कमलेश कुमार चौधरी की रिपोर्ट
लखनऊ के निशातगंज इलाके में फर्जी मार्कशीट और प्रमाणपत्र बनाने वाले एक बड़े गिरोह का भंडाफोड़ हुआ है। पुलिस ने गिरोह में शामिल कंप्यूटर ऑपरेटर राम प्रकाश वर्मा को गिरफ्तार किया है, लेकिन गिरोह का सरगना मनीष प्रताप सिंह उर्फ मांगेराम फरार है। इस गिरोह ने अब तक हजारों फर्जी डिग्रियां और प्रमाणपत्र बेचकर लोगों को ठगा है।
गिरोह का मास्टरमाइंड: मनीष उर्फ मांगेराम
गिरोह का सरगना मनीष प्रताप सिंह उर्फ मांगेराम मथुरा का निवासी है और पिछले नौ वर्षों से इस अवैध धंधे को चला रहा है। गाजियाबाद में कौशल विकास मिशन की आड़ में उसने इस फर्जीवाड़े का जाल बिछाया। उसके खिलाफ कई गंभीर अपराधों के मामले दर्ज हैं, जिनमें मानव तस्करी, यौन शोषण, गैंगस्टर एक्ट और अनैतिक व्यापार के आरोप शामिल हैं। मांगेराम का गिरोह विभिन्न राज्यों में फैला है और स्थानीय दलालों के जरिए ग्राहक बनाता है।
कैसे चलता था गिरोह का खेल?
गिरोह असली प्रमाणपत्रों की स्कैनिंग कर उनकी हूबहू नकल तैयार करता था। इसके लिए वे हाई-लेवल सॉफ्टवेयर का इस्तेमाल करते थे। ये लोग 10वीं, 12वीं, स्नातक, मास्टर डिग्री से लेकर आयुर्वेद और मुक्त विश्वविद्यालयों की डिग्रियां तैयार करते थे। गाजियाबाद स्थित उनके केंद्र पर NBCTE का नाम लेकर नकली प्रमाणपत्रों पर सील और साइन लगाए जाते थे, जिससे वे असली लगें।
मार्कशीट की कीमत
इन नकली प्रमाणपत्रों की कीमत 25,000 रुपये से 50,000 रुपये तक होती थी। ग्राहक नौकरी, प्रमोशन, या एडमिशन के लिए इनका इस्तेमाल करते थे। ग्राहक जैसे प्रमाणपत्र की मांग करते, उसी आधार पर कीमत तय होती।
[the_ad id=”121536″]
पुलिस का छापा और बरामदगी
पुलिस को निशातगंज इलाके के एक मकान में फर्जी मार्कशीट बनाने की जानकारी मिली थी। छापेमारी के दौरान लैपटॉप, प्रिंटर, पेपर कटिंग मशीन, और बड़ी संख्या में नकली मार्कशीट बरामद की गईं। गिरफ्तार कंप्यूटर ऑपरेटर राम प्रकाश वर्मा ने पूछताछ में सरगना मांगेराम और गिरोह के नेटवर्क की जानकारी दी।
गिरोह का आपराधिक इतिहास
मनीष प्रताप सिंह उर्फ मांगेराम पहले भी कई बार गिरफ्तार हो चुका है। 2021 में चिनहट पुलिस ने उसे फर्जी मार्कशीट के मामले में गिरफ्तार किया था। 2022 में अमीनाबाद पुलिस ने भी उसे जेल भेजा। 2023 में वह पॉक्सो एक्ट में भी जेल गया। इसके बावजूद, मांगेराम ने अपनी आपराधिक गतिविधियां बंद नहीं कीं और जेल से छूटने के बाद लखनऊ में नया सेंटर खोल लिया।
पीड़ितों की आपबीती
गिरोह के फर्जी प्रमाणपत्रों का उपयोग करने वाले लोगों की समस्याएं अब सामने आ रही हैं। श्रीकांत (परिवर्तित नाम) ने बताया कि उसने प्रमोशन के लिए इंटर की फर्जी मार्कशीट खरीदी थी, लेकिन अब पुलिस जांच के कारण उसकी नौकरी खतरे में है। अर्चना (परिवर्तित नाम) ने प्राइवेट कंपनी में नौकरी के लिए स्नातक की नकली डिग्री ली थी, लेकिन मामला उजागर होने के बाद वह डरी हुई है।
पुलिस के सामने तीन बड़ी चुनौतियां
1. तकनीकी प्रमाणपत्रों की पहचान: गिरोह द्वारा तैयार नकली प्रमाणपत्र असली जैसे लगते हैं, जिससे असली-नकली में फर्क करना मुश्किल हो जाता है।
2. फरार सरगना: सरगना मनीष प्रताप सिंह की गिरफ्तारी पुलिस के लिए सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है।
[the_ad id=”121538″]
3. अंतरराज्यीय नेटवर्क: गिरोह का नेटवर्क कई राज्यों तक फैला हुआ है, जिससे जांच और कार्रवाई में कठिनाई हो रही है।
फर्जी मार्कशीट और प्रमाणपत्रों का यह मामला न केवल कानून व्यवस्था के लिए चुनौती है, बल्कि उन निर्दोष लोगों के लिए भी परेशानी का कारण है, जिन्हें इन फर्जी दस्तावेजों के जरिए ठगा गया है। पुलिस अब इस गिरोह के अंतरराज्यीय नेटवर्क को तोड़ने और फरार सरगना की गिरफ्तारी के लिए प्रयास तेज कर रही है।