़ी सी लाल बिंदी चमक रही थी। सांवले रंग पर उनका मेकअप एकदम परफेक्ट था। जब उनसे पूछा गया कि वे किन्नर महंत कैसे बनीं, तो उन्होंने समाज में किन्नरों के प्रति भेदभाव और उनकी अनदेखी की तकलीफों को साझा किया। वे कहती हैं कि समाज किन्नरों को केवल दो ही रूपों में देखता है—या तो वे भीख मांगेंगे या देह व्यापार करेंगे।

गुस्से के साथ वे अंग्रेज़ी में कहती हैं, “Don’t try to check our bedroom stories, try to see how productive we can be for the society.” (यानी “हमारी निजी ज़िंदगी में झांकने के बजाय यह देखिए कि हम समाज के लिए कितने उपयोगी हो सकते हैं।”)

संघर्ष और बदलाव की कहानी

जयंती ने बताया कि कोविड महामारी का दौर उनके लिए सबसे भयावह रहा। अक्टूबर 2020 में, जब वे शारदीय नवरात्र के दौरान घर से जरूरी सामान लेने निकलीं, तो चार नशे में धुत लोगों ने उनका अपहरण कर लिया। उनमें से तीन ने उनका रेप किया, जबकि चौथा व्यक्ति बार-बार कहता रहा कि उसे लड़की चाहिए। उन्होंने चाकू से हमला कर उन्हें अधमरा छोड़ दिया। किसी भले व्यक्ति ने उन्हें अस्पताल पहुंचाया, जहां वे बच तो गईं, लेकिन उन्होंने तभी सर्जरी करवा ली और महिला बन गईं।

आज वे दिल्ली में एक मल्टीनेशनल कंपनी में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। वे कहती हैं, “समाज सोचता है कि एक किन्नर अच्छी नौकरी कैसे कर सकता है? हमारी सफलता से लोग जलते हैं, लेकिन मेरी मेहनत ने मुझे यहां तक पहुंचाया है।”

बचपन से ही उन्हें भेदभाव का सामना करना पड़ा। स्कूल और कॉलेज में उन्हें अलग-अलग नामों से पुकारा जाता था, लेकिन उनके माता-पिता हमेशा उनके साथ खड़े रहे। उनके पिता सिक्योरिटी गार्ड थे, और पैसे की तंगी के कारण जयंती को दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी। उन्होंने कपड़े की दुकान में काम किया, लेकिन जब उन्हें एहसास हुआ कि शिक्षा के बिना समाज से लड़ना मुश्किल है, तो उन्होंने फिर से पढ़ाई शुरू की। ट्यूशन पढ़ाकर और स्कूल में इंग्लिश पढ़ाकर उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और धीरे-धीरे सफलता की सीढ़ियां चढ़ती गईं।

समाज की मानसिकता बदलने की जरूरत

जयंती ठाकुर का मानना है कि समाज को अपनी सोच बदलनी होगी। “बेटा-बेटी ही नहीं, किन्नर भी घर चला सकता है, किन्नर भी किसी के घर की बहू बन सकता है, माता-पिता का सहारा बन सकता है।” वे लोगों से अपील करती हैं कि किन्नरों को भी मौका दें, क्योंकि वे भी समाज का हिस्सा हैं।

महामंडलेश्वर इंदुनंद गिरी की कहानी

महामंडलेश्वर इंदुनंद गिरी, जो किन्नर अखाड़े की प्रमुख हस्ती हैं, बताती हैं कि बचपन से ही उन्हें मां काली की भक्ति पसंद थी। लेकिन समाज के कटाक्षों ने उन्हें अंदर से तोड़ दिया। वे बताती हैं कि जब वे मेकअप आर्टिस्ट थीं, तो लोग कहते थे कि किन्नर होने के कारण उनका माहौल खराब होगा और उनके साथ काम नहीं करना चाहते थे। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और समाज में अपनी जगह बनाई।

ईशा बेंजमिन का संघर्ष और सफलता

ईशा बेंजमिन, जो एक यहूदी और सनातनी माता-पिता की संतान हैं, आज एक अमेरिकी कंपनी में वर्क फ्रॉम होम कर रही हैं। वे बताती हैं कि कैसे समाज उन्हें अलग नज़रिए से देखता था। ग्रेजुएशन और होटल मैनेजमेंट की पढ़ाई के बावजूद उन्हें भेदभाव झेलना पड़ा। वे कहती हैं कि “एजुकेशन के कारण ही मुझे भीख नहीं मांगनी पड़ती, ना ही देह व्यापार करना पड़ता है।”

किन्नर अखाड़े का उद्देश्य

किन्नर अखाड़े की स्थापना का उद्देश्य यही है कि किन्नरों को समाज में उचित सम्मान और अधिकार मिले। मां पवित्रा नंद गिरी का कहना है कि शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है। अगर किन्नर शिक्षित होंगे, तो वे भी नौकरी कर सकते हैं और अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं।

समाज को चाहिए कि वे किन्नरों को केवल ताली बजाने वाला या मज़ाक का पात्र न समझे, बल्कि उन्हें भी एक सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर दे।

samachardarpan24
Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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