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कोलकाता की डॉक्टर हत्या : न्याय की लड़ाई और जनाक्रोश की कुकथा

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सर्वेश द्विवेदी की रिपोर्ट

कोलकाता की घटना, जिसमें 31 वर्षीय रेजिडेंट डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या हुई, ने पूरे देश को झकझोर दिया। यह घटना पश्चिम बंगाल के भद्रलोक समाज के आक्रोश का प्रतीक बन गई और धीरे-धीरे देशभर में इसका प्रभाव फैल गया।

कोलकाता के आर.जी. कर अस्पताल में 9 अगस्त को डॉक्टर की निर्मम हत्या और यौन उत्पीड़न की खबर सामने आई, जिसने चिकित्सा समुदाय को गहरे सदमे में डाल दिया। इसके बाद विभिन्न अस्पतालों, मेडिकल कॉलेजों और डॉक्टर संगठनों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया, जिसके चलते कई दिनों तक ओपीडी सेवाएं ठप रहीं। यह मामला न केवल डॉक्टरों की सुरक्षा बल्कि महिलाओं के प्रति बढ़ती यौन हिंसा का प्रतीक बन गया।

घटना के बाद कोलकाता ही नहीं, बल्कि देशभर में यौनाचार और यौनिक हिंसा की घटनाओं की खबरें सामने आने लगीं। महाराष्ट्र, असम, गुजरात जैसे राज्यों से भी ऐसे ही जघन्य अपराधों की घटनाएं सामने आईं।

इन घटनाओं ने 2012 के निर्भया कांड की याद ताजा कर दी, जब पूरे देश ने एकजुट होकर न्याय की मांग की थी। उस वक्त के आंदोलन ने सरकार को सख्त कानून बनाने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन हाल के वर्षों में ऐसी घटनाओं के प्रति समाज और सरकार की संवेदनशीलता घटती नजर आ रही है।

कई मामलों में अपराधियों को बचाने के प्रयास दिखते हैं, जिससे लोगों का आक्रोश और बढ़ता जा रहा है।

कोलकाता की इस घटना में भी सरकार की भूमिका सवालों के घेरे में है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पहले मामले को दबाने की कोशिश की, लेकिन जब भद्रलोक समाज का आक्रोश बढ़ा, तो उन्हें पीछे हटना पड़ा।

विरोध प्रदर्शनों के बाद उन्होंने दोषियों को सजा दिलाने की मांग की और एक लंबा पैदल मार्च भी निकाला। लेकिन इस घटना ने ममता बनर्जी की राजनीतिक छवि पर गहरा असर डाला, क्योंकि इसे उनके प्रशासन की नाकामी के रूप में देखा जा रहा है।

इस मामले में कई संदेहास्पद पहलू भी सामने आए। मृत डॉक्टर के परिवार को पहले बताया गया कि उनकी बेटी की हालत नाजुक है, फिर कहा गया कि उसने आत्महत्या कर ली है। लेकिन पोस्टमार्टम रिपोर्ट से पता चला कि उसकी हत्या गला घोंटकर की गई थी और उसके शरीर पर कई चोटें थीं, जो यौन उत्पीड़न की ओर इशारा करती हैं। इससे यह साफ होता है कि उसने अपनी जान बचाने के लिए संघर्ष किया था।

घटना के कई दिन बाद, कोलकाता पुलिस ने एक सिविक वालंटियर संजय रॉय को गिरफ्तार किया, लेकिन उसने अपने बचाव में कहा कि जब वह घटनास्थल पर पहुंचा, तो डॉक्टर पहले से मरी पड़ी थी। मामले की जांच अब सीबीआई को सौंप दी गई है, लेकिन अभी तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है।

यह घटना देश में महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों का एक और उदाहरण है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,45,256 मामले दर्ज किए गए, जिनमें से करीब 32,000 बलात्कार के थे।

निर्भया कांड के बाद बने कड़े कानून और “निर्भया फंड” के बावजूद महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ है। सरकारों द्वारा उठाए गए कदम नाकाफी साबित हो रहे हैं, और अधिकांश निधियां अभी भी उपयोग नहीं हो पाई हैं।

समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों की समाजशास्त्रीय वजहें कई हो सकती हैं, लेकिन प्रशासन और समाज की असंवेदनशीलता इस समस्या को और बढ़ा रही है।

अगर देश में महिलाओं की सुरक्षा के प्रति यही उदासीनता बनी रही, तो यह न केवल मानवता बल्कि हमारी सभ्यता के लिए भी गंभीर खतरा साबित हो सकता है। कोलकाता की घटना सिर्फ एक वारदात नहीं, बल्कि एक चेतावनी है कि हमें अपनी संवेदनशीलता और नैतिकता को पुनर्जीवित करने की जरूरत है।

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Author: samachardarpan24

जिद है दुनिया जीतने की

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